सबकी माता भारती, हम सब इसके पूत॥
सुनो बंधुओं मिल चलो, नव चुनाव की ओर।

अंधियारों से छीन लो, अपनी प्यारी भोर॥
प्रत्याशी का कीजिये, धर्म-तुला में तौल।
खरे स्वर्ण को दीजिये, वोट आप अनमोल।।
मंगलमय जन-राज हो, अथवा जंगलराज।
अब कल पर मत छोडिये, निर्णय कर लो आज।।
प्रान्त जाति भाषा धर्म, लिंग-पंथ के भेद।
लोकतंत्र की नाव में, हुए अनेकों छेद।।
मतदाता का देख कर, अतिशय मृदुल स्वभाव।
आतुर हैं नेतृत्व को, नौ ढोबे के पाव।।
निष्ठाओं पर कीजिये, फिर से नया विचार।

अंधी निष्ठा बोझ है, फेंको इसे उतार।।
लुप्त हुआ नेतृत्व वह, था जिससे अनुराग।
अमराई में भर गए, अब तो उल्लू-काग।।
हूजी लश्कर जैश के, गुर्गों का भी जोर।
सभी चाहते तोड़ने, सद्भावों की डोर।।
पाँच साल पूछें नहीं, मुड़कर भी हालात।
उनको भी आघात दे, मतदाता की लात।।
तोडें धनबल-बाहुबल, विषकारी हैं दंत।
वर्ना निश्चित जानिए, लोकतंत्र का अंत।।
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