आंतें खाली,
कैसे देखें सपना?...
दाने खोज,

खीजता चूहा।
बुझा हुआ
है चूल्हा।
अरमां की
बरात सजी-
पर गुमा
सफलता दूल्हा।
कौन बताये
इस दुनिया का
कैसा बेढब नपना ?...
कौन जलाये
संझा-बाती
गयी माँजने बर्तन.
दे उधार,
देखे उभार
कलमुंहा सेठ

ढकती तन.
नयन गडा
धरती में
काटे मौन
रास्ता अपना...
ग्वाल-बाल
पत्ते खेलें
बलदाऊ
चिलम चढाएं।
जेब काटता
कान्हा-राधा छिप

बीडी सुलगाये.
पानी मिला दूध में
जसुमति बिसरी
माला जपना...
बैठ मुंडेरे
बोले कागा
झूठी आस
बंधाये।
निठुर न आया,
राह देखते
नैना हैं
पथराये.

ईंटों के
भट्टे में
मानुस बेबस
पड़ता खपना...
श्यामल 'मावस
उजली पूनम,
दोनों बदलें
करवट।
साँझ-उषा की
गैल ताकते
सूरज-चंदा
नटखट।
किसे सुनाएँ
व्यथा-कथा
घर की
घर में
चुप ढकना...
*******************
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें