कुल पेज दृश्य

रविवार, 20 मार्च 2011

सामयिक कविता: लूट तन्त्र -- वेदप्रकाश शर्मा.

सामयिक कविता:                                                   

लूट तन्त्र


वेदप्रकाश शर्मा.

लोक लाज सब धरी ताक पर देश को जी भर लूटेंगे
इन की करनी से भारत के भाग तो निश्चित फूटेंगे
पर कहने की हिम्मत किस में किस की ये सुन सकते हैं
एक मात्र उद्देश्य हैं इन का दोनों हाथों लूटेंगे ||

प्रजा तन्त्र कहाँ है भइया केवल झूठ तन्त्र है ये
सत्ता पर कब्जा करने का केवल एक मन्त्र है ये
दिग्गी जैसे कितने चमचे इसी काम में लगे हुए
भगवा को आतंकी कहना कैसा झूठ तन्त्र है ये ||

कैसी मजबूरी और कैसा गठ्बन्धन का नारा है
कितना गिर सकता है कोई इस से भी क्या ज्यादा है
आखिर कोई तो अंदर से पूछ रहा तुम से होगा
क्या होगा इस देश का जिस की जिम्मेदारी का वादा है ||

शपथ हो गई फेल तो अब  इस नाटक का क्या मतलब है
देश रहे हो लूट तो फिर इस भाषण का क्या अब मतलब है
आखिर स्वच्छ छवि क्या ऐसे घोटाले करवाती है
भल मन साहत के नाटक को करने का क्या मतलब है ||

देख मालकिन को ऐसे बकरी के जैसे मिमयाते
खा जाएगी क्या तुम को जो उस से ऐसे घिघयाते
सिंह नाम के साथ जुड़ा है तो हुंकार लगा देखो
सच में यदि सिंह हो प्यारे तो औकात बता देखो||

कोई टिप्पणी नहीं: