मुक्तिका:
हुआ सवेरा
संजीव 'सलिल'
*
हुआ सवेरा मिली हाथ को आज कलम फिर.
भाषा शिल्प कथानक मिलकर पीट रहे सिर..
भाव भूमि पर नभ का छंद नगाड़ा पीटे.
बिम्ब दामिनी, लय की मेघ घटा आयी घिर..
बूँद प्रतीकों की, मुहावरों की फुहार है.
तत्सम-तद्भव पुष्प-पंखुरियाँ डूब रहीं तिर..
अलंकार की छटा मनोहर उषा-साँझ सी.
शतदल-शोभित सलिल-धार ज्यों सतत रही झिर..
राजनीति के कोल्हू में जननीति वृषभ क्यों?
बिन पाये प्रतिदान रहा बरसों से है पिर..
दाल दलेंगे छाती पर कब तक आतंकी?
रिश्वत खरपतवार रहेगी कब तक यूँ थिर..
*****
एक दृष्टि:
एक गेंद के पीछे दौड़ें ग्यारह-ग्यारह लोग.
एक अरब काम तज देखें, बड़ा भयानक रोग.
राम जी मुझे बचाना...
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
हुआ सवेरा
संजीव 'सलिल'
*
हुआ सवेरा मिली हाथ को आज कलम फिर.
भाषा शिल्प कथानक मिलकर पीट रहे सिर..
भाव भूमि पर नभ का छंद नगाड़ा पीटे.
बिम्ब दामिनी, लय की मेघ घटा आयी घिर..
बूँद प्रतीकों की, मुहावरों की फुहार है.
तत्सम-तद्भव पुष्प-पंखुरियाँ डूब रहीं तिर..
अलंकार की छटा मनोहर उषा-साँझ सी.
शतदल-शोभित सलिल-धार ज्यों सतत रही झिर..
राजनीति के कोल्हू में जननीति वृषभ क्यों?
बिन पाये प्रतिदान रहा बरसों से है पिर..
दाल दलेंगे छाती पर कब तक आतंकी?
रिश्वत खरपतवार रहेगी कब तक यूँ थिर..
*****
एक दृष्टि:
एक गेंद के पीछे दौड़ें ग्यारह-ग्यारह लोग.
एक अरब काम तज देखें, बड़ा भयानक रोग.
राम जी मुझे बचाना...
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
8 टिप्पणियां:
- ksantosh_45@yahoo.co.in
सलिल जी, आपकी सभी रचनायें ज्ञानवर्धक होती हैं।
मैं पढ़ता हूँ, लेकिन सभी का जाबाव नहीं दे पाता।
इस मुक्तिका के लिए बधाई स्वीकारें।
सन्तोष कुमार सिंह
सलिल जी,
ऐसा लिखना हरेक के बस की बात नहीं. आप पर शारदा की विशेष कृपा है.
--ख़लिश
आदरणीय सलिल जी ,
आपको और आपकी लेखनी को सादर नमन !!
संतोष भाऊवाला
आदरणीय सलिल जी,
ये बहुत ही सार्थक बात:
राजनीति के कोल्हू में जननीति वृषभ क्यों?---- वाह!
सादर शार्दुला
आदरणीय सलिल जी,
सदैव की तरह अति सुंदर रचना | आपकी दृष्टि भी सार्थक लगी | बधाई
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल
गुणग्राहकता को नमन.
भाषा शिल्प कथानक मिलकर पीट रहे सिर
आपकी पीड़ा और आक्रोश
हर पंक्ति में दिखाई दे रहे है...
लेकिन .... आज यही रूप सबको भाता है...छांदस कविता को तो पुरानी कविता का नाम दे दिया जाता है...
आभार और नमन..
अंग्रेजी में एक कहावत है 'ओल्ड इज गोल्ड',
मेरी एक पंक्ति है- 'चिर नवीन ही पुरा-पुरातन'
कविता अच्छी और कमजोर होती है.
आप जैसा एक भी समझदार पाठक लिखे हुए को पढ़कर सराह दे तो कवि कर्म सफल होता है. लाखों की वाहवाही तो नेताओं का लक्ष्य है.
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