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गुरुवार, 30 अप्रैल 2009

लघु कथा: चुनाव प्रचार - आभा झा

चुनाव प्रचार का माहौल गर्म था। सभी दलों के कार्यकर्ता अपने-अपने कार्य में जुटे थे।
किसी दल के कार्यकर्ता दूर-दराज़ के एक गाँव में पहुंचे और लोगों को समझाने लगे- 'आप लोग हमारा साथ दीजिये। इसी निशान का बटन दबाइए।
भीड़ में खड़े हुए एक वृद्ध ने निशान को गौर से देखा और कहा- ''का! ये चिह्न वाले बाई ला सरकार हा आत्तेक दिन म् घल्प नौकरी नहीं देइस। ये दे हर त केऊ बेर हमर मेर हाथ-पाँव जोड़े बर आए रहिस।
हमन हमन हर बार ईहीच मा अपन बटन दबा के ओला बोट दे रहें. आज एते फेर अपन चिन्हा ला भेज देइस. आखिर का बात ए. घेरी-बेरी ये हर हमन तीर नौकरी मांगे बर आते? (छतीसगढी)
अर्थात- क्यों भाई! इस चिन्हवाली महिला को सरकार ने इतने दिनों में भी कोई नौकरी नहीं दी? ये तो कई बार मेरे हाथ-पैर पड़ने आ चुकी है। मैंने हर बार इसी को बटन दबा कर मत दिया। आज फिर से इसने अपने चिन्ह भेज दिया। आखिर क्या बात है? ये बार-बार नौकरी मँगाने क्यों आती है?
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