sn Sharma <ahutee@gmail.com>
कल बुधवार दो मार्च को महाशिवरात्रि पर्व है | शिव-भक्त पूरे दिन उपास कर महादेव की आराधना में लीन रहते हैं |
शिव-महिम्न -स्तोत्र शंकर जी की महिमा का गुणगान है |
उसके एक श्लोक में समाई पूरी कथा ने मुझे विशेष प्रभावित किया है | अकस्मात् मन में आज इच्छा जागी कि उस श्लोक का हिंदी पद्यानुवाद
कर समूह पर पाठकों को समर्पित करुँ |
अस्तु पहले श्लोक फिर उसका पद्य-भावानुवाद प्रस्तुत करते शीघ्रतावश हुई त्रुटियों के लिये क्षमा-प्रार्थी हूँ |
शिव महिम्न स्तोत्र का उनीसवां श्लोक
हरिस्ते साहस्त्रं कमलबलिमाधाय पदयो-
र्यदेकोने तस्मिन्निजमुदहरन्नेत्रकमलम |
गतो भक्त्युद्रेकः परिणतिमसौ चक्रवपुषा
त्रयाणां रक्षायै त्रिपुरहर ! जागर्ति जगताम ||
पद्यभावार्थ
श्री कृष्ण ने कभी संकल्प किया
शिव जी के पूजन के निमित्त
एक सहस्त्र कमल की प्रति
शिव चरणों में करने अर्पित
सहसा विनोद-क्रीड़ा वश एक
कमल त्रिपुरहर ने हर लिया
या श्री हरि की भक्ति परखने
श्री हर ने यह कौतुक किया
केशव पड़े बड़ी दुविधा में
पूजा मध्य समस्या भारी
सोचा मेरे नयन रहे बन
सदा कमल उपमाधारी
इष्टदेव के लिये समर्पित
वासुदेव ने किया त्वरित
चक्षु-कोष से नयन पृथक कर
शिव चरणों में सादर अर्पित
हो उठे भाव-विह्वल शंकर
झट प्रगट हो गये गंगाधर
ऐसी उत्कट भक्ति देख
कर दिया सुदर्शन-चक्र भेंट
भक्तों की रक्षा में तत्पर
शोभायमान हरि उंगली पर
हे महाकाल तुम हो महान
देवाधिदेव तुमको प्रणाम !
कमल
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