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रविवार, 6 मार्च 2011

दोहा सलिला: टीका लगा गुलाल का... संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:                                                                                     

टीका लगा गुलाल का...

संजीव 'सलिल'
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टीका लगा गुलाल का, उज्जवल हो हर माथ..
बैर-द्वेष को दो भुला, प्रेम-भाव हो साथ..                                            

होली पर मिल लें गले, खास-खास से आम.
शांति-अमन के रंग ले, बिसरा जंग तमाम..

मियाँ पड़ोसी खून की, होली कर दो बंद.
बजा नेह की बाँसुरी, सुनो प्रीत के छंद..

बरसाने सी फाग हो, बृज सा रंग-धमाल.
दूर न राधा-कृष्ण हों, आये ऐसा काल..

राष्ट्र किशन स्वाधीनता, है  वृषभान-लली.
हर शहीद है गोपिका, सरहद बिरज-गली..

जनहित की नव बाल लें, सत्ता-लौ में भून.
जनगण में दें बाँट तो, घर-घर खिले प्रसून..

राजनीति की होलिका, जले भस्म हो जाये.
लोकनीति की अग्नि से, जनहित जीवन पाये..

जनप्रतिनिधि जन-सदृश हों, धूप-छाँव में संग.
गले मिल सकें ईद में, होली-खेलें रंग..

हरिन्कशिपू ने धर लिया, शासक का अवतार.
अधिकारी के कर अधिक, जन के कम अधिकार..

नेताओं के भाल पर, मल दो गोबर-कीच.
संसद और विधायिका, निर्मल करों उलीच..

नेह-नर्मदा-'सलिल' में, रंग घोलो इस साल.
पिचकारी सद्भाव की, सेवा-धर्म-गुलाल..

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5 टिप्‍पणियां:

Dharmendra kumar singh 'sajjan' ने कहा…

वाह वाह, वाकई दोहों की रंगीन नदी बह रही है। बधाई

Rajesh Sharma ने कहा…

वाह सलिल जी ,
आप दोहों में तो सिद्ध हस्त हें ही व्यंग्य मुक्तिकाओं में भी कमाल किया है.
होली के बहाने वैश्वीकरण पर खूब कटाक्ष किया है. आपने मंच को धन्य कर दिया.

ganesh ji bagee ने कहा…

आचार्य जी ,
जिस विविधता का एहसास आपके दोहे में है उसे हम सभी बड़े सिद्दत से महसूस कर रहे है , सभी दोहे एक अलग रंग लिए हुए है |
बहुत बहुत बधाई |

Dr.Nutan ने कहा…

आचार्य जी ... बहुत सुन्दर दोहे ...

Rana Pratap Singh ने कहा…

आचार्य जी बहुत सुन्दर और सार्थक दोहे|