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गुरुवार, 1 जून 2023

मुक्तिका, घनाक्षरी, अमरूद, माँ, मुक्तक, नेताजी, ओशो, सरस्वती,

सरस्वती वंदना
*
प्रार्थना
कब लौं बड़ाई करौं सारदा तिहारी
मति बौराई, जस गा जुबान हारी।
बीना के तारन मा संतन सम संयम
चोट खांय गुनगुनांय धुन सुनांय प्यारी।
सरस छंद छांव देओ, मैया दो अक्कल
फागुन घर आओ रचा फागें माँ न्यारी।
तैं तो सयानी मातु, मूरख अजानो मैं
मातु मति दै दुलार, 'सलिल' काब्य क्यारी।
* ***
Book Review
Showers to the Bowers : Poetry full of emotions
(Particulars of the book _ Showers to Bowers, poetry collection, N. Marthymayam 'Osho', pages 72, Price Rs 100, Multycolour Paperback covr, Amrit Prakashan Gwalior )
Poetry is the expression of inner most feelings of the poet. Every human being has emotions but the sestivity, depth and realization of a poet differs from others. that's why every one can'nt be a poet. Shri N. Marthimayam Osho is a mechanical engineer by profession but by heart he has a different metal in him. He finds the material world very attractive, beautiful and full of joy inspite of it's darkness and peshability. He has full faith in Almighty.
The poems published in this collection are ful of gratitudes and love, love to every one and all of us. In a poem titled 'Lending Labour' Osho says- ' Love is life's spirit / love is lamp which lit / Our onus pale room / Born all resplendor light / under grace, underpeace / It's time for Divine's room / who weave our soul bright. / Admire our Aur, Wafting breez.'
'Lord of love, / I love thy world / pure to cure, no sword / can scan of slain the word / The full of fragrance. I feel / so charming the wing along the wind/ carry my heart, wchih meet falt and blend' the poem ' We are one' expresses the the poet's viewpoint in the above quoted lines.
According to famous English poet Shelly ' Our sweetest songs are those that tell of saddest thought.' Osho's poetry is full of sweetness. He feels that to forgive & forget is the best policy in life. He is a worshiper of piece. In poem 'Purity to unity' the poet say's- 'Poems thine eternal verse / To serve and save the mind / Bringing new twilight to find / Pray for the soul's peace to acquire.'
Osho prays to God 'Light my life,/ Light my thought,/ WhichI sought.' 'Infinite light' is the prayer of each and every wise human being. The speciality of Osho's poetry is the flow of emotions, Words form a wave of feelings. Reader not only read it but becomes indifferent part of the poem. That's why Osho's feeliongs becomes the feelings of his reader.
Bliss Buddha, The Truth, High as heaven, Ode to nature, Journey to Gnesis, Flowing singing music, Ending ebbing etc. are the few of the remarkable poems included in this collection. Osho is fond of using proper words at proper place. He is more effective in shorter poems as they contain ocean of thoughts in drop of words. The eternal values of Indian philosophy are the inner most instict and spirit of Osho's poetry. The karmyoga of Geeta, Vasudhaiv kutumbakam, sarve bhavantu sukhinah, etc. can be easily seen at various places. The poet says- 'Beings are the owner of their action, heirs of their action" and 'O' eternal love to devine / Becomes the remedy.'
In brief the poems of this collection are apable of touching heart and take the reader in a delighted world of kindness and broadness. The poet prefers spirituality over materialism.
१-६-२०१९
***
मुक्तक
कभी दुआ तो कभी बद्दुआ से लड़ते हुए
जयी जवान सदा सरहदों पे बढ़ते हुए .
उठाये हाथ में पत्थर मिले वतनवाले
शहादतों पे चढ़ा पुष्प, चित्र मढ़ते हुए .
*
चरण छुए आशीष मिल गया, किया प्रणाम खुश रहो बोले
नम न नयन थे, नमन न मन से किया, हँसे हो चुप बम भोले
गले मिल सकूँ हुआ न सहस, हाथ मिलाऊँ भी तो कैसे?
