कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 29 जून 2023

संजीव वर्मा सलिल, अभिमत, सलिल मेरी दृष्टि में

११.४.२०२१  डॉ दीपिका महेश्वरी 'सुमन'
आप तो अध्ययन और ज्ञान का भंडार है सादर प्रणाम
*





सूचना़:
ट्रू मीडिया : सलिल विशेषांक
*
मित्रो!
निवेदन है कि ट्रू मीडिया मालिकी को सलिल विशेषांक हेतु सामग्री भेजने की अंतिम तिथि को बाद भेजी गई सामग्री स्थानाभाव को कारण अंक में प्रकाशित नहीं की जा
सकेगी, तथापि अंक की पी. डी.एफ. फाइल में सम्मिलित की जा सकेगी। अंतिम तिथि तक सामग्री भेजनेवाले सभी रचनाकारों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए अनुरोध है कि वे पते, दूर/चलभाष व ईमेल न भेजे हों तो भेज दें अन्यथा पत्रिका नहीं भेजी जा सकेगी।
-संपादक
ट्रू मीडिया सलिल विशेषांक हेतु सहभागी रचनाकार -
*
पद्य
सतीश सक्सेना 'शून्य', ग्वालियर
कालीप्रसाद मंडल, हैदराबाद
देवकीनंदन 'शांत', लखनऊ
मनोज श्रीवास्तव, लखनऊ
कुमार अनुपम, पटना
डॉ. गोपालकृष्ण भट्ट 'आकुल', कोटा
सुरेश 'तन्मय', भोपाल
डॉ. शरद खरे, मंडला
डॉ. नीलम खरे, मंडला
संतोष नेमा, जबलपुर
गद्य
प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव 'विदग्ध',जबलपुर
डॉ. एम. एल. खरे, भोपाल
इं. अमरेंद्र नारायण, जबलपुर
कांति शुक्ला, भोपाल
राजेंद्र वर्मा, लखनऊ
अमरनाथ लखनऊ
इं. राजेश अरोरा 'शलभ', लखनऊ
इं. मनोज श्रीवास्तव, लखनऊ
डॉ. बाबू जोसफ़, कोट्टयम केरल
डॉ. नीना उपाध्याय, जबलपुर
श्रीधर प्रसाद द्विवेदी, डाल्टनगंज
डॉ. गोपालकृष्ण भट्ट 'आकुल' कोटा
कुमार अनुपम, पटना
नवीन चतुर्वेदी, मुंबई
गुरु सक्सेना, गाडरवारा
के. पी. मंडल, हैदराबाद
जयप्रकाश श्रीवास्तव, जबलपुर
प्रतुल श्रीवास्तव, जबलपुर
सुरेश कुशवाहा, 'तन्मय'
डॉ. प्रकाश चंद्र फुलोरिया, फरीदाबाद
डॉ. हरि फैजाबादी, लखनऊ
डॉ. अनिल जैन, दमोह
सुरेंद्र सिंह पवार, जबलपुर
प्रो. शरद नारायण खरे, मंडला
डॉ. नीलम खरे, मंडला
हिमकर श्याम, राँची
सुनीता सिंह, लखनऊ
लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला, जयपुर
विजय शुक्ल, डाल्टनगंज
इं. विवेक रंजन श्रीवास्तव 'विनम्र', जबलपुर
शशि पुरवार, पुणे
मंजूषा मन बलौदाबाजार
डॉ. विनीता राहुरीकर, भोपाल
डॉ. कुँवर वीर सिंह मार्तंड, कोलकाता,
बसंत शर्मा, जबलपुर
अवध शरण, शहडोल
छगनलाल गर्ग, आबूरोड
महातम मिश्रा, गोरखपुर
लता यादव, गुरुग्राम
शशि त्यागी, अमरोहा,
इं. अनिल खंडेलवाल, इंदौर
ओमप्रकाश शुक्ल, दिल्ली
डॉ. शोभित वर्मा, जबलपुर
डॉ. मुकुल त्रिपाठी, जबलपुर
अंजू खरबंदा, दिल्ली
छाया सक्सेना, जबलपुर
सुषमा शैली, दिल्ली
गीता गीत, जबलपुर
रीता सिवानी, दिल्ली
संतोष शुक्ला, ग्वालियर
सुमनलता श्रीवास्तव, लखनऊ
रामकुमार वर्मा, जबलपुर
