आज का विचार thought of the day:
मन ने कल्पित किया कभी कुछ
निराकार साकार भी।
सच पाया था 'सलिल' कुछ न कुछ
निराधार साधार भी।।
मन ने कल्पित किया कभी कुछ
निराकार साकार भी।
सच पाया था 'सलिल' कुछ न कुछ
निराधार साधार भी।।
जो न बदल पाऊँ, कर पाऊँ जस का तस, स्वीकार मैं।
बदल सकूँ जो, साहस दे बदलूँ कर अंगीकार मैं।।
और बुद्धि दे जो अंतर को अंतर में स्थान दे-
मौन होकर अशुभ-अनय का करूँ 'सलिल' प्रतिकार मैं।।
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