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शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

कजरी गीत: गौरा वंदना -संजीव 'सलिल'

कजरी गीत:





गौरा वंदना
संजीव 'सलिल'
*
गौरा! गौरा!! मनुआ मानत नाहीं, दरसन दै दो रे गौरा!
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गौरा! गौरा!! तुम बिन सूना है घर, मत तरसाओ रे गौरा!
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गौरा! गौरा!!  बिछ गये पलक पाँवड़े, चरण बढ़ाओ रे गौरा!
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गौरा! गौरा!! पीढ़ा-आसन सज गए, आओ बिराजो रे गौरा!
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गौरा! गौरा!! पूजन-पाठ न जानूं, भगति-भाव दो रे गौरा!
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गौरा! गौरा!! कुल-सुहाग की बिपदा, पल में टारो रे गौरा!
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गौरा! गौरा!! धरती माँ की कैयाँ हरी-भरी हो रे गौरा!
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गौरा! गौरा!! लोभ-द्वेष महिषासुर, मार भगाओ रे गौरा!
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गौरा! गौरा!! पान-फूल स्वीकारो, भव से तारो रे गौरा!
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9 टिप्‍पणियां:

Lalit Walia ekavita ने कहा…

Lalit Walia ekavita


आ संजीव जी ..,
पढने व गुनगुनाने का आकर्षण धारण किये इस वंदना-रचना के लिए आप भी वन्दनीय हैं । सराहना स्वीकार करें ..
~ 'आतिश

Divya Narmada ने कहा…

सलिल की सार्थकता तो गौरा के पग-प्रक्षालन में ही है। और गौरा के भक्त दोनों ही सलिल के लिए वन्दनीय हैं।

- prans69@gmail.com ने कहा…

PRAN SHARMA द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara


सलिल जी,
आपके कजरी गीत(गौरा वंदना)से आनंदित हो गया हूँ.
प्राण शर्मा

deepti gupta द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

deepti gupta द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara

अप्रतिम .....! अनुपम.....!

सादर,
दीप्ति

sn Sharma द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

sn Sharma द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara


आ0 आचार्य जी ,
इतने सुन्दर सामयिक कजरी गीत के लिए आपको साधुवाद ।
ऐसे गीत समूह की काव्य-यात्रा में पाठक को तरंगित कर देते हैं ।
सदर कमल

- murarkasampatdevii@yahoo.co.in ने कहा…

- murarkasampatdevii@yahoo.co.in
अति सुन्दर आ. सलील जी.
सादर
संपत

- shishirsarabhai@yahoo.com ने कहा…

- shishirsarabhai@yahoo.com

आनंद आ गया आपकी कजरी पढ़ कर , संजीव भाई.

अनन्य सराहना स्वीकारें,
सादर,'
शिशिर

Kanu Vankoti kavyadhara ने कहा…

Kanu Vankoti kavyadhara

निसंदेह बहुत मनहर , संजीव भाई
सादर,
कनु

kusum sinha, ekavita ने कहा…

kusum sinha, ekavita


priy sanjeev ji
aap[ki vidwath ko mera sat sat naman aap to har vidha me vaise hi bejod likhte hain bhagwan kare aap sada swasth rahen aur khub likhen

kusum