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सोमवार, 21 मार्च 2011

मुक्तिका: मन तरंगित --- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                                                                                         

मन तरंगित

संजीव 'सलिल'
*
मन तरंगित, तन तरंगित.
झूमता फागुन तरंगित..

होश ही मदहोश क्यों है?
गुन चुके, अवगुन तरंगित..

श्वास गिरवी आस रखती.
प्यास का पल-छिन तरंगित..

शहादत जो दे रहे हैं.
हैं न वे जन-मन तरंगित..

बंद है स्विस बैंक में जो
धन, न धन-स्वामी तरंगित..

सचिन ने बल्ला घुमाया.
गेंद दौड़ी रन तरंगित..

बसंती मौसम नशीला
'सलिल' संग सलिला तरंगित..

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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

2 टिप्‍पणियां:

- santosh.bhauwala@gmail.com ने कहा…

- santosh.bhauwala@gmail.com


आदरणीय सलिल जी ,
मुक्तिका पढ़ कर मन तरंगित हो गयाI आपकी लेखनी को नमन!!
सादर संतोष भाउवाला

Shanno Aggarwal ने कहा…

आपकी रचना ने रंग दिखाया

Shanno Aggarwal 21 मार्च 18:14