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शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

सूक्ति कोष प्रो. भागवत प्रसाद मिश्र 'नियाज़' / 'सलिल'

सूक्ति कोष

प्रो. भागवत प्रसाद मिश्र 'नियाज़'


विश्व वाणी हिन्दी के श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार, शिक्षाविद तथा चिन्तक नियाज़ जी द्वारा इस स्तम्भ में विविध आंग्ल साहित्यकारों के साहित्य का मंथन कर प्राप्त सूक्ति रत्न पाठको को भेंट किए जा रहे हैं।

संस्कृत में कहा गया है- 'कोषस्तु महीपानाम् कोशाश्च विदुषामपि' अर्थात कोष या तो राजाओं के पास होता है या विद्वानों के.

इन सूक्तियों के हिन्दी अनुवाद मूल की तरह प्रभावी हैं। डॉ. अम्बाशंकर नागर के अनुसार 'अनुवाद के लिए कहा जाता है की वन प्रामाणिक होता है तो सुंदर नहीं होता, और सुंदर होता है तो प्रामाणिक नहीं होता किंतु मैं यह विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ कि इन सूक्तियों का अनुवाद प्रामाणिक भी है और सुंदर भी।'

जी कहते हैं- 'साहित्य उतना hee सनातन है जितना कि मानव, देश और काल की सीमायें उसे बाँध नहीं सकतीं। उसके सत्य में एक ऐसी सत्ता के दर्शन होते हैं जिससे अभिभूत होकर न जाने कितने युग-द्रष्टाओं ने अमर स्वरों में उसका गान किया है।

..प्रांजल विचार संचरण के बिना श्रेष्ठ नव साहित्य का निर्माण असंभव है।' आंग्ल साहित्य के कुछ श्रेष्ठ रचनाकारों के साहित्य का मंथन कर नियाज़ जी ने प्राप्त सूक्ति रत्न बटोरे हैं जिन्हें वे पाठकों के साथ साँझा कर रहे हैं। सूक्तियों का हिन्दी काव्यानुवाद कर रहे हैं आचार्य संजीव 'सलिल' ।

सूक्तियाँ शेक्सपिअर के साहित्य से-

adversity विपत्ति:

'Sweet are the uses of adversity.' विपत्ति का फल मधुर होता है.

'Let me embrace thee, sour adversity,, For wise men say it is the wisest course.'

ओ दारुण दुर्भाग्य! आ, मैं तेरा आलिंगन करुँ क्योंकि विद्वानों के अनुसार यही मार्ग श्रेयस्कर है.

दोहानुवाद : आ, हँस आलिंगन करुँ, ओ मेरे दुर्भाग्य.

फल विपत्ति का हो मधुर, 'सलिल' बने सौभाग्य.

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