पहलू में मेरे जब से मेरा दिल नहीं रहा।

उनकी नजर में मैं किसी काबिल नहीं रहा।।
समझा उसी ने दहर में कुछ राजे-बंदगी।
दैरो-हरम का जो कभी कायल नहीं रहा।।
किस दिल से अब सुनाएँ तुम्हें दिल की दास्ताँ।
जिस दिल पे मुझको नाज़ था वह दिल नहीं रहा।।
महवे-खयाले-दूरिये-मंजिल था इस कदर।
मुझको खयाले-दूरिये-मंज़िल नहीं रहा।।।
दिल ही से जहाँ में सब लुत्फे-जिन्दगी.
क्या लुत्फ़ जिंदगी का अगर दिल नहीं रहा?
उसकी इनायतों में तो कोई कमी नहीं।
मैं ही निगाहे-लुत्फ़ के काबिल नहीं रहा।
दुनिया ने आँखें फेर लीं नादाँ तो क्या गिला?
दिल भी तो मेरा अब वह मेरा दिल नहीं रहा.
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