*
माँ थीं आँचल, लोरी, गोदी, कंधा-उँगली थे पापाजी.
माँ थीं मंजन, दूध-कलेवा, स्नान-ध्यान, पूजन पापाजी..
*
माँ अक्षर, पापा थे पुस्तक, माँ रामायण, पापा गीता.
धूप सूर्य, चाँदनी चाँद, चौपाई माँ, दोहा पापाजी..
*
बाती-दीपक, भजन-आरती, तुलसी-चौरा, परछी आँगन.
कथ्य-बिम्ब, रस-भाव, छंद-लय, सुर-सरगम थे माँ-पापाजी..
*
माँ ममता, पापा अनुशासन, श्वास-आस, सुख-हर्ष अनूठे.
नाद-थाप से, दिल-दिमाग से, माँ छाया तरु थे पापाजी..
*
इनमें वे थे, उनमें ये थीं, पग-प्रयास, पथ-मंजिल जैसे.
ये अखबार, आँख-चश्मा वे, माँ कर की लाठी पापाजी..
*
माला-जाप, भाल अरु चंदन, सब उपमाएँ लगतीं बौनी,
माँ धरती सी क्षमा दात्री, नभ नीलाभ अटल पापाजी..
*
माँ हरियाली पापा पर्वत, फूल और फल कह लो चाहे.
माँ बहतीं थीं 'सलिल'-धार सी, कूल-किनारे थे पापाजी..
*
माँ थीं आँचल, लोरी, गोदी, कंधा-उँगली थे पापाजी.
माँ थीं मंजन, दूध-कलेवा, स्नान-ध्यान, पूजन पापाजी..
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माँ अक्षर, पापा थे पुस्तक, माँ रामायण, पापा गीता.
धूप सूर्य, चाँदनी चाँद, चौपाई माँ, दोहा पापाजी..
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बाती-दीपक, भजन-आरती, तुलसी-चौरा, परछी आँगन.
कथ्य-बिम्ब, रस-भाव, छंद-लय, सुर-सरगम थे माँ-पापाजी..
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माँ ममता, पापा अनुशासन, श्वास-आस, सुख-हर्ष अनूठे.
नाद-थाप से, दिल-दिमाग से, माँ छाया तरु थे पापाजी..
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इनमें वे थे, उनमें ये थीं, पग-प्रयास, पथ-मंजिल जैसे.
ये अखबार, आँख-चश्मा वे, माँ कर की लाठी पापाजी..
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माला-जाप, भाल अरु चंदन, सब उपमाएँ लगतीं बौनी,
माँ धरती सी क्षमा दात्री, नभ नीलाभ अटल पापाजी..
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माँ हरियाली पापा पर्वत, फूल और फल कह लो चाहे.
माँ बहतीं थीं 'सलिल'-धार सी, कूल-किनारे थे पापाजी..
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14 टिप्पणियां:
Indira Pratap @ yahoogroups.com
kavyadhara
भाई सलिल जी ,
शब्द तर्पण पढ़ते ही आँखे भर आईं| उन्हीं आसूँ से भरी आँखों से लिख रही हूँ | आज मेरे पिताश्री, माताश्री और मेरे पति का श्राध है| ये तीनों और मेरी छोटी बहिन मधु ये सब मेरे जीवन के संबल थे जो आज नहीं हैं | शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल है जो आपकी यह कविता पढ़ कर लगा | इस कविता ने तो झकझोर कर रख दिया | मैं जब मन ही मन कामना कर रही थी कि हर जन्म में ये ही मेरे माता पिता और बहन बनें तभी यह कविता सामने आगई | आज मैं अपने माँ और पिता जी के साथ आपके माँ पिता जी को भी नमन करती हूँ आप भी हर जन्म में उन्हें ही पाएं | बहुत कुछ लिखनें का मन हो रहा है पर कहीं तो रुकना ही है न | बहन दिद्दा
sn Sharma @ yahoogroups.com
kavyadhara
प्रिय बहन इंदिरा जी,
बिलकुल सही कहा आपने| मेरे मोनिटर पर सलिल जी की रचना garbled अक्षरों में मिली पहले पढ़ नहीं पाया| बाद में विकल्पों द्वारा उसे देवनागरी में ला कर पढी| शब्द-तर्पण द्वारा इतनी सुन्दर और समर्पित भावांजलि दे पाने में केवल सलिल जी जैसे शब्द-कुशल कलाकार की लेखनी ही समर्थ है| तर्पण में सलिल है और सलिल में ही तर्पण संभव सोने में सुहागा का सँयोग| इस रचना को मेरा नमन|
कमल भाई
मेरा नमन |
पूज्य दिद्दा और दादा
सादर प्रणाम.
