हुसैन की आख़िरी नौ पेंटिंग|
हुसैन ने इस पेंटिंग को 'टेल्स ऑफ़ थ्री सिटीज़' का नाम दिया है. यहां दिल्ली, वाराणसी और कोलकाता के जीवन की झांकी प्रस्तुत की गई है. पहले पैनल में जहां नेहरू का भारत, संसद, इंदिरा और राजीव गांधी के साथ-साथ आज़ादी की लड़ाई का भी चित्र है,
वहीं दूसरे पैनल में वाराणसी नगर, विवेकानंद, हनुमान और बिस्मिल्लाह ख़ान नज़र आ रहे हैं.
तीसरा पैनल कोलकाता को समर्पित है जहां सुभाष चंद्र बोस, मदर टेरेसा, सत्यजीत रे, रवींद्र नाथ टैगोर, देवी काली और बाघ के चित्र देखे जा सकते हैं.
'लैंग्वेज ऑफ़ स्टोन' यानी पत्थरों की भाषा में सभ्यता का बखान. इस त्रिभंग पेंटिंग में अजंता-एलोरा की गुफ़ाएं, कोणार्क, खजुराहो, महाबलीपुरम, क़ुतुब मीनार - इन सभी ऐतिहासिक स्थलों को रवींद्रनाथ टैगोर की 'गीतांजलि' की पंक्तियों के संदर्भ से जोड़ा गया है जहां टैगोर लिखते हैं कि 'पत्थरों की भाषा ने किस तरह मनुष्यों की भाषा को पीछे छोड़ दिया
हुसैन ने 'पारंपरिक भारतीय त्योहार' नाम की इस पेंटिंग में होली का उल्लास दिखाया है तो दूसरे पैनल में तुलसी की पूजा करती महिलाएं नज़र आ रही हैं. तीसरी तस्वीर पूर्णिमा पर अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत करती महिलाओं को दर्शाया गया है. हुसैन साहब ने इन पेंटिंग्स के बारे में ख़ुद भी लिखा है कि पहली तस्वीर जहां अग्नि को समर्पित है वहीं दूसरी में पौधों और तीसरी में जल की महिमा का चित्रण है.
इस पेंटिंग का नाम हुसैन ने दिया है 'थ्री डायनेस्टीज़' यानी तीन राजवंश. पहले चित्र में मुग़ल बादशाह अकबर की विजय यात्रा के साथ-साथ जोधा बाई की पालकी दिखाई पड़ रही है तो दूसरे चित्र में सम्राट अशोक के काल की झांकी है. युद्ध के दृश्य, अशोक की लाट और युद्ध के अंत में अशोक का हृदय परिवर्तन
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