दोहा सलिला:
जब वीणा के तार की, सुन पड़ती झंकार
सलिल-कलम से शारदे, की होती मनुहार
जब जो चाहे लिखातीं, माँ मैं उनका यंत्र
सृजन कर्म का जानता, केवल इतना मंत्र
पाठक-श्रोता से मिले, माँ का कृपा प्रसाद
पा हो पाऊँ धन्य नित, इतनी है फरियाद
1 टिप्पणी:
kusum sinha kusumsinha2000@yahoo.com
bahut hi sundar saliljee hamesha aapki kavitao me bhav bahut sundar dhang se vyakt hote hain badhai kusum sinha
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