नीचे तो आ।
झाडों के ऊपर
तू सोना झरा॥
बदल के पीछे से
सोनेरी तीर छोड़।
घास फूल पत्तों में
जान तो जगा॥

मन्दिर में सोते जो
राम, कृष्ण, शंकर,
खिड़की से झांक-झांक
उन्हें तो जगा॥
भोर हुई, रात गयी
नभ से सोना बरसे,
सोने की घंटी का,
गीत तो सुना॥
चिडियों की तिहुर-तिहुर,
कौवों की कांव-कांव,
पीपल के पत्तों में
नीचे की धूप-छाँव॥
सड़कों पर, बागों पर
नगर के तालाबों पर,
सूखऐ और खिले हुए
मोगरा गुलाबों पर॥
रोते पर, हंसते पर
भूख से बिलखते पर,
कोमल से ममतामय
हाथों से सोनबाई
मरहम सी, सोने की,
परत तो चढा॥
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