हलो-हलो का मिला न उत्तर, हाय-हाय सुन तनिक न डोले
१-६-२०१७
***
मुक्तक
न मन हो तो नमन मत करना कभी
नम न हो तो भाव मत वरना कभी
अभावों से निभाओ तो बात है
स्वभावों को विलग मत करना कभी
१-६-२०१६
***
नवगीत:
*
उत्तरायण की
सदा चर्चा रही है
*
तीर शैया पर रही सोती विरासत
समय के शर बिद्ध कर, करते बगावत
विगत लेखन को सनातन मान लेना
किन्तु आगत ने, न की गत से सखावत
राज महलों ने
न सत को जान पाया
लोक-सीता ने
विजन वन-मान पाया
दक्षिणायण की
सतत अर्चा रही है
*
सफल की जय बोलना ही है रवायत
सफलता हित सिया-सत बिन हो सियासत
खुरदुरापन नव सृजन पथ खोलता है
साध्य क्यों संपन्न को ही हो नफासत
छेनियों से, हथौड़ी से
दैव ने आकार पाया
गढ़ा मूरतकार ने पर
लोक ने पल में भुलाया
पूर्वायण की
विकट वर्चा रही है
***
१५-११-२०१४
कालिंदी विला लखनऊ
***
कृति चर्चा:
सर्वमंगल: संग्रहणीय सचित्र पर्व-कथा संग्रह
*
[कृति विवरण: सर्वमंगल, सचित्र पर्व-कथा संग्रह, श्रीमती शकुन्तला खरे, आकार डिमाई, आवरण बहुरंगी पेपरबैक, पृष्ठ संख्या १८६, मूल्य १५० रु., लेखिका संपर्क: योजना क्रमांक ११४/१, माकन क्रमांक ८७३ विजय नगर, इंदौर. म. प्र. भारत]
*
विश्व की प्राचीनतम भारतीय संस्कृति का विकास सदियों की समयावधि में असंख्य ग्राम्यांचलों में हुआ है. लोकजीवन में शुभाशुभ की आवृत्ति, ऋतु परिवर्तन, कृषि संबंधी क्रिया-कलापों (बुआई, कटाई आदि), महापुरुषों की जन्म-निधन तिथियों आदि को स्मरणीय बनाकर उनसे प्रेरणा लेने हेतु लोक पर्वों का प्रावधान किया गया है. इन लोक-पर्वों की जन-मन में व्यापक स्वीकृति के कारण इन्हें सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यता प्राप्त है. वास्तव में इन पर्वों के माध्यम से वैयक्तिक, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में सामंजस्य-संतुलन स्थापित कर, सार्वजनिक अनुशासन, सहिष्णुता, स्नेह-सौख्य वर्धन, आर्थिक संतुलन, नैतिक मूल्य पालन, पर्यावरण सुधार आदि को मूर्त रूप देकर समग्र जीवन को सुखी बनाने का उपाय किया गया है. उत्सवधर्मी भारतीय समाज ने इन लोक-पर्वों के माध्यम से दुर्दिनों में अभूतपूर्व संघर्ष क्षमता और सामर्थ्य भी अर्जित की है.
आधुनिक जीवन में आर्थिक गतिविधियों को प्रमुखता मिलने के फलस्वरूप पैतृक स्थान व् व्यवसाय छोड़कर अन्यत्र जाने की विवशता, अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा के कारण तर्क-बुद्धि का परम्पराओं के प्रति अविश्वासी होने की मनोवृत्ति, नगरों में स्थान, धन, साधन तथा सामग्री की अनुपलब्धता ने इन लोक पर्वों के आयोजन पर परोक्षत: कुठाराघात किया है. फलत:, नयी पीढ़ी अपनी सहस्त्रों वर्षों की परंपरा, जीवन शैली, सनातन जीवन-मूल्यों से अपरिचित हो दिग्भ्रमित हो रही है. संयुक्त परिवारों के विघटन ने दादी-नानी के कध्यम से कही-सुनी जाती कहानियों के माध्यम से समझ बढ़ाती, जीवन मूल्यों और जानकारियों से परिपूर्ण कहानियों का क्रम समाप्त प्राय कर दिया है. फलत: नयी पीढ़ी में पारिवारिक स्नेह-सद्भाव का अभाव, अनुशासनहीनता, उच्छंखलता, संयमहीनता, नैतिक मूल्य ह्रास, भटकाव और कुंठा लक्षित हो रही है.
मूलतः बुंदेलखंड में जन्मी और अब मालवा निवासी विदुषी श्रीमती शकुंतला खरे ने इस सामाजिक वैषम्य की खाई पर संस्कार सेतु का निर्माण कर नव पीढ़ी का पथ-प्रदर्शन करने की दृष्टि से ४ कृतियों मधुरला, नमामि, मिठास तथा सुहानो लागो अँगना के पश्चात विवेच्य कृति ' सर्वमंगल' का प्रकाशन कर पंच कलशों की स्थापना की है. शकुंतला जी इस हेतु साधुवाद की पात्र हैं. सर्वमंगल में चैत्र माह से प्रारंभ कर फागुन तह सकल वर्ष में मनाये जानेवाले लोक-पर्वों तथा त्योहारों से सम्बन्धी जानकारी (कथा, पूजन सामग्री सूचि, चित्र, आरती, भजन, चौक, अल्पना, रंगोली आदि ) सरस-सरल प्रसाद गुण संपन्न भाषा में प्रकाशित कर लोकोपकारी कार्य किया है.
संभ्रांत-सुशिक्षित कायस्थ परिवार की बेटी, बहु, गृहणी, माँ, और दादी-नानी होने के कारण शकुन्तला जी शैशव से ही इन लोक प्रवों के आयोजन की साक्षी रही हैं, उनके संवेदनशील मन ने प्रस्तुत कृति में समस्त सामग्री को बहुरंगी चित्रों के साथ सुबोध भाषा में प्रकाशित कर स्तुत्य प्रयास किया है. यह कृति भारत के हर घर-परिवार में न केवल रखे जाने अपितु पढ़ कर अनुकरण किये जाने योग्य है. यहाँ प्रस्तुत कथाएं तथा गीत आदि पारंपरिक हैं जिन्हें आम जन के ग्रहण करने की दृष्टि से रचा गया है अत: इनमें साहित्यिकता पर समाजीकर और पारम्परिकता का प्राधान्य होना स्वाभाविक है. संलग्न चित्र शकुंतला जी ने स्वयं बनाये हैं. चित्रों का चटख रंग आकर्षक, आकृतियाँ सुगढ़, जीवंत तथा अगढ़ता के समीप हैं. इस कारण इन्हें बनाना किसी गैर कलाकार के लिए भी सहज-संभव है.
भारत अनेकता में एकता का देश है. यहाँ अगणित बोलियाँ, लोक भाषाएँ, धर्म-संप्रदाय तथा रीति-रिवाज़ प्रचलित हैं. स्वाभाविक है कि पुस्तक में सहेजी गयी सामग्री उन परिवारों के कुलाचारों से जुडी हैं जहाँ लेखिका पली-बढ़ी-रही है. अन्य परिवारों में यत्किंचित परिवर्तन के साथ ये पर्व मनाये जाना अथवा इनके अतिरिक्त कुछ अन्य पर्व मनाये जाना स्वाभाविक है. ऐसे पाठक अपने से जुडी सामग्री मुझे या लेखिका को भेजें तो वह अगले संस्करण में जोड़ी जा सकेगी. सारत: यह पुस्तक हर घर, विद्यालय और पुस्तकालय में होना चाहिए ताकि इसके मध्याम से समाज में सामाजिक मूल्य स्थापन और सद्भावना सेतु निर्माण का कार्य होता रह सके.
***
मुक्तक
खुद पर हो विश्वास, बहुत है
पूरी हो कुछ आस, बहुत है
चिर अतृप्ति या तृप्ति न चाहूँ
लगे-बुझे नित प्यास, बहुत है
*
राजीव बिन शोभा न सलिल-धार की
वास्तव में श्री अमर है प्यार की
सृजन पथ पर अक्षरी आराधना
राह है संसार से उद्धार की
*
बिंदु-सिन्धु सा खुद में और खुदा में अंतर
कंकर-शंकर किये समाहित सच का मंतर
आप आत्म, परमात्म आप है, द्वैत नहीं कुछ
जो देखे अद्वैत मलिन हो कभी न अंतर
*
इंसानी फितरत समान है, रहो देश या बसों विदेश
ऐसी कोई जगह नहीं है जहाँ मलिनता मिले न लेश
जैसा देश वेश हो वैसा पुरखे सच ही कहते थे-
स्वीकारें सच किन्तु क्षुब्ध हो नोचें कभी न अपने केश
*
बाधाएँ अनगिन आयेंगीं, करना तनिक उजास बहुत है
तपिश झेलने को मन में मधुबन का हो आभास बहुत है
तिमिर अमावस का लाया है खबर जल्द राकेश आ रहा
फिर पूनम-चंदा चमकेगा बस इतना विश्वास बहुत है
*
ममता-समता पाने खातिर जी भर करें प्रयास बहुत है
प्रभु सुमिरन से बने एकता किंचित हो आभास बहुत है
करें प्रार्थना पर न याचना, पौरुष-कोशिश कभी न त्यागें-
कर्मयोग ही फलदायक है, करिए कुछ विश्वास बहुत है. *
*
'जैसी करनी वैसी भरनी' अगर नहीं तो न्याय कहाँ?
लेख-जोखा अगर नहीं तो असत-सत्य का दाय कहाँ?
छाँह न दे तो बेमानी छाता हो जाता क्यों रखिए-
कुछ न करे तो शक्तिमान का किंचित भी अभिप्राय कहाँ?
*
१-६-२०१५
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संस्मरण
'नेताजी के साथ मैंने भी हिटलर से हाथ मिलाया'
कर्नल निज़ामुद्दीन
मुबारकपुर, आज़मगढ़ के पास के गाँव ढकुआ में रहने वाले 'कर्नल' निज़ामुद्दीन ने सुभाष चंद्र बोस के साथ बिताए दिनों की याद ताज़ा की.
अभी तक आप उनके उन दावों को पढ़ चुके हैं कि कैसे वह नेताजी के ड्राइवर बने और कैसे उन्होंने नेताजी की ओर जा रहीं तीन गोलियों को अपनी पीठ पर ले लिया था.
उन्होंने वो याद भी ताज़ा की थी जिसके अनुसार रंगून में नेताजी बोस ने आख़िरी मुग़ल शासक बहादुर शाह ज़फर की मज़ार को पक्का करवाया था.
बीबीसी से हुई बातचीत में निज़ामुद्दीन ने ये भी बताया कि कैसे रोज़ शाम को चार बजे के आसपास नेताजी अपने सहयोगियों से साथ बैठ कर आज़ादी की बात किया करते थे.
हिटलर
हिटलर
'कर्नल' निज़ामुद्दीन ने ये भी बताया कि नेताजी बोस के साथ कई देशों की यात्रा के दौरान वो नामचीन लोगों से भी मिले.
उन्होंने बताया, "एक दफ़ा मैं नेताजी के साथ जापान गया था, जहाँ नेताजी की मुलाक़ात जर्मनी के चांसलर हिटलर से हुई. उस मीटिंग के दौरान जर्मनी के फील्ड मार्शल रोमेल भी मौजूद थे. मुझे भी हिटलर से हाथ मिलाने का मौका मिला था".
हालांकि सुभाष चंद्र बोस और उनकी मौत से जुड़े रहस्य पर शोध करने वाले अनुज धर निज़ामुद्दीन के इस दावे पर दूसरी राय रखते हैं.
उन्होंने कहा, "हो सकता है 100 से ज़्यादा उम्र होने के चलते निज़ामुद्दीन ये भूल रहे हों कि हिटलर और नेताजी की मुलाक़ात जर्मनी में हुई थी न कि जापान में. दूसरी बात ये कि नेताजी के साथ आईएनए के दूसरे बड़े अफ़सर जाया करते थे".
नाराज़गी
नेताजी सुभाषचंद्र बोस
'कर्नल' निज़ामुद्दीन बताते हैं कि जब दूसरा विश्व युद्ध समाप्ति पर था तब नेताजी ने आज़ाद हिंद फ़ौज के सभी सदस्यों को छुप कर आदेश दिए थे.
उन्होंने कहा, "विमान हादसे में नेताजी बोस की मौत की ख़बर ग़लत थी क्योंकि उन्होंने 1945 के बाद भी आईएनए के सदस्यों को सभी दस्तावेज़ नष्ट करने के लिए कहा था ताकि बाद में उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई न हो सके".
निज़ामुद्दीन का दावा है कि नेताजी कांग्रेस के अपने पुराने सहयोगियों से खासे आहत रहते थे जिसमे सभी शीर्ष नेता शामिल थे.
हालांकि नेताजी बोस पर 'इंडियाज़ बिगेस्ट कवरअप' लिखने वाले अनुज धर के अनुसार निज़ामुद्दीन को अपने इन दावों के प्रमाण दिखाने की ज़रुरत है.
कश्मकश
अनुज धर
अनुज धर ने कहा, "अगर हिटलर से हाथ मिलाते हुए नेताजी बोस की तस्वीर मौजूद है तो उसमे निज़ामुद्दीन तो कहीं नहीं दिखते. न ही निज़ामुद्दीन सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु पर जांच के लिए बनी खोसला कमिटी या शाहनवाज़ कमीशन के समक्ष पहुंचे और न ही उनके पास दस्तावेज़ हैं".
मैं खुद भी इस कश्मकश में हूँ कि आख़िर सच क्या है.
'कर्नल' निज़ामुद्दीन के गाँव में तीन घंटे बिताने पर मुझे ये तो समझ में आया कि उन्हें कम से कम सात भाषाओं की समझ है और उनकी आधी से ज़्यादा ज़िन्दगी बर्मा में बीती है.
नेताजी के साथ उनके सहयोग के दावों का सच निज़मुद्दीन के अलावा शायद अब कोई नहीं बता सकता.
उन्होंने कहा, "बर्मा में नेताजी की बहुत इज़्ज़त थी. आज़ाद हिन्द फ़ौज का अपना रेडियो स्टेशन था, अपना बैंक था और हमारे अपने नोट भी छपते थे."
लेकिन 104 वर्ष की उम्र में भी निज़ामुद्दीन उस बात को याद करके भावुक हो उठते हैं, जिसके अनुसार नेताजी बोस को जंगलों में जगहें बदल-बदल कर रातें गुज़ारनी पड़ती थीं.
सुभाष चंद्र बोस की हत्या हुई या मृत्यु?
उन्होंने बताया, "हवाई बमबारी का ख़तरा हमेशा रहता था, इसलिए सुभाष चंद्र बोस हर रात बर्मा के जंगलों में कम से कम दो जगह बदलते थे. मैं ख़ुद उनको रात में उठाता था, ये कहते हुए कि उठिए अंडा (बम) गिर सकता है. इसलिए हमें निकलना चाहिए."
निज़ामुद्दीन के अनुसार, सुभाष हर बार नींद से उठाए जाने पर जवाब देते थे, "नींद से अच्छी तो मौत है."
निज़ामुद्दीन के मुताबिक़, नेताजी बोस अपने सहयोगियों को लेकर इतने मिलनसार थे कि अक्सर उनके जूठे गिलास में भी पानी पी लिया करते थे.
बहादुरशाह ज़फर
नेताजी सुभाष चंद्र बोस
'कर्नल' निज़ामुद्दीन 1940 के दशक की याद करते हुए बताते हैं कि, "उन दिनों ऐसा ही लगता था कि भारत को आज़ाद हिंद फ़ौज ही आज़ादी दिलाएगी."
उन्होंने बताया कि सुभाष बोस ही वो व्यक्ति थे जिन्होंने आख़िरी मुग़ल शासक बहादुर शाह ज़फर की क़ब्र को पूरी इज़्ज़त दिलवाई.
वो बताते हैं, "ज़फर की कब्र को नेताजी बोस ने ही पक्का करवाया था. वहाँ कब्रिस्तान में गेट लगवाया और उनकी क़ब्र के सामने चारदीवारी बनवाई थी. मैं ख़ुद नेताजी के साथ कई मर्तबा ज़फर की मज़ार पर गया हूँ."
निज़ामुद्दीन के अनुसार, उन्होंने अपनी सौ वर्ष से भी ज़्यादा की उम्र में सुभाषचंद्र बोस जैसा दिलदार आदमी नहीं देखा.
विमान हादसा
गांधी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस
इतिहास के मुताबिक़, सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु अगस्त, 1945 में फॉरमोसा, ताइवान में एक विमान हादसे हुई थी.
हालांकि 'कर्नल' निज़ामुद्दीन इस बात का खंडन करते हैं.
उन्होंने बताया, "जापान ने नेताजी को तीन हवाई जहाज़ दिए थे. जब मैंने उन्हें सितांग नदी के किनारे वर्ष 1947 में आख़िरी बार छोड़ा तब वो जापानी अफसरों के साथ मोटरबोट पर बैठने के पहले भावुक हो गए थे. मैंने कहा, मुझे भी अपने साथ ले चलिए, लेकिन उन्होंने कहा कि, तुम यहीं रुको जिससे दूसरों का ख़्याल रखा जा सके."
वैसे नेताजी बोस की मृत्यु से जुड़ी जानकारी जुटाने वाले और 'इंडियाज़ बिगेस्ट कवरअप' नामक किताब लिखने वाले अनुज धर का भी मानना है कि सुभाष चंद्र बोस उस विमान में थे ही नहीं जिसका हादसा हुआ था.
लेकिन अनुज धर निज़ामुद्दीन के उन दावों को ख़ारिज करते हैं, जिनमें कहा गया है कि नेताजी 1945 से लेकर 1947 तक बर्मा में थे.
दावों पर सवाल
नेताजी क़िताब
सुभाष बोस की रहस्यमई मृत्यु पर लेखक अनुज धर की किताब ने कई सवाल खड़े किए हैं.
उन्होंने कहा, "जितने दस्तावेज़ मिले हैं उनके हिसाब से नेताजी इस दौरान रूस में थे. रही बात निज़ामुद्दीन की तो उन्हें कम से कम एक फ़ोटो या कोई प्रमाण तो दिखाना चाहिए अपने और नेताजी के दिनों का."
