नवगीत:
संजीव

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संजीव
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सिर्फ सच का साथ देना 
नव बरस 
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धाँधली अब तक चली, अब रोक दे 
सुधारों के लिये खुद को झोंक  दे 
कर रहे मनमानियाँ, गाली बकें-
ऐसे जनप्रतिनिधि गटर में फेंक दे 
सेकते जो स्वार्थ रोटी भ्रष्ट हो 
सेठ-अफसर को न किंचित टेक दे 
टेक का निर्वाह जनगण भी करे
टेक दें घुटने दरिंदे 
इस बरस 
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अँधेरों को भेंट कुछ आलोक दे 
दहशतों को दर्द-दुःख दे, शोक दे 
बेटियों-बेटों में समता पल सके- 
रिश्वती को भाड़ में तू झोंक दे 
बंजरों में फसल की उम्मीद बो 
प्रयासों के हाथ में साफल्य दे    
करें नेकी, अ-नेकी को भूलकर 
जयी हों विश्वास-आस 
हँस बरस 
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हाथ भूखा कमा पाये रोटियाँ
निर्जला रहने न देना टोंटियाँ
अब न हो निस्तार बाहर, घर-करें
छीन लेना रे! शकुनि से गोटियाँ
बोटियाँ कर बिन हिचक आतंक की
जय करें अब तक न जीती चोटियाँ
हाथ भूखा कमा पाये रोटियाँ
निर्जला रहने न देना टोंटियाँ
अब न हो निस्तार बाहर, घर-करें
छीन लेना रे! शकुनि से गोटियाँ
बोटियाँ कर बिन हिचक आतंक की
जय करें अब तक न जीती चोटियाँ
अंत कर अज्ञान का, पाखंड का 
बढ़ सकें, नट-बोल्ट सारे  
कस बरस 
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3 टिप्पणियां:
Om Prakash Tiwari omtiwari24@gmail.com
टेक दें घुटने दरिंदे
इस बरस
काश ऐसा ही हो। आदरणीय सलिल जी, आपकी कामनाओं को मेरा प्रणाम ।
सादर
ओमप्रकाश तिवा
Veena Vij vij.veena@gmail.com
Ati Sunder Nav varsh ke liye kanaayen.
Veena vij udit
मन-वीणा जब करे ओम झंकार
गीत हुलास कर खटकाते हैं द्वार
करे संगणक स्वागत टंकण यंत्र-
सरस्वती मैया की जय-जयकार
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