एक रचना:
*
तुमने बुलाया
और
हम चले आये रे!!
*
लीक छोड़ तीनों चलें
शायर सिंह सपूत
लीक-लीक तीनों चलें
कायर कुटिल कपूत
बहुत लड़े, आओ! बने
आज शांति के दूत
दिल से लगाया
और
अंतर भुलाये रे!
तुमने बुलाया
और
हम चले आये रे!!
*
राह दोस्ती की चलें
चलो शत्रुता भूल
हाथ मिलाएँ आज फिर
दें न भेद को तूल
मिल बिखराएँ फूल कुछ
दूर करें कुछ शूल
जग चकराया
और
हम मुस्काये रे!
तुमने बुलाया
और
हम चले आये रे!!
*
जिन लोगों के वक्ष पर
सर्प रहे हैं लोट
उनकी नजरों में रही
सदा-सदा से खोट
अब मैं-तुम हम बन करें
आतंकों पर चोट
समय न बोले
मौके
हमने गँवाये रे!
तुमने बुलाया
और
हम चले आये रे!!
*
*
तुमने बुलाया
और
हम चले आये रे!!
*
लीक छोड़ तीनों चलें
शायर सिंह सपूत
लीक-लीक तीनों चलें
कायर कुटिल कपूत
बहुत लड़े, आओ! बने
आज शांति के दूत
दिल से लगाया
और
अंतर भुलाये रे!
तुमने बुलाया
और
हम चले आये रे!!
*
राह दोस्ती की चलें
चलो शत्रुता भूल
हाथ मिलाएँ आज फिर
दें न भेद को तूल
मिल बिखराएँ फूल कुछ
दूर करें कुछ शूल
जग चकराया
और
हम मुस्काये रे!
तुमने बुलाया
और
हम चले आये रे!!
*
जिन लोगों के वक्ष पर
सर्प रहे हैं लोट
उनकी नजरों में रही
सदा-सदा से खोट
अब मैं-तुम हम बन करें
आतंकों पर चोट
समय न बोले
मौके
हमने गँवाये रे!
तुमने बुलाया
और
हम चले आये रे!!
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