अब सच्चाई क्या है इसे पता लगाने में अनुज धर जैसे तमाम लोग लगे हैं.
कुछ दिन पहले ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पोती आजमगढ़ में निज़ामुद्दीन से मिलकर लौटीं हैं.
***
हिन्दी काव्यानुवाद सहित नर्मदाष्टक : १ --संजीव 'सलिल'
भगवत्पादश्रीमदाद्य शंकराचार्य स्वामी विरचितं नर्मदाष्टकं
सविंदुसिंधु-सुस्खलत्तरंगभंगरंजितं, द्विषत्सुपापजात-जातकारि-वारिसंयुतं
कृतांतदूत कालभूत-भीतिहारि वर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .१.
त्वदंबु लीनदीन मीन दिव्य संप्रदायकं, कलौमलौघभारहारि सर्वतीर्थनायकं
सुमत्स्य, कच्छ, तक्र, चक्र, चक्रवाक् शर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .२.
महागभीर नीरपूर - पापधूत भूतलं, ध्वनत समस्त पातकारि दारितापदाचलं.
जगल्लये महाभये मृकंडुसूनु - हर्म्यदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .३.
गतं तदैव मे भयं त्वदंबुवीक्षितं यदा, मृकंडुसूनु शौनकासुरारिसेवितं सदा.
पुनर्भवाब्धिजन्मजं भवाब्धि दु:खवर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .४.
अलक्ष्य-लक्ष किन्नरामरासुरादि पूजितं, सुलक्ष नीरतीर - धीरपक्षि लक्षकूजितं.
वशिष्ठ शिष्ट पिप्पलादि कर्ममादिशर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .५.
सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपादि षट्पदै, घृतंस्वकीय मानसेषु नारदादि षट्पदै:,
रवींदु रन्तिदेव देवराज कर्म शर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .६.
अलक्ष्यलक्ष्य लक्ष पाप लक्ष सार सायुधं, ततस्तु जीव जंतु-तंतु भुक्ति मुक्तिदायकं.
विरंचि विष्णु शंकर स्वकीयधाम वर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .७.
अहोsमृतं स्वनं श्रुतं महेशकेशजातटे, किरात-सूत वाडवेशु पण्डिते शठे-नटे.
दुरंत पाप-तापहारि सर्वजंतु शर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .८.
इदन्तु नर्मदाष्टकं त्रिकालमेव ये यदा, पठंति ते निरंतरं न यांति दुर्गतिं कदा.
सुलक्ष्य देह दुर्लभं महेशधाम गौरवं, पुनर्भवा नरा न वै विलोकयंति रौरवं. ९.
इति श्रीमदशंकराचार्य स्वामी विरचितं नर्मदाष्टकं सम्पूर्णं
श्रीमद आदि शंकराचार्य रचित नर्मदाष्टक : हिन्दी पद्यानुवाद द्वारा संजीव 'सलिल'
उठती-गिरती उदधि-लहर की, जलबूंदों सी मोहक-रंजक
निर्मल सलिल प्रवाहितकर, अरि-पापकर्म की नाशक-भंजक
अरि के कालरूप यमदूतों, को वरदायक मातु वर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.१.
दीन-हीन थे, मीन दिव्य हैं, लीन तुम्हारे जल में होकर.
सकल तीर्थ-नायक हैं तव तट, पाप-ताप कलियुग का धोकर.
कच्छप, मक्र, चक्र, चक्री को, सुखदायक हे मातु शर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.२.
अरिपातक को ललकार रहा, थिर-गंभीर प्रवाह नीर का.
आपद पर्वत चूर कर रहा, अन्तक भू पर पाप-पीर का.
महाप्रलय के भय से निर्भय, मारकंडे मुनि हुए हर्म्यदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.३.
मार्कंडे-शौनक ऋषि-मुनिगण, निशिचर-अरि, देवों से सेवित.
विमल सलिल-दर्शन से भागे, भय-डर सारे देवि सुपूजित.
बारम्बार जन्म के दु:ख से, रक्षा करतीं मातु वर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.४.
दृश्य-अदृश्य अनगिनत किन्नर, नर-सुर तुमको पूज रहे हैं.
नीर-तीर जो बसे धीर धर, पक्षी अगणित कूज रहे हैं.
ऋषि वशिष्ठ, पिप्पल, कर्दम को, सुखदायक हे मातु शर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.५.
सनत्कुमार अत्रि नचिकेता, कश्यप आदि संत बन मधुकर.
चरणकमल ध्याते तव निशि-दिन, मनस मंदिर में धारणकर.
