षट्पदी :
संजीव
.
है समाज परिवार में, मान हो रहे अंध
जुट समाजवादी गये, प्रबल स्वार्थ की गंध
प्रबल स्वार्थ की गंध, समूचा कुनबा नेता
घपलों-घोटालों में माहिर, छद्म प्रणेता
कथनी-करनी से हुआ शर्मसार जन-राज है
फ़िक्र न इनको देश की, संग न कोई समाज है
*
संजीव
.
है समाज परिवार में, मान हो रहे अंध
जुट समाजवादी गये, प्रबल स्वार्थ की गंध
प्रबल स्वार्थ की गंध, समूचा कुनबा नेता
घपलों-घोटालों में माहिर, छद्म प्रणेता
कथनी-करनी से हुआ शर्मसार जन-राज है
फ़िक्र न इनको देश की, संग न कोई समाज है
*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें