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शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

विचारोत्तेजक लेख: इस्लाम : एक वैदिक धर्म प्रकाश गोविन्द

विचारोत्तेजक लेख:
इस्लाम : एक वैदिक धर्म 
 
प्रकाश गोविन्द
*   
वेद सार्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ हैं तथा वैदिक आचरणों से परे न तो कोई अराधना विधि है और न प्रभु तक पहुँचने का मार्ग ! क्षेत्र विशेष तथा समयानुसार इसमें स्वाभाविक परिवर्तन तो होते रहे हैं परन्तु मूल वेद ही रहे ! अनेकानेक विद्वानों के अनुसार 'इस्लाम' भी वैदिक पद्धति पर ही आधारित है ! 

संस्कृत भाषा में 'मख' का अर्थ पूजा की अग्नि होता है सभी जानते हैं कि इस्लाम के आने से पहले समस्त पश्चिम में अग्नि-पूजा का चलन था ! 'मख' इस बात का सूचक है कि  वहां एक विशिष्ट अग्नि-मंदिर था ! 'मक्का-मदीना' वास्तव में 'मख-मेदिनी' अर्थात यज्ञं की भूमि का सूचक है ! 

इस्लाम धर्म के अनुयायी सामान्य रूप से विस्मयादिबोधक अव्यय एवं आराधना के लिए 'या अल्लाह 
(अल्ल: ) का प्रयोग करते हैं ! यह शब्द भी विशुद्ध रूप से संस्कृत मूल का है ! संस्कृत में अल्ल: , अवकः  और अन्बः  पर्यायवाची हैं और इनका अर्थ माता अथवा देवी से होता है ! माँ दुर्गा का आवाह्न  करते समय 'अल्ल :' का प्रयोग किया जाता है ! अतः 'अल्लाह' शब्द इस्लाम में पुरातनकाल से संस्कृत से ज्यों का त्यों ग्रहण कर प्रयोग में लाया गया ! 

मुस्लिम में माह 'रबी' सूर्य के द्योतक  'रवि' का अपभ्रंश लगता है क्योंकि संस्कृत का 'व'  प्राकृत में 'ब' में परिवर्तित हो जाता है ! 

यह आश्चर्यजनक समानता है कि अधिकाँश मुस्लिम त्यौहार शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाये जाते हैं, जो एकादशी के पुरातन वैदिक महत्त्व का द्योतक है ! 
इसी प्रकार संस्कृत में 'ईड ' का अर्थ पूजन है ! पूजा से आनंद जन्मता है ! आनंदोत्सव के रूप में इस्लाम का शब्द 'ईद' विशुद्ध रूप से संस्कृत का ही है ! 

हिन्दू धर्म में राशियों का विवरण है ! एक राशि 'मेष' है, जिसका सम्बन्ध मेमने (भेड़) से है !  पुराने समय में जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता था, तो नवीन वर्ष का आरम्भ होता था ! इस अवसर पर मांस-भोजन का प्रचलन था ! लोग ऐसा करके अपनी ख़ुशी प्रकट करते थे ! 'बकरी- ईद' का उदभव भी इसी तरह हुआ होगा ! 

ईदगाह भी इसी तरह सामने आया होगा ! जहाँ तक नमाज़ का सवाल है, वह संस्कृत की दो धातुएं 'नम' और  'यज' से व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ झुकना तथा पूजा करना है ! 

रमजान के महीने को अरबी भाषा में 'सियाम' भी कहा जाता है ! 'सियाम' शब्द  'सौम' से बना है, जिसका अर्थ है - रुक जाना अर्थात एक विशेष अवधि तक के लिए खाने-पीने एवं स्त्री प्रसंग में रुक जाना !      

प्रार्थना करने से पहले शरीर के पांच भागों की स्वच्छता मुस्लिमों के लिए अनिवार्य है ! यह विधान भी 'शरीर शुद्धयर्थ पंचांगन्यास' से ही व्यत्पन्न स्पष्ट होता है ! 

इस्लाम धर्म की मान्यता के अनुसार उनके अनुयायिओं के लिए पांच फ़र्ज़ हैं --
1- तौहीद - (एक ईश्वर और अंतिम पैगम्बर पर ईमान)
2- नमाज़ - (उपासना) 
3- रोजा - (उपवास) 
4- ज़कात - (सात्विक दान) 
5- हज - (तीर्थाटन)  

इससे प्रतीत होता है कि मूलाधार एक ही है, सिर्फ पूजाविधि परिवर्तित है   


प्रस्तुति -                        

17 टिप्‍पणियां:

sn Sharma द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

sn Sharma द्वारा yahoogroups.com

आ0 प्रकाश जी ,
इस शोधपरक आलेख हेतु आपको साधुवाद । इस प्रकार की शोध को
जो मुस्लिम धर्म की शिखर संस्थाएं हैं उन्हें भी प्रेषित कर उनकी
प्रतिक्रिया को जानना आवश्यक है । देखना होगा की इन तथ्यों को
वे किस प्रकार नकारते हैं ।
कमल

Divya Narmada ने कहा…

क्या इसका आशय यह लिया जाए की इस्लाम वैदिक सनातन धर्म का एक रूप है इसलिए सनातनियों का इस्लाम में धर्मान्तरण वेदानुसार सही है? यह प्रचार तो सारे इस्लामी बन्धु जोर-शोर से कर ही रहे हैं। अगर इस सत्य पर पूरे मन से विश्वास है तो मुसलमान बिटियों को हिन्दू से विवाह और हिन्दू बिटियों को मुसलमानों से विवाह करने में किसी को कोई आपत्ति नहीं उठानी चाहिए।

deepti gupta द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

deepti gupta द्वारा yahoogroups.com

आदरणीय संजीव जी,

हिन्दी साहित्य में एक प्रतिष्ठित लेखक का निबंध है-हजारीप्रसाद द्विवेदी या अन्य किसी लेखक का. इस समय नाम याद नहीं आ रहा! उन्होंने विभिन्न धर्मों की खास-खास समानताओं को लेकर वह निबंध लिखा है तथा यह कहना चाहा है कि संसार के लोग धर्म, जाति आदि को लेकर
जब-तब झगडते रहते हैं, धर्म के नाम पर खून- खराबा करते हैं, लेकिन उनका ध्यान कभी भी उनकी आश्चर्यजनक मूलभूत समानताओं पर नहीं जाता!
संजीव जी,
किसी भी लेखक द्वारा इस तरह का निबंध लिखने के पीछे यह मंशा नही होती कि लोग धर्मंतारण करने लगे, बल्कि परस्पर शांति, सद्भाव बनाए रखना होता है! क्योंकि जब अधिकतर धर्म अपने मूलभूत रूप में बहुत अंशों तक एक हैं, एक सी सीख देते हैं, प्रेम,करुणा, दया, त्याग,सहानुभूति आदि का सन्देश देते हैं, तो धर्मंतारण की ज़रूरत ही कहाँ रह जाती हैं! हर धर्म में कुछ कुण्ठित-लुंठित लोग होते हैं जो धर्मंतारण करने की बात करते हैं! जो समझदार हिन्दू-मुस्लिम लोग है, वे कतई इस तरह की बात उठाते ही नहीं! यहाँ तक कि अंतरजातीय विवाह में यदि जोड़े में एक हिन्दू और एक मुस्लिम है तो किसी के भी घरवाले न तो धर्म परिवर्तन की और न नाम परिवर्तन की बात करते हैं! जो जैसा है, उसे वैसा ही स्वीकार करते हैं! पूना के ज़िला अहमदनगर में 'वडाला गांव' का फरीद तैयबजी और उनकी पत्नी फातिमा तैयबजी का प्रसिद्ध मुस्लिम परिवार है, जो गांधी जी के कट्टर अनुयायी रहे! उनके खानदान की अधिकतर बेटियों ने हिन्दू परिवारों में बिना धर्म परिवर्तन के विवाह किए हैं! हिन्दू परिवारों ने भी मुस्लिम परिवार की लडकियों को अपने घर की बहुओं के रूप में उदारता से अपनाया! फरीद साहब की पोती 'रिज़वाना कश्यप'पूना के भूतपूर्व पुलिस कमिश्नर विजय कश्यप जी की पत्नी हैं जो हमारी 'दीदी-दोस्त' हैं और घर के पास- कल्याणी नगर में ही रहती है! उनके भाई ने भी हिन्दू लड़की से शादी की है! अभी रिज़वाना दीदी को फोन करके हमने अपनी जानकारी को पक्का किया तो उन्होंने सारी बातें बड़े प्यार से Confirm की और बोली- 'इतने पास रहती हो किसी दिन घर आओ न! पिछले साल भी तुमसे आने के लिए कहा था, तब भी नहीं आई!'
हमने क्षमा माँगते हुए, माँ की वजह से कहीं भी न जाने पाने कि मजबूरी जताई तो अब वे ही एक दिन हमसे मिलने आनेवाली हैं!

शाहरुख खान, अमीर खान, सैफअली खान ने हिदू परिवारों में ही अपने जीवनसाथी खोजे- किसी ने भी न तो उनका धर्मंतरण किया और न नामंतारण! ऐसे परिवार ईद, दीवाली, शब्बेरात, दशहरा, बिना किसी मनमुटाव के प्रेम से मनाते हैं तथा दोनों धर्मों का आदर करते हैं!
जब झगड़ा होना हो, तो एक ही धर्म के लोगों में हो जाता है! इसी तरह तलाक हिन्दू पति-पत्नी और मुस्लिम पति-पत्नी में हो जाता है! यह सब सोच की असमानता और समानता पर निर्भर करता है- धर्म और जाति पर नहीं! धर्म और जाति के नाम पर तो छोटी सोच वाले, दुर्बुद्धि लोग झगड़े किया करते हैं- आप और हम जैसे विचारशील और उदार मनस लोग नहीं!

प्रकाश गोविन्द जी द्वारा, अपने लघु आलेख में सनातन और इस्लाम धर्म की समानताओं का उल्लेख करने के पीछे मात्र एकता की सद्भावना है- जिसकी हमें मुक्त कंठ से सराहना करनी चाहिए!
सादर,
दीप्ति

Divya Narmada ने कहा…

दीप्ति जी!
किसी मसले को देखने के नजरिये अलग-अलग हो सकते हैं। मैं जो बात कहना चाहता हूँ वह यह कि पिछले 5000 सालों से बहाव एक तरफ़ा है। आप जिन अपवादों का ज़िक्र कर रहीं हैं उन्हें सब जानते हैं पर उनसे जमीनी सच्चाई नहीं बदलती। हम आज भी खाप पंचायतें लगाकर अपनी बच्चियों को सिर्फ इसलिए मार रहे हैं कि वे मन पसंद जीवन साथी चाहती हैं। विधर्मी तो दूर हम सधर्मी और सजातीय को भी नहीं स्वीकार पा रहे। दूसरी ओर इस पुरुष प्रधान समाज में हिन्दू बहू बननेवाली अहिंदू कन्याओं और अहिंदू बहू बननेवाली हिन्दू कन्याओं का अनुपात देखें तो 1 : 100 है। इस असमानता के कारण हमीं हैं। हाँ यश सच क्यों नहीं स्वीकारते कि निरीश्वरवादी, एकेश्वरवादी और बहु ईश्वरवादी सभी वैदिक सनातन धारण के अंग हैं और उनमें पारस्परिक विवाह सम्बन्ध स्वागतेय है।

''क्या इसका आशय यह लिया जाए की इस्लाम वैदिक सनातन धर्म का एक रूप है इसलिए सनातनियों का इस्लाम में धर्मान्तरण वेदानुसार सही है? यह प्रचार तो सारे इस्लामी बन्धु जोर-शोर से कर ही रहे हैं। अगर इस सत्य पर पूरे मन से विश्वास है तो मुसलमान बिटियों को हिन्दू से विवाह और हिन्दू बिटियों को मुसलमानों से विवाह करने में किसी को कोई आपत्ति नहीं उठानी चाहिए।''

उक्त टिप्पणी में मैंने गलत क्या लिखा? उत्तर यह होना चाहिए कि एक धर्म से दूसरे धर्म में स्थानांतरण यदि स्वेच्छा और आस्था के अधर पर है तो सही है, किसी लोभ, भय या बलात है तो गलत। दूसरे भाग का उत्तर केवल हाँ है। आपने इसी हाँ के कुछ उदाहरण प्रस्तुत किये हैं।

मैंने लेखक की मंशा पर सवाल कहाँ उठाया है? आपके इस आरोप को पूरी तरह अमान्य करता हूँ। मुझे इससे ठेस लगी है।

जिन समझदारों का उल्लेख टिप्पणी में है वे कहाँ थे जब कश्मीरी ब्राम्हणों को जुल्मों का शिकार होना पड़ा?

मैं और लेखक महोदय एक ही देशा में सोच रहे हैं, संभवतः आपकी सोच भी वही है--- आपने कुछ उदाहरण दिए हैं। मैं आम आदमी की सोच और बहुसंख्यक लोगों की पीड़ा का भागीदार हूँ।

- mcdewedy@gmail.com ने कहा…

- mcdewedy@gmail.com

Prakash JI,
One has to read Qoran to know the difference between Islam and Hinduism. Qoran specifically insists that there is no God excepting Allah and there is no wisdom excepting that stated by Allah through his messenger in 6th century. No criticism or alteration through introspection is allowed in islam, whereas Hinduism is and has been a religion based on wisdom gained through experience and shastrarth. It is a continuing process.
In Islam even giving a different opinion is Kufr. And in any case 'Murti-Puja' is totally unacceptable.
Mahesh Chandra Dewedy

Divya Narmada ने कहा…

महेश जी इतना ही नहीं--- बुत शिकनी (मूर्ति भंजन ) अन्य धर्मावलम्बियों को मुसलमान बनाना सबाब (पुण्य)कहा गया है। प्रकाश जी के मत से हम सहमत हों भी तो क्या? क्या कोई मौलवी इसे मानेगा?

deepti gupta @ yahoogroups.com vicharvimarsh ने कहा…

deepti gupta @ yahoogroups.com
vicharvimarsh

....मैंने लेखक की मंशा पर सवाल कहाँ उठाया है? आपके इस आरोप को पूरी तरह अमान्य करता हूँ। मुझे इससे ठेस लगी है।

१)मैंने लेखक की मंशा पर सवाल कहाँ उठाया है?

संजीव जी, सवाल कई बार direct तरह से नहीं, तो indirect ढंग से उठा दिए जाते हैं! प्रश्नचिन्ह सहित आपका यह वाक्य किसी सवाल से कम है क्या? किसी से भी पूछिए- हर कोई इसे सवाल उठाना ही कहेगा!

एक बार अपना यह सवालिया वाक्य फिर से पढ़ कर देखिए-----
क्या इसका आशय यह लिया जाए की इस्लाम वैदिक सनातन धर्म का एक रूप है इसलिए सनातनियों का इस्लाम में धर्मान्तरण वेदानुसार सही है?

२) आपके इस आरोप को पूरी तरह अमान्य करता हूँ। मुझे इससे ठेस लगी है।
हमारा आपको उदाहरण देकर समझाना अगर आरोप लगा और आपको ठेस लगी तो, चर्चा यही पर समाप्त!
इस तरह किसी भी विषय पर स्वस्थ चर्चा संभव नहीं! हम और आप व्यक्तिगत होकर तो कुछ लिख नहीं रहे!
जबकि आपने तो लेखक के विचारों का 'आशय' तक पढ़ भी लिया और सवाल भी उठा दिया- तब भी न तो लेखक ने और (इस विषय में रूचि ले कर चर्चा का हिस्सा बननेवाले) हमने किसी बात का बुरा माना! क्योंकि हम तटस्थ भाव से चर्चा में लगे हैं!
हमारा समझाने का स्वर भी आपको आरोप लगा तो आपकी ठेस को देखते हुए हम अब चुप रहेगें! क्योंकि किसी को भी आहत करना हमारा ध्येय नहीं है!

सादर,
दीप्ति

बेनामी ने कहा…

जिज्ञासा प्रगट करना और मंशा पर प्रश्नचिन्ह लगाना दो अलग बातें हैं। यदि इस मंच पर इतनी स्वतंत्रता भी नहीं है तो मुझे यहाँ रहने के बारे में सोचना होगा।

prakashgovind1@gmail.com ने कहा…

prakash govind द्वारा yahoogroups.com

आदरणीय संजीव जी
अबये भला क्या बात हुयी?
आपने अपनी बात रखी और दीप्ति जी ने अपनी बात रखी! बस!! हो गया!

हम क्या बच्चे हैं?
ऐसी तुनकमिजाजी क्या अच्छी लगती है?
आप अपनी बात कहने के लिए स्वतंत्र हैं
पर दुसरे को भी तो स्वतंत्रता दीजिये न!
ये परिचर्चा में ठेस लगने जैसी बात क्यों?

आपके विचारों का स्वागत है!

Divya Narmada ने कहा…

deepti gupta @ yahoogroups.com

प्रकाश जी के आलेख को गलत तरह से व्याख्यायित किया जा रहा है! वे केवल कुछ समानताओं की ओर संकेत कर रहे हैं और आपने इस्लाम और हिन्दू धर्म की विभिन्नताओं की ओर विषय को मोड दिया! अगर विभिन्नताओं को ही देखना है तो हिंदुओं के सगुण मार्गी और निर्गुण मार्गी धर्म पद्धतियों में ज़मीन आसमान का अंतर है ! इस तरह तो इस्लामियों और आर्य समाजियों - दोनों में मूर्तिपूजा के लिए कोई स्थान नहीं ! देखा जाए तो निर्गुण मार्गी धर्म पद्धति और इस्लाम आराधना की पद्धति की यह भी एक समानता है !
इतना ही नहीं पश्चिम के कुछ त्यौहारों और भारतीय त्यौहारों में भी लोगों ने समानता खोजी हैं ! जैसे ईस्टर और होली !

- mcdewedy@gmail.com ने कहा…

- mcdewedy@gmail.com

Deepti Ji,
Islam ke anusar kisi bhi vidharmi vyakti ka vivah islamic paddhati se tabhi jayaz hai, jab wah Islam dharm ko sweekar kar le. Atah wahan kewal ektarfa Ganga bahati hai.
Mahesh Chandra Dwivedy

sanjiv verma salil ने कहा…

बात कहने का अर्थ आरोप लगाना नहीं होता। मैंने आपकी मंशा पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया। केवल जिज्ञासा प्रगट की थी पूरी सदिच्छा के साथ।
अन्य पाठक भी अपनी बात कहें किन्तु औरों पर आरोप लगाये बिना।
अन्यथा यही तय कर दिया जाए कि केवल प्रशंसात्मक टीप दी जाए।

sanjiv verma salil ✆ ने कहा…

आर्य समाज मूर्ति पूजा नहीं करने के बाद भी किसी की मूर्तियाँ तोड़ता नहीं है। इस्लाम और आर्य समाज दोनों में सहिष्णुता के स्तर में जमीन-आसमान का अंतर है।

Kanu Vankoti ने कहा…

Kanu Vankoti

हिंदु कम हैं क्या तोड़-फोड में? उन्होंने तो बाबरी मस्जिद तोड़ दी थी.

तोड़-फोड का काम अच्छे मुसलमान नहीं कट्टर फेनेटीक ही करते हैं.

दीप्ति जी ने चुप रहने की कसम खाई है! इस चर्चा को यदि यही खत्म किया जाए तो ठीक रहेगा

सादर,
कनु

sn Sharma द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

sn Sharma द्वारा yahoogroups.com
vicharvimarsh


मेरे विचार से लेख का आशय केवल इतना था कि सनातनधर्म से जुड़े मूर्ती-पूजा और यज्ञ आदि के आचरण को अधर्म माननेवाले इस्लाम धर्म को आइना दिखाया जाय की वे जिस कृत्य का अनादर कर रहे हैं अपरोक्ष रूप से स्वयं उससे कितना जुड़े हैं ।
यहाँ अंतर्धार्मिक सहभागिता जैसा कोई संकेत नहीं था।
कमल

- mcdewedy@gmail.com ने कहा…

- mcdewedy@gmail.com

’हंस’ में तालिबानी उद्गार

जनाब मोहम्मद आरिफ़ दगिया का ’यह हंस का पांचजन्यीकरण है(जुलाई, २०११)’ शीर्षक लेख गम्भीरतापूर्वक विचारणीय एवं चिंतनीय है, क्योंकि यह भारत के एक उच्चशिक्षित व्यक्ति द्वारा लिखा गया है और उसके विचारों, आक्रोशों एवं मंशाऒं को उद्भासित करता है. अतः इसके महत्वपूर्ण अंशों को उद्धृत करते हुए उन पर संक्षिप्त टिप्पणी पाठकों के विचारार्थ प्रस्तुत कर रहा हूं:
अ. "सलमान तासीर और शहबाज़ भट्टी की हत्या से पाकिस्तान के ’तहफ़्फ़ुज़े नामूसे रिसालत’ कानून पर बहस छिड़ गई है. बहस जिस तरह खतरनाक मोड़ ले रही है, उससे इस बात की आशंका है कि मुस्लिम कट्टरपंथियों की आलोचना को लेकर की जा रही यह बहस ऐसे देशों के बहुसंख्यक कट्टरपंथियों को फ़ायदा पंहुचा सकती है जहां मुसलमान अल्पसंख्यक हैं."
यह सोचने का विषय है कि विद्वान लेखक को इस कानून की बर्बरता से कोई चिंता उत्पन्न नहीं होती है, वरन चिंता इस बात की है कि इस पर बहस छिड़ जाने से पाकिस्तान, जो इस्लामिक देश है, के कानून की बर्बरता उजागर हो रही है. यदि कतिपय गैर इस्लामिक देश इस विषय पर बहस छेड़ते हैं, तो इसमें लेखक को ’बहुसंख्यक कट्टरपंथियों का फ़ायदा’ होने की आशंका नज़र आने लगती है.
ब. "उक्त कानून का उदाहरण देकर शीबा असलम ने कहा है कि मुसलमान जहां कहीं सत्ता में हैं, वहा गैरमुस्लिमों को मज़हबी आज़ादी नहीं देते है, मगर जहां खुद अल्पसंख्यक हैं वहां अपने भले के लिये उन्हें विशेष प्राविधान चाहिये."
लेखक महोदय कृपया विचार करें कि शीबा असलम ने यह तथ्य कहकर क्या गुनाह किया है? आप दुनिया के नक्शे में विश्व के उन देशों के नाम ढूंढने का प्रयत्न करें, जो इस्लामिक हैं और विधर्मियों को कानूनन वह आज़ादी दिये हुए हैं जो अमेरिका, योरुप, भारत आदि जनतांत्रिक देशों में मुसलमानों को प्राप्त है.

- mcdewedy@gmail.com ने कहा…

स. "ब्रिटेन, हालैंड, बेल्जियम बल्कि सम्पूर्ण योरुप में सेकुलरिज़्म के नाम पर मुसलमानों के साथ जो मक्कारी की जा रही है, वह तक़ैया का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है. इसी तक़ैय्या के पीछे पश्चिम के क्रूसेडी इरादे छिपे हुए हैं- याने इस्लाम पर धार्मिक और सांस्कृतिक हमले करके यूरोप में उसके फैलाव को रोकना. बुर्के पर प्रतिबंध लगाना इन्हीं मामलों की एक कडी है."
यहां सेकुलरिज़्म के नाम पर मक्कारी की बात करते हुए लेखक अपनी नाराज़गी के असली कारण को स्वयं बयां कर गया है- ’योरुप में इस्लाम के फैलाव को रोकने का प्रयत्न’. लेखक को इस बात की टीस है कि ये देश इस्लाम के फैलाव को रोकने का प्रयत्न क्यों कर रहे हैं. लेखक महोदय सोचें कि अपनी वास्तविक मंशा को छिपा कर इन देशों के इस्लामिक साम्राज्यवाद से बचने के प्रयत्न को सेकुलरिज़्म की मक्कारी बताकर आप तक़ैया नहीं कर रहे हैं, तो क्या कर रहे है.
कृपया इस बात पर भी विचार करें कि विभिन्न देशों में रहने वाले मुसलमान ही क्यों अमेरिका में ९/११, ब्रिटेन की ट्रेनों-बसों में बम्ब-ब्लास्ट, रूस में सिनेमा हाल में फ़ायरिंग, इंडोनेशिया के हिंदू बाहुल्य बाली द्वीप में होटल पर हमला और भारत में रेल में बंदकर हिंदुओं को जलाने एवं वार्षिक (कभी-कभी मासिक भी) बमबारी करते हैं- बौद्ध, हिंदू, यहूदी, पारसी आदि क्यों नहीं?
लेखक इन देशों को अपने देश में ऐसे इस्लाम के फैलाव को रोकने हेतु आवश्यक कदम उठाने का अधिकार भी नहीं देना चाहता है.
द. ’बेशर्मी की हद..........इन दोगलों का मकसद..........इन देशी-विदेशी राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय तक़ैयाबाज़ों के सामने मुल्ला की मक्कारी तो कहीं ठहरती ही नहीं जनाबेआली.......साधु-साध्वियों का चोला धारण करेंगे मगर बम धमाकों को अन्जाम देकर सैकड़ों निर्दोषों को मौत के घाट उतार देंगे."
कृपया एक बार अवश्य विचार कर लें कि भारत सहित अन्य अनगिनत देशों में जिहादी पैदा कर बम-ब्लास्ट कराने एवं हवाई जहाज़ को ट्रेड टावर से लड़वा देने में अधिक बेशर्मी, दोगलापन और तक़ैयाबाज़ी है या अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु बुर्का पहनना रोकने में? इसके अतिरिक्त इस पर भी विचार कीजिये कि कठमुल्ला जब निर्दोषों को मारने हेतु अपनी जान दे देना धार्मिक कर्तव्य घोषित कर चुका है और अनेक सिरफिरे मुस्लिमों द्वारा दिन-रात उस कर्तव्य का पालन किया जा रहा है, तो क्या अन्य धर्म वाले चूड़ी पहन कर बैठे रहें और जिहादी बमबाज़ी के शिकार होते रहें?
द."यह कैसी त्रासद विडम्बना है कि मुसलमानों द्वारा किये अत्याचार तो सारे विश्व में हाईलाइट किये जाते हैं पर मुसलमानों पर होने वाले अत्याचार न्यायसंगत ठहरा दिये जाते हैं या नज़रअंदाज़ कर दिये जाते हैं."
कृपया यह सोचें कि क्या ईसाई हिटलर द्वारा यहूदियों पर किये गये अत्याचार ईसाई प्रेस द्वारा हाईलाइट नहीं किये गये थे? केवल मज़हबी डिक्टेटरशिप वाले देशों में ही सलमान रुश्दी या तस्लीमा नसरीन के खिलाफ़ फ़तवे देकर उन्हें चुप करा दिया जाता है. जनतांत्रिक देशों में नहीं.
यह भी विचारणीय है कि इस्लामिक सत्ता वाले देशों में शिया, अहमदिया, मोहाजिर, बहाई आदि के नाम पर निर्दोषों को मारने की घटनायें अनवरत क्यों होती रहतीं हैं- अल्लाह के बंदे तक सुरक्षित नहीं हैं.
कृपया यह मत भूलिये कि यदि दुनिया के सभी मज़हब आप के खिलाफ़ हैं, तो दूसरों पर दोष थोपने के बजाय आप को आत्ममंथन की आवश्यकता पहले है. झूठमूठ की ’इंजर्ड पर्सन्स मेंटैलिटी’ बना कर अन्य सभी देशों और धर्मों पर दोष मढ़ते हुए सम्पूर्ण मानवता को शांति से न जीने देने से जितनी दूसरों की हानि होगी, उससे कहीं अधिक अपनी. पाकिस्तान इसका ज्वलंत उदाहरण है.