शशि-रवि, रन्तिदेव इन्द्रादिक, पाते कर्म-निदेश सर्वदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.६.
दृष्ट-अदृष्ट लाख पापों के, लक्ष्य-भेद का अचूक आयुध.
तटवासी चर-अचर देखकर, भुक्ति-मुक्ति पाते खो सुध-बुध.
ब्रम्हा-विष्णु-सदा शिव को, निज धाम प्रदायक मातु वर्मदा.
चरणकमल में नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.७.
महेश-केश से निर्गत निर्मल, 'सलिल' करे यश-गान तुम्हारा.
सूत-किरात, विप्र, शठ-नट को,भेद-भाव बिन तुमने तारा.
पाप-ताप सब दुरंत हरकर, सकल जंतु भाव-पार शर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.८.
श्रद्धासहित निरंतर पढ़ते, तीन समय जो नर्मद-अष्टक.
कभी न होती दुर्गति उनकी, होती सुलभ देह दुर्लभ तक.
रौरव नर्क-पुनः जीवन से, बच-पाते शिव-धाम सर्वदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.९.
श्रीमदआदिशंकराचार्य रचित, संजीव 'सलिल' अनुवादित नर्मदाष्टक पूर्ण.
१-६-२०१४
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अमरूद - फल भी , दवा भी
अमरूद एक बेहतरीन स्वादिष्ट फल है। अमरूद कई गुणों से भरपूर है। अमरूद में प्रोटीन 10.5 प्रतिशत, वसा 0. 2 कैल्शियम 1.01 प्रतिशत बी पाया जाता है। अमरूद का फलों में तीसरा स्थान है। पहले दो नम्बर पर आंवला और चेरी हैं। इन फलों का उपयोग ताजे फलों की तरह नहीं किया जाता, इसलिए अमरूद विटामिन सी पूर्ति के लिए सर्वोत्तम है।
विटामिन सी छिलके में और उसके ठीक नीचे होता है तथा भीतरी भाग में यह मात्रा घटती जाती है। फल के पकने के साथ-साथ यह मात्रा बढती जाती है। अमरूद में प्रमुख सिट्रिक अम्ल है 6 से 12 प्रतिशत भाग में बीज होते है। इसमें नारंगी, पीला सुगंधित तेल प्राप्त होता है। अमरूद स्वादिष्ट फल होने के साथ-साथ अनेक गुणों से भरा से होता है।
यदि कभी आपका गला ज्यादा ख़राब हो गया हो तो अमरुद के तीन -चार ताज़े पत्ते लें ,उन्हें साफ़ धो लें तथा उनके छोटे-छोटे टुकड़े तोड़ लें | एक गिलास पानी लेकर उसमे इन पत्तों को डाल कर उबाल लें , थोड़ा पकाने के बाद आंच बंद कर दें | थोड़ी देर इस पानी को ठंडा होने दें ,जब गरारे करने लायक ठंडा हो जाये तो इसे छानकर ,इसमें नमक मिलाकर गरारे करें , याद रखें कि इसमें ठंडा पानी नहीं मिलना है |
अमरूद के ताजे पत्तों का रस 10 ग्राम तथा पिसी मिश्री 10 ग्राम मिलाकर 21 दिन प्रात: खाली पेट सेवन करने से भूख खुलकर लगती है और शरीर सौंदर्य में भी वृद्धि होती है।
अमरूद खाने या अमरूद के पत्तों का रस पिलाने से शराब का नशा कम हो जाता है। कच्चे अमरूद को पत्थर पर घिसकर उसका एक सप्ताह तक लेप करने से आधा सिर दर्द समाप्त हो जाता है। यह प्रयोग प्रात:काल करना चाहिए। गठिया के दर्द को सही करने के लिए अमरूद की 4-5 नई कोमल पत्तियों को पीसकर उसमें थोड़ा सा काला नमक मिलाकर रोजाना खाने से से जोड़ो के दर्द में काफी राहत मिलती है।
डायबिटीज के रोगी के लिए एक पके हुये अमरूद को आग में डालकर उसे भूनकर निकाल लें और भुने हुई अमरुद को छीलकर साफ़ करके उसे अच्छे से मैश करके उसका भरता बना लें, उसमें स्वादानुसार नमक, कालीमिर्च, जीरा मिलाकर खाएं, इससे डायबिटीज में काफी लाभ होता है। ताजे अमरूद के 100 ग्राम बीजरहित टुकड़े लेकर उसे ठंडे पानी में 4 घंटे भीगने दीजिए। इसके बाद अमरूद के टुकड़े निकालकर फेंक दें। इस पानी को मधुमेह के रोगी को पिलाने से लाभ होता है।
जब भी आप फोड़े और फुंसियों से परेशान हो तो अमरूद की 7-8 पत्तियों को लेकर थोड़े से पानी में उबालकर पीसकर पेस्ट बना लें और इस पेस्ट को फोड़े-फुंसियों पर लगाने से आराम मिल जाएगा। चार हफ्तों तक नियमित रूप से अमरूद खाने से भी पेट साफ रहता है व फुंसियों की समस्या से राहत मिलती है।
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घनाक्षरी / मनहरण कवित्त
... झटपट करिए
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लक्ष्य जो भी वरना हो, धाम जहाँ चलना हो,
काम जो भी करना हो, झटपट करिए.
