
मरने से पहले उसने अपने इष्ट की याद कर लेना उचित समझा। प्रार्थना करते हुए वह मन ही मन में बुदबुदाया: 'हे इष्ट देव! अगली बार यदि जन्म देना तो किसी आरक्षित वर्ग में ही देना, नहीं तो इस मनुष्य तन का फायदा ही क्या है?' ऐसे ही चप्पलें तब भी घिसनी पड़ेंगी और ऐसी ही कायरता तब भी करना पड़ेगी। मैं बार-बार ऐसा नहीं करना चाहता हूँ। भगवान जी! मेरी लाज रखना।
****************
1 टिप्पणी:
मर्मस्पर्शी लघुकथा.
एक टिप्पणी भेजें