नवगीत:
जितनी रोटी खायी
की क्या उतनी मेहनत?
.
मंत्री, सांसद मान्य विधायक
प्राध्यापक जो बने नियामक
अफसर, जज, डॉक्टर, अभियंता
जनसेवक जन-भाग्य-नियंता
व्यापारी, वकील मुँह खोलें
हुए मौन क्यों?
कहें न तुहमत
.
श्रमिक-किसान करे उत्पादन
बाबू-भृत्य कर रहे शासन
जो उपजाए वही भूख सह
हाथ पसारे माँगे राशन
कब बदलेगी परिस्थिति यह
करें सोचने की
अब ज़हमत
.
उत्पादन से वेतन जोड़ो
अफसरशाही का रथ मोड़ो
पर्यामित्र कहें क्यों पिछड़ा?
जो फैलाता कैसे अगड़ा?
दहशतगर्दों से भी ज्यादा
सत्ता-धन की
फ़ैली दहशत
2 टिप्पणियां:
Veena Vij vij.veena@gmail.com
बहुत ही सुंदर सलिलजी!
कितना कहूँ और क्या-क्या ?
कैसे..?
समझ लें अब आप ही..
सादर
विणाविज उदित
kusum sinha kusumsinha2000@yahoo.com
bahut hi sundar saliljee hamesha aapki kavitao me bhav bahut sundar dhang se vyakt hote hain badhai kusum sinha
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