तोड़ना नियम नहीं, छोड़ना शरम नहीं,
मोड़ना धरम नहीं, सच पर चलिए.
आम आदमी हैं आप, सोच मत चुप रहें,
खास बन आगे बढ़, देशभक्त बनिए-
गलत जो होता दिखे, उसका विरोध करें,
'सलिल' न आँख मूँद, चुपचाप सहिये.
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छंद विधान: वर्णिक छंद, आठ चरण,
८-८-८-७ पर यति, चरणान्त लघु-गुरु.
१-६-२०११
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गीत
माँ जी हैं बीमार...
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माँ जी हैं बीमार...
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प्रभु! तुमने संसार बनाया.
संबंधों की है यह माया..
आज हुआ है वह हमको प्रिय
जो था कल तक दूर-पराया..
पायी उससे ममता हमने-
प्रति पल नेह दुलार..
बोलो कैसे हमें चैन हो?
माँ जी हैं बीमार...
*
लायीं बहू पर बेटी माना.
दिल में, घर में दिया ठिकाना..
सौंप दिया अपना सुत हमको-
छिपा न रक्खा कोई खज़ाना.
अब तो उनमें हमें हो रहे-
निज माँ के दीदार..
करूँ मनौती, कृपा करो प्रभु!
माँ जी हैं बीमार...
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हाथ जोड़ कर करूँ वन्दना.
अब तक मुझको दिया रंज ना.
अब क्यों सुनते बात न मेरी?
पूछ रही है विकल रंजना..
चैन न लेने दूँगी, तुमको
जग के तारणहार.
स्वास्थ्य लाभ दो मैया को हरि!
हों न कभी बीमार..
१-६-२०१०
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मुक्तिका
जंगल काटे, पर्वत खोदे, बिना नदी के घाट रहे हैं।
अंतर में अंतर पाले वे अंतर्मन-सम्राट रहे हैं?
जननायक जनगण के शोषक, लोकतंत्र के भाग्य-विधाता।
निज वेतन-भत्ता बढ़वाकर अर्थ-व्यवस्था चाट रहे हैं।।
सत्य-सनातन मूल्य, पुरातन संस्कृति की अब बात मत करो।
नव विकास के प्रस्तोता मिल इसे बताते हाट रहे हैं।।
मखमल के कालीन मिले या मलमल के कुरते दोनों में
अधुनातनता के अनुयायी बस पैबन्दी टाट रहे हैं।।
पट्टी बाँधे गांधारी सी, न्याय-व्यवस्था निज आँखों पर।
धृतराष्ट्री हैं न्यायमूर्तियाँ, अधिवक्तागण भाट रहे हैं।।
राजमार्ग निज-हित के चौड़े, जन-हित की पगडंडी सँकरी।
जात-पाँत के ढाबे-सम्मुख ऊँच-नीच के खाट रहे हैं।।
'सेवा से मेवा' ठुकराकर 'मेवा हित सेवा' के पथ पर।
पग रखनेवाले सेवक ही नेता-साहिब लाट रहे हैं।।
'मन की बात' करें मनमानी, जन की बात न तंत्र सुन रहा।
लोकतंत्र के शव से धनपति लोभ खाई को पाट रहे हैं।।
मिथ्या मान-प्रतिष्ठा की दे रहे दुहाई बैठ खाप में।
'सलिल' अत्त के सभी सयाने मिल अपनी जड़ काट रहे हैं।।
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हाट = बाज़ार, भारत की न्याय व्यवस्था की प्रतीक मूर्ति की आँखों पर पट्टी चढ़ी है, लाट साहिब = बड़े अफसर, खाप = पंचायत, जन न्यायालय, अत्त के सयाने = हद से अधिक होशियार = व्यंगार्थ वास्तव में मूर्ख।
१-६-२०१०
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