नवगीत:
लेटा हूँ
मखमल गादी पर
लेकिन
नींद नहीं आती है
.
इस करवट में पड़े दिखाई
कमसिन बर्तनवाली बाई
देह सांवरी नयन कटीले
अभी न हो पाई कुड़माई
मलते-मलते बर्तन
खनके चूड़ी
जाने क्या गाती है
मुझ जैसे
लक्ष्मी पुत्र को
बना भिखारी वह जाती है
.
उस करवट ने साफ़-सफाई
करनेवाली छवि दिखलाई
आहा! उलझी लट नागिन सी
नर्तित कटि ने नींद उड़ाई
कर ने झाड़ू जरा उठाई
धक-धक धड़कन
बढ़ जाती है
मुझ अफसर को
भुला अफसरी
अपना दास बना जाती है
.
चित सोया क्यों नींद उड़ाई?
ओ पाकीज़ा! तू क्यों आई?
राधे-राधे रास रचाने
प्रवचन में लीला करवाई
करदे अर्पित
सब कुछ
गुरु को
जो
वह शिष्या
मन भाती है
.
हुआ परेशां नींद गँवाई
जहँ बैठूं तहँ थी मुस्काई
मलिन भिखारिन, युवा, किशोरी
कवयित्री, नेत्री तरुणाई
संसद में
चलभाष देखकर
आत्मा तृप्त न हो पाती है
मुझ नेता को
भुला सियासत
गले लगाना सिखलाती है
.
लेटा हूँ
मखमल गादी पर
लेकिन
नींद नहीं आती है
.
इस करवट में पड़े दिखाई
कमसिन बर्तनवाली बाई
देह सांवरी नयन कटीले
अभी न हो पाई कुड़माई
मलते-मलते बर्तन
खनके चूड़ी
जाने क्या गाती है
मुझ जैसे
लक्ष्मी पुत्र को
बना भिखारी वह जाती है
.
उस करवट ने साफ़-सफाई
करनेवाली छवि दिखलाई
आहा! उलझी लट नागिन सी
नर्तित कटि ने नींद उड़ाई
कर ने झाड़ू जरा उठाई
धक-धक धड़कन
बढ़ जाती है
मुझ अफसर को
भुला अफसरी
अपना दास बना जाती है
.
चित सोया क्यों नींद उड़ाई?
ओ पाकीज़ा! तू क्यों आई?
राधे-राधे रास रचाने
प्रवचन में लीला करवाई
करदे अर्पित
सब कुछ
गुरु को
जो
वह शिष्या
मन भाती है
.
हुआ परेशां नींद गँवाई
जहँ बैठूं तहँ थी मुस्काई
मलिन भिखारिन, युवा, किशोरी
कवयित्री, नेत्री तरुणाई
संसद में
चलभाष देखकर
आत्मा तृप्त न हो पाती है
मुझ नेता को
भुला सियासत
गले लगाना सिखलाती है
.
7 टिप्पणियां:
Hiro Wadhwani
wah bahut sunder
Shanker Madhuker
" इस करवट में पड़ी (पड़े) दिखाई
कमसिन बर्तनवाली बाई "
ने दिल छू लिया। पूरी कविता श्लाघनीय। धन्यवाद।
Umesh Shrivastav
Wah .
Veena Vij vij.veena@gmail.com
हल्का- फुल्का गीत अच्छा लगा । कम से कम चेहरे पर मुस्कान तो आई ।
बधाई,
वीणा विज उदित
Kumar Gaurav Ajeetendu
yatharth chitran
Om Prakash Tiwari omtiwari24@gmail.com
आदरणीय आचार्य जी
बहुत सुन्दर ।
बस थोड़ा सावधानी बरतियेगा। घर से दूर रखिएगा इस नवगीत को।
सादर
ओमप्रकाश तिवारी
'Dr.M.C. Gupta' mcgupta44@gmail.com
सलिल जी,
बहुत नवीन और सुन्दर--
क्या कहिए कविवर तुमने तो कच्चा चिट्ठा खोल दिया है
मिसरी से मीठे शब्दों में ज्यों रहस्य-विष घोल दिया है
बर्तन और सफ़ाई वाली मालिन की तो बात बताई
घर वाली की बातों को लेकिन क्योंकर कर गोल दिया है?
--ख़लिश
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