अविनाश ब्यौहार, जबलपुर विजय नेमा 'अनुज' जबलपुर
संतोष नेमा, जबलपुर
अरुण शर्मा, भिवंडी
विनोद जैन 'वाग्वर', सागवाड़ा
तरुण आनंद, जबलपुर
ज्योति मिश्रा, बिलासपुर
पवन जैन, जबलपुर
संध्या सिंह, लखनऊ
लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला, जयपुर
मिथिलेश बडगैंया, जबलपुर
सुजीत महाराज, गोरखपुर
सरस्वती कुमारी, ईटानगर
मनोरंजन सहाय, जयपुर
डॉ. पुष्पा जोशी, दिल्ली
डॉ. राजकुमार तिवारी 'सुमित्र', जबलपुर
डॉ. स्मृति शुक्ल, जबलपुर
संजय वर्मा, जबलपुर
विजय प्रशांत, दिल्ली
*
टीप : कोई नाम छूट गया हो तो कृपया, तुरंत सूचित कर सामग्री यहाँ लगा दें।
***



संजीव वर्मा सलिल एक ऐसा नाम जिसकी जितनी प्रशंसा की जाए उतनी ही कम है |उनकी प्रशंसा करना मतलब सूर्य को दीपक दिखाने जैसा होगा |उनसे मेरा परिचय मुख पोथी पर सन 2014 - 2015 में हुआ |उसके बाद तो उनसे दूरभाष पर वार्तालाप का सिलसिला चल रहा है| सलिल जी स्वयं में ही एक पूरा छंद काव्य हैं| उन्होने किस विधा में नहीं लिखा हर विधा के वे ज्ञानी पंडित हैं उन के व्यक्तित्व में उनकी कवियित्री बुआ महादेवी वर्मा जी की साफ झलक दिखाई देती है |
सन 2014, उस समय मैं नवगीत लिखने का प्रयास कर रही थी उस समय मुझे उन्हों ने ही नवगीत विधा की बारीकियाँ सिखाईं
मेरा नव गीत उनके कुछ सुझावों के बाद -----------
नव गीत
कुछ तो
मुझसे बातें कर लो
अलस्सुबह जा
सांझ ढले
घर को आते हो
क्या जाने
किन हालातों से
टकराते हो
प्रियतम मेरे!
सारे दिन मैं
करूँ प्रतीक्षा-
मुझ को
निज बाँहों में भर लो
थका-चुका सा
तुम्हें देख
कैसे मुँह खोलूँ
बैठ तुम्हारे निकट
पीर क्या
हिचक टटोलूँ
श्लथ बाँहों में
गिर सोते
शिशु से भाते हो
मन इनकी
सब पीड़ा हर लो
.....आभा
आज कल वे सवैया छंद पर कार्य कर रहे हैं उनका कहना है कि
“सवैया आधुनिक हिंदी की शब्दावली के लिए पूरी तरह उपयुक्त छंद' है।
यह भ्रांति है कि सरस सवैये केवल लोकभाषाओं लिखे जा सकते हैं।
सत्य यह है कि सवैया वाचिक परंपरा से विकसित छंद है। लोक गायक प्रायः अशिक्षित या अल्प शिक्षित थे। उन्होंने लोक भाषा में सवैया रचे और उन्हें पढ़कर उन्हीं की शब्दावली हमें सहज लगती है। मैं सवैया कोष पर काम कर रहा हूँ। 160 प्रकार के सवैये बना चुका हूँ। सब आधुनिक हिंदी में हैं जिनमें वर्णिक व मात्रिक गणना व यति समान हैं। के सवैये बना चुका हूँ। सब आधुनिक हिंदी में हैं जिनमें वर्णिक व मात्रिक गणना व यति समान हैं”|
एक कथ्य चार छंद:
*
जनक छंद
फूल खिल रहे भले ही
गर्मी से पंजा लड़ा
पत्ते मुरझा रहे हैं
*
माहिया
चाहे खिल फूल रहे
गर्मी से हारे
पत्ते कुम्हलाय हरे.
*
दोहा
फूल भले ही खिल रहे, गर्मी में भी मौन.
पत्ते मुरझा रहे हैं, राहत दे कब-कौन.
*
सोरठा
गर्मी में रह मौन, फूल भले ही खिल रहे,
राहत दे कब-कौन, पत्ते मुरझा रहे हैं.
रोला
गर्मी में रह मौन, फूल खिल रहे भले ही.
राहत कैसे मिलेगी, पत्ते मुरझा रहे हैं.
*
सलिल जी बहुआयामी प्रतिभा के धनी हैं | उनको देख कर लगता है कि उनका साहित्य के प्रति विशेष रूप से लगाव है इसी लिए उन्होने अपना जीवन साहित्य के प्रति समर्पित कर दिया है |
दोहा लिखना भी मैंने उन से ही सीखा |
एक दोहा लिखा और लिख कर उन्होने मेरे नाम ही कर दिया |
आभामय दोहे नवल, आ भा करते बात। आभा पा आभित सलिल, पंक्ति पंक्ति जज़्बात ।।
इसे कहते हैं बड़प्पन |उनकी प्रतिभा दूर दूर तक देदीप्यमान है और रहेगी |
बेहद आभार आपका
अतः ऐसे व्यक्तित्व को मेरा कोटिशः नमन भविष्य में उनकी साहित्यिक प्रगति और अच्छे स्वास्थ्य एवं शतायु की कामना करते हुए .....
आभा सक्सेना दूनवी
देहरादून
*
आभा सक्सेना, देहरादून
‘सलिल’ जी से हुआ है जब से वार्तालाप
कविता लिखनी आ गई, आया मात्रा नाप
आया मात्रा नाप मात्रा गिननी सीखी
कविता मन को भाई लगती छंद सरीखी
कह आभा मुस्काय लगे अब गीत सरल है
छाने लगे छंद कविता में गन्ध ‘सलिल’ है
२१-२-२०१५
***
१९.४.२०१८
श्रीधर प्रसाद द्विवेदी
सुरसरि सलिल प्रवाह सम, दोहा सुरसरि धार।
सहज सरल रसमय विशद, नित नवरस संचार।।
*
शैलमित्र अश्विनी कुमार
आधा वह रसखान है,आधा मीरा मीर।
सलिल सलिल का ताब ले,पूरा लगे कबीर।
*
कवि ब्रजेश
सुंदर दोहे लिख रहे, भाई सलिल सुजान।
भावों में है विविधता, गहन अर्थ श्रीमान।।
*
रमेश शर्मा
लिखें "सलिल" के नाम से, माननीय संजीव!
छंदशास्त्र की नींव हैं, हैं मर्मज्ञ अतीव!!
१९-४-२०१८
*
***
बहुमुखी प्रतिभा के धनी आचार्य संजीव वर्मा "सलिल"
विजय प्रशांत, दिल्ली
*
आचार्य संजीव वर्मा "सलिल" का नाम हिंदी साहित्यकारों में बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है | अनेक पुस्तकों के रचनाकार श्री सलिल जी लगभग तीन दशकों से गद्य पद्य की सभी विधाओं में अपनी लेखनी से हिंदी साहित्य को समृद्ध कर रहें हैं | गीत, नवगीत, गीतिका, ग़ज़ल, व्याकरण, संस्मरण और यात्रा वृत्त आदि कोई विधा शेष नहीं जिस पर इनकी कहनी न चली हो। इनके काव्य में रस,छंद, अलंकार का सुन्दर समन्वय दिखाई देता है |
विश्व प्रसिद्ध कवियत्री महादेवी वर्मा के भतीजे का गौरव इन्हे प्राप्त होते हुए ये स्वयं सिद्ध कवि हैं | ये शब्दों के ऐसे बाजीगर की श्रोता सुनकर आत्म विभोर हो तालिया बजाना भी भूल जाता हैं | शब्द इनकी लेखनी से निकलने के लिए आतुर रहते हैं |
अनेक राज्यों से अनेक पुरस्कार से सम्मानित श्री संजीव वर्मा सलिल जी पेशे से अभियन्ता के साथ अधिवक्ता भी हैं | आपका हिन्दी भाषा के साथ साथ ब्रज, भोजपुरी,अवधी, बुंदेली, राजस्थानी, हरयाणवी तथा अंग्रेजी भाषाओँ पर भी समान अधिकार है | ट्रू मीडिया पत्रिका के प्रधान सम्पादक श्री ओम प्रकाश जी द्वारा प्रकाशित आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केन्द्रित विशेषांक साहित्यिक जगत में विशेष आलोकित हो ऐसी मेरी शुभेच्छा है | अंत में मेरी ईश्वर से कामना है कि सलिल जी इसी प्रकार साहित्य सृजन करते रहें तथा युवाओं के प्रेरणा श्रोत्र बने रहें| ईश्वर इन्हे सुन्दर स्वास्थ्य के साथ शतायु करे |
