सामयिक गीत:
राम जी मुझे बचायें....
-- संजीव 'सलिल'
*
एक गेंद के पीछे दौड़ें ग्यारह-ग्यारह लोग.
एक अरब काम तज देखें, अजब भयानक रोग..
राम जी मुझे बचायें,
रोग यह दूर भगायें....
*
परदेशी ने कह दिया कुछ सच्चा-कुछ झूठ.
भंग भरोसा हो रहा, जैसे मारी मूठ..
न आपस में टकरायें,
एक रहकर जय पायें...
*
कड़ी परीक्षा ले रही, प्रकृति- सब हों एक.
सकें सीख जापान से, अनुशासन-श्रम नेक..
समर्पण-ज्योति जलायें,
'सलिल' मिलकर जय पायें...
*
राम जी मुझे बचायें....
-- संजीव 'सलिल'
*
राम जी मुझे बचायें....
एक गेंद के पीछे दौड़ें ग्यारह-ग्यारह लोग.
एक अरब काम तज देखें, अजब भयानक रोग..
राम जी मुझे बचायें,
रोग यह दूर भगायें....
*
परदेशी ने कह दिया कुछ सच्चा-कुछ झूठ.
भंग भरोसा हो रहा, जैसे मारी मूठ..
न आपस में टकरायें,
एक रहकर जय पायें...
*
कड़ी परीक्षा ले रही, प्रकृति- सब हों एक.
सकें सीख जापान से, अनुशासन-श्रम नेक..
समर्पण-ज्योति जलायें,
'सलिल' मिलकर जय पायें...
*
6 टिप्पणियां:
dhanyavad
समसामयिक रचना ...
मनभावन....
आभार आपका...
.नमन...
अभिषेक सागर …
२ अप्रैल २०११ १०:५५ पूर्वाह्न
अच्छी नवगीत...बधाई
Manpreet Kaur …
२ अप्रैल २०११ ११:२५ पूर्वाह्न
हा हा हा हा सही बात है !
अच्छा पोस्ट है जी !
हवे अ गुड डे !
Music Bol
Lyrics Mantra
Shayari Dil Se
Latest News About Tech
vedvyathit …
३ अप्रैल २०११ ९:२५ पूर्वाह्न
bhartiy srokaron ko sundrta se vykt kya hai
hardik bdhai
क्रिकेट पर खासा व्यंग्य प्रहार
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