माहिया: पंजाब का लोकगीत
नवीन चतुर्वेदी
*
स्रोत : ग़ज़ल सृजन - द्वारा श्री आर. पी. शर्मा महर्षि
पृष्ठ संख्या 92
यह पंजाब के एक लोकप्रिय गीत से अभिप्रेरित है। सन 1936 में गीतकार हिम्मतराय ने फ़िल्म 'ख़ामोशी' के लिए पहला माहिया लिखा था। माहिया - लेखन में डा. हैदर कुरैशी और डा. मनाज़िर आशिक हरगानवी के नाम प्रमुख हैं। माहिया में तीन मिसरे होते हैं, बह्र निम्न प्रकार है:
मफ़ऊलु मफ़ाईलुन
221 1222
फ़ैलु मफ़ाईलुन
21 1222
मफ़ऊलु मफ़ाईलुन
221 1222
कुछ ग़म के सिवा सोचें
रेत के टीले पर
हम बैठ के क्या सोचें - डा. मनाज़िर आशिक हरगानवी
बोसीदा इमारत है
शेरो सुख़न अब तो
लफ़्ज़ों की तिजारत है - डा. एस. पी. 'तफ़ता ज़ारी'
पैसे की हुकूमत है
झूठ की दुनिया में
सब इस की बदौलत है - एहतिशाम अख़्तर
तू लांस की लज़्ज़त दे
दिल में बिठा मुझको
थोड़ी सी मुहब्बत दे - मुईन महज़र
उदाहरण जहाँ तीनों मिसरे समान होते हैं यानि 221 1222
इस दौर में दहकाँ ही
बोलेगा अगर सच तो
पिछड़ा हुआ इंसाँ ही - डा. एस. पी. 'तफ़ता ज़ारी'
कुछ लोग माहिया यूँ भी लिखते हैं
22 112 22
फ़ैलुन फ़एलुन फ़ैलुन
22 22 2
फ़ैलुन फ़ैलुन फ़ा
22 112 22
फ़ैलुन फ़एलुन फ़ैलुन
बादल तो ज़रूर आये
लेकिन साजन का
संदेश नहीं लाये - आर. पी. शर्मा महर्षि
नवीन चतुर्वेदी
*
स्रोत : ग़ज़ल सृजन - द्वारा श्री आर. पी. शर्मा महर्षि
पृष्ठ संख्या 92
यह पंजाब के एक लोकप्रिय गीत से अभिप्रेरित है। सन 1936 में गीतकार हिम्मतराय ने फ़िल्म 'ख़ामोशी' के लिए पहला माहिया लिखा था। माहिया - लेखन में डा. हैदर कुरैशी और डा. मनाज़िर आशिक हरगानवी के नाम प्रमुख हैं। माहिया में तीन मिसरे होते हैं, बह्र निम्न प्रकार है:
मफ़ऊलु मफ़ाईलुन
221 1222
फ़ैलु मफ़ाईलुन
21 1222
मफ़ऊलु मफ़ाईलुन
221 1222
कुछ ग़म के सिवा सोचें
रेत के टीले पर
हम बैठ के क्या सोचें - डा. मनाज़िर आशिक हरगानवी
बोसीदा इमारत है
शेरो सुख़न अब तो
लफ़्ज़ों की तिजारत है - डा. एस. पी. 'तफ़ता ज़ारी'
पैसे की हुकूमत है
झूठ की दुनिया में
सब इस की बदौलत है - एहतिशाम अख़्तर
तू लांस की लज़्ज़त दे
दिल में बिठा मुझको
थोड़ी सी मुहब्बत दे - मुईन महज़र
उदाहरण जहाँ तीनों मिसरे समान होते हैं यानि 221 1222
इस दौर में दहकाँ ही
बोलेगा अगर सच तो
पिछड़ा हुआ इंसाँ ही - डा. एस. पी. 'तफ़ता ज़ारी'
कुछ लोग माहिया यूँ भी लिखते हैं
22 112 22
फ़ैलुन फ़एलुन फ़ैलुन
22 22 2
फ़ैलुन फ़ैलुन फ़ा
22 112 22
फ़ैलुन फ़एलुन फ़ैलुन
बादल तो ज़रूर आये
लेकिन साजन का
संदेश नहीं लाये - आर. पी. शर्मा महर्षि
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