अपने तहे-दिल से आशीष दिया... मैं और मेरी कलम दोनों धन्य हुए.
rajesh kumari
माला-जाप, भाल अरु चंदन, सब उपमाएँ लगतीं बौनी,
माँ धरती सी क्षमा दात्री, नभ नीलाभ अटल पापाजी..
बहुत प्रभावशाली पंक्तियाँ माता पिता दोनों के ही साए में बच्चा बड़ा होता है दोनों का ही बराबर महत्व है जो आपकी रचना में भली भाँति उभर कर आया है इस अनूठी उत्कृष्ट रचना के लिए बहुत बहुत बधाई सलिल जी
Dr.Prachi Singh
आदरणीय संजीव सलिल जी,
सादर नमन!
आपकी रचनाओं का हमेशा इंतज़ार रहता है. शब्द भाव तर्पण , माता पिता कि स्तुति में, स्मृति में अभिव्यक्त के गयी उत्कृष्टतम रचना....हर पंक्ति में अखंडित ज़िन्दगी है इस भावांजलि हेतु हार्दिक साधुवाद व बहुत बहुत बधाई.
dr shyam gupta
प्रभावी शब्द-तर्पण ....
seema agrawal
अनूठा शब्द तर्पण ... जीवन की अनमोल थातीं होती हैं वे स्मृतियाँ जिनसे माँ-पिता का साथ जुडा होता है ...बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर कृति के लिए आदरणीय संजीव जी
ajay sharma
ky kaho nishabbd ho gaya , shabd sanyojan , vyanjana , bhav, bimb ,bhasha sab dristikod se baut hi behatreen prastuti
Ashok Kumar Raktale
परम आदरणीय सलिल जी
सादर प्रणाम, बहुत सुन्दर रचना हर पंक्ति अनुपम है. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
SANDEEP KUMAR PATEL
आदरणीय सर जी सादर
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति सर जी
ह्रदय से बधाई आपको इस सुन्दर रचना हेतु
Pranava Bharti @ yahoogroups.com
kavyadhara
aadarniiy Slil jii,
suprbhat
1-I do not know how and what to do?from above icons 'A'
is not on the screen,so i am not able to write in hindi,as i used to click A
and could start my work in hindi.
2- I am not able to open your poem"TARPAN",i tried but no result.........?
3-Thank you so much for sending poems of MAHIIYSII MAHADEVII JII'S geet ,i could listen last night.
4-Can you pl.suggest me how to search this'A'so that i click and start my work.
I will be waiting for your guidence.Now i have to leave for 2-3 hrs, after
coming back will try again.
Thanks
Pranava
प्रणव जी!
वन्दे मातरम।
मेरे कम्पूटर में भी यह समस्या है। संभवतः किसी वायरस के कारन हो। दिव्यनर्मदा में दाहिने स्तंभ में लिखिए अपनी भाषा में शीर्षक से एक चौकोर खाना है, उसमें ट्रांसलिटरेशन कर सकती हैं।
महादेवी जी के गीत mp फ़ाइल में भेजे हैं वह तो खुल जाती है। दीप्ति जी सुन सकी हैं। मेरा विचार है कि यदि 8-19 लोग सुनने में सक्षम हों तो रिकॉर्ड कर भेजने सुनने में आनंद वृद्धि होगी। गोष्ठियां भी की जा सकेंगी
Salil ji,
Geet kl raat main sun skii thii,prntu 'tarpn' nhiin khul paa rhi hai v hindi men likh n paane ke kaarn uttrr likhne v any kaamon men mushkil ho rhii hai|.phle aavaz km thi prntu baad men bchchi ne shayta ki.fir kholne ka pryas krungi.
sdhnyvad
pranava
Saurabh Pandey :
माँ-पापा संजीव 'सलिल'
"जो हैं वे क्या हैं जब वे नहीं होते तब पता चलता है. और बना शून्य उन्हें तस्वीरों की सीमाओं से भी निकाल स्मृतियों और फिर अनुमान के जगत में प्रतिस्थापित कर देता है. आचार्यवर, आपका शब्द-तर्पण सीता के सादर सैकत-तर्पण के स्मृति दिला गया --जो…"
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