गीत:
प्रिये! तुम्हारा रूप ...
संजीव 'सलिल'
*
प्रिये! तुम्हारा रूप,
झलक जो देखे वह हो भूप।
बंकिम नयन-कटाक्ष
देव की रचना नव्य अनूप।
*
प्रिये! तुम्हारा रूप,
भरे अंजुरी में क्षितिज अनूप।
सौम्य उषा सा शांत
लालिमा सात्विक रूप अरूप।
*
प्रिये! तुम्हारा रूप,
देख तन सोचे कौन अरूप।
रचना इतनी रम्य
रचे जो कैसा दिव्य स्वरूप।
*
प्रिये! तुम्हारा रूप,
कामनाओं का काम्य स्तूप।
शीतल छाँह समेटे
आँचल में ज्यों आये धूप।
*
प्रिये! तुम्हारा रूप,
करे बिम्बित ज्यों नभ को कूप।
श्वेत-श्याम-रतनार
गव्हर-शिख, थिर-चंचला सुरूप।
*
प्रिये! तुम्हारा रूप ...
संजीव 'सलिल'
*
प्रिये! तुम्हारा रूप,
झलक जो देखे वह हो भूप।
बंकिम नयन-कटाक्ष
देव की रचना नव्य अनूप।
*
प्रिये! तुम्हारा रूप,
भरे अंजुरी में क्षितिज अनूप।
सौम्य उषा सा शांत
लालिमा सात्विक रूप अरूप।
*
प्रिये! तुम्हारा रूप,
देख तन सोचे कौन अरूप।
रचना इतनी रम्य
रचे जो कैसा दिव्य स्वरूप।
*
प्रिये! तुम्हारा रूप,
कामनाओं का काम्य स्तूप।
शीतल छाँह समेटे
आँचल में ज्यों आये धूप।
*
प्रिये! तुम्हारा रूप,
करे बिम्बित ज्यों नभ को कूप।
श्वेत-श्याम-रतनार
गव्हर-शिख, थिर-चंचला सुरूप।
*
8 टिप्पणियां:
आदरणीय आचार्य जी
अहा! कितनी सुन्दर पंक्तियाँ लिखी हैं आपने। मन प्रसन्न हो गया। कोटिश: धन्यवाद!
सादर
प्रताप
kusum sinha, ekavita
priy sanjiv ji
etni sundar kavita ke liye dher sari badhai sweekar karen
kusum
- mcdewedy@gmail.com
"कामनाओं का कमी स्तूप'- बिलकुल ही नयी उपमा है. बहुत बहुत बधाई सलिल जी ।
dks poet
आदरणीय आचार्य जी,
इस शानदार गीत के लिए साधुवाद स्वीकारें
सादर
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’
Pratap Singh
वाह ! वाह ! वाह ! क्या बात है !
बहुत ही मोहक !
आचार्य जी आपकी लेखनी निराली है।
Pratap Singh
प्रिये तुम्हारा रूप !
हृदय का मंद हास स्वरुप !
सूर्यमुखी ज्यों विहँस उठे
पा प्रात की कोमल धूप !
प्रिये तुम्हारा रूप !
vijay @ returns.groups.yahoo.com
आ० ’सलिल’ जी,
तुम्हारा रूप,
करे बिम्बित ज्यों नभ को कूप।
सुन्दर अभिव्यक्ति है ।
विजय
Rakesh Khandelwal
भाई,
"उर्वशी " की याद दिला दी .
राकेश
एक टिप्पणी भेजें