मुक्तिका :
राजनीति का गहरा कोहरा, नैतिकता का सूर्य ढँका है
टके सेर ईमान सभी का, स्वारथ हाथों आज बिका है
रूप देखकर नज़र झुका लें कितनी वह तहज़ीब भली थी
हुस्न मर गया बेहूदों ने आँख फाड़कर उसे तका है
गुमा मशीनों के मेले में आम आदमी खोजें कैसे?
लीवर एक्सेल गियर हथौड़ा ब्रैक हैंडल पुली चका है
आओ! हम मिल इस समाज की छाती में कुछ नश्तर भोंके
सड़े-गले रंग ढंग जीने के हर हिस्सा ज्यों घाव पका है
फना हो गए वे दिन यारों जबकि 'सलिल' लब फरमाते थे
अब तो लब खोलो तो यही कहा जाता है 'ख़ाक बका है'
ज्यों की त्यों चादर धरने की रीत 'सलिल' क्यों नहीं सुहाती?
दुनियादारी के बज़ार में खोटा ही चल रहा टका है
ईंट रेट सीमेंट मिलाकर करी इमारत 'सलिल' मुकम्मल
प्यार नहीं है बाशिंदों में रहा नहीं घर महज़ मकां है
रुको झुको या बुझो न किंचित उठते चलते जलते रहना
'सलिल' बाह रहा है सदियों से किन्तु नहीं अब तलक थका है
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1 टिप्पणी:
Veena Vij vij.veena@gmail.com
बहुत ही सुंदर सलिलजी!
कितना कहूँ और क्या-क्या ?
कैसे..?
समझ लें अब आप ही..
सादर
विणाविज उदित
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