माहिया:
दिन आस निरास के हैं
शशि पाधा
*
दिन आस निरास भरे
धीरज रख रे मन
सपने विश्वास भरे
*
सूरज फिर आएगा
बादल छंटने दो
वो फिर मुस्काएगा
*
हर दिवस सुहाना है
जीवन उत्सव सा
हँस हँस के मनाना है
*
दुर्बल मन धीर धरो
सुख फिर लौटेंगे
इस पल की पीर हरो
*
बस आगे बढ़ना है
बाधा आन खड़ी
साहस से लड़ना है
*
थामो ये हाथ कभी
राहें लम्बी हैं
क्या दोगे साथ कभी
*
फिर भोर खड़ी द्वारे
वन्दनवार सजे
क्यों बैठे मन हारे
*
नदिया की धारा है
थामों पतवारें
उस पार किनारा है
*
हाथों की रेखा है
खींची विधना ने
वो “कल’ अनदेखा है
*
दिन कैसा निखरा है
अम्बर की गलियाँ
सोना सा बिखरा है
*
शशि पाधा १७ सितम्बर २०१२
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