चित्र पर कविता: 9
चित्र और कविता की कड़ी १ शेर-शेरनी संवाद, २ स्वल्पाहार, ३ दिल-दौलत, ४ रमणीक प्राकृतिक दृश्य, ५ हिरनी की बिल्ली शिशु पर ममता, ६ पद-चिन्ह, ७ जागरण 8 परिश्रम के पश्चात प्रस्तुत है चित्र 9 स्मरण. ध्यान से देखिये यह नया चित्र और रच दीजिये एक अनमोल कविता.
स्मरण
इस स्तम्भ की अभूतपूर्व सफलता के लिये आप सबको बहुत-बहुत बधाई. एक से बढ़कर एक रचनाएँ अब तक प्रकाशित चित्रों में अन्तर्निहित भाव सौन्दर्य के विविध आयामों को हम तक तक पहुँचाने में सफल रहीं हैं. संभवतः हममें से कोई भी किसी चित्र के उतने पहलुओं पर नहीं लिख पाता जितने पहलुओं पर हमने रचनाएँ पढ़ीं.
चित्र और कविता की कड़ी १ शेर-शेरनी संवाद, २ स्वल्पाहार, ३ दिल-दौलत, ४ रमणीक प्राकृतिक दृश्य, ५ हिरनी की बिल्ली शिशु पर ममता, ६ पद-चिन्ह, ७ जागरण 8 परिश्रम के पश्चात प्रस्तुत है चित्र 9 स्मरण. ध्यान से देखिये यह नया चित्र और रच दीजिये एक अनमोल कविता.
मुक्तिका:
स्मरण
संजीव 'सलिल"
*
मोटा कांच सुनहरा चश्मा, मानस-पोथी माता जी।
पीत शिखा सी रहीं दमकती, जगती-सोतीं माताजी।।
*
पापा जी की याद दिलाता, है अखबार बिना नागा।
चश्मा लेकर रोज बाँचना, ख़बरें सुनतीं माताजी।।
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बूढ़ा तन लेकिन जवान मन, नयी उमंगें ले हँसना।
नाती-पोतों संग हुलसते, थम-चल पापा-माताजी।।
*
इनकी दम से उनमें दम थी, उनकी दम से इनमें दम।
काया-छाया एक-दूजे की, थे-पापाजी-माताजी।।
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माँ का जाना- मूक देखते, टूट गए थे पापाजी।
कहते: 'मुझे न ले जाती क्यों, संग तुम्हारी माताजी।।'
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चित्र देखते रोज एकटक, बिना कहे क्या-क्या कहते।
रहकर साथ न संग थे पापा, बिछुड़ साथ थीं माताजी।।
*
यादों की दे गए धरोहर, सांस-सांस में है जिंदा।
हम भाई-बहनों में जिंदा, हैं पापाजी-माताजी।।
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
94251 83244 / 0761 2411131
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4 टिप्पणियां:
- madhuvmsd@gmail.com
आ.संजीव जी
माता जी पिताजी पर आपकी रचना अनुपम ही नही जीवंत भी है . वो दोनों साक्षात देखाई दे गए . क्षमा चाहती हूँ कि बहुत समय से आपको लिखा नही हालाकि हिन्दी अ अक्षर व पितृ पर्व , आदि एवं एनेको रचनायों का आनंद उठाया है .परन्तु कुछ लिख न पाई . मुझे बहुत उत्कृष्ट हिन्दी नही आती पर भाती खूब है देखिये न अंग्रेजी में एम् . ए किया और जब भी भाव उमड़े तो हिन्दी में प्रवाहित हुए .ऐसा क्यों हुआ आप ही बताएं . सादर
मधु
Kanu Vankoti kavyadhara
वाह ! मर्म को छूती हुई प्यारी रचना ,
ढेर सराहना के साथ,
कनु
Indira Pratap द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
भाई संजीव जी इस कविता को तो मैं सिर्फ़ हाथ जोड़ कर नमन ही कर सकती हूँ कुछ और कहनें की शक्ति मुझमें नहीं है | यह एक ऐसा विषय है मेरे लिए जो दिल शिद्दत से महसूस करता है और मेरी आँखें भिगो देता है | माँ बाबु जी को स्मरण कर उनको प्रणाम करती हूँ ,बस इतना ही |
दिद्दा!
प्रणाम।
रचना ने आपके मन को स्पर्श किया तो लेखन कर्म सार्थक हो गया।
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