विजय प्रशान्त
***
" अभियांत्रिकी और साहित्य का अलौकिक संगम - संजीव वर्मा " सलिल "
संजय वर्मा
*
संजीव भैया के बारे में लिखना वैसा ही है, जैसे समुंदर की बूँदें गिनना - मैं उन्हें सदा भैया से संबोधित करता हूँ और मुझे भी उनसे एक बड़े भाई का प्यार और आशीर्वाद हमेशा मिला है I मेरी उनसे आरंभिक मुलाकात १६ मई २००४ को हुई थी, जब राष्ट्रीय संस्था आई. जी. एस. जबलपुर चैप्टर की स्थापना का विधिवत उद्घाटन हुआ था और तब शायद वो पी. डब्ल्यू. डी. शहडोल में पदस्थ थे I उसके बाद तो उनसे लगातार मुलाक़ातें होती रहीं I आई. जी. एस. जबलपुर चैप्टर के संस्थापक चेयरमैन प्रोफ़े . व्ही के श्रीवास्तव और मानसेवी सचिव डॉ दिनेश खरे के साथ उनसे मुलाक़ातों का क्रम शुरू हो गया , बाद में वो स्थानांतरित होकर जबलपुर आ गये, और फिर तो शहर की तमाम तकनीकी संस्थाओं यथा - इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स ( इंडिया) जबलपुर लोकल सेंटर, प्रेक्टसिंग इंजीनियर्स एसोशिएशन, आई.जी.एस. जबलपुर चैप्टर और अन्य सामाजिक एवम् साहित्यक संस्थाओं के कार्यक्रमों में लगातार उनसे मुलाक़ातें होती रही I आगे चलकर हमने आई.जी.एस. जबलपुर चैप्टर संस्था में साथ काम किया I उन्होने इस संस्था द्वारा आयोजित दो राष्ट्रीय सेमिनारों में प्रकाशित सोविनयर का संपादन किया, जिनमें वर्ष २००८ में बीटुमीन सरफ़ेस - डिजाइन कंस्ट्रक्शन और फेलुअर विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार के लिए पत्रिका " मार्ग " और वर्ष २०११ में एडवान्सेस इन जियोटेकनिकल इंजीनियरिंग, कॉंक्रीट एंड मेसनरी कंस्ट्रक्शन विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार के लिए पत्रिका " निर्माण " का सफल संपादन किया I अपने अनेकों सेमिनार में तकनीकी प्रपत्र प्रस्तुत किए है I
आपने हमेशा हमारी राजभाषा हिन्दी के उन्नयन के लिए कार्य किया I साहित्य की लगभग हर विधा के आप विद्वान है, ये हम सब जानते ही है, अभियांत्रिकी के क्षेत्र में भी आपने हमारा और हमारे नगर का गौरव बढ़ाया है I राष्ट्रीय संस्था इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) के लिए आपके द्वारा संपादित राष्ट्रीय पत्रिका “अभियंता बंधु “ ने पूरे राष्ट्र में ख्याति प्राप्त की I आपके लिखे हिन्दी लेख को पूरे भारत वर्ष में सर्वोत्कृष्ट रचना के रूप में इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) द्वारा आपको राष्ट्रीय पुरूस्कार से सम्मानित किया गया I वर्तमान में आप आई.जी.एस. जबलपुर चैप्टर संस्था के चेयरमैन के रूप में हम सबका मार्गदर्शन कर रहे है I बचपन से हम मैथिली शरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर, महादेवी वर्मा, माखनलाल चतुर्वेदी, मुंशी प्रेमचंद जैसे साहित्यकारों को पढ़कर बढ़े हुए है I हमें गर्व है, कि हम आचार्य संजीव वर्मा " सलिल " के युग में पैदा हुए और इन्हे देखने और सुनने का मौका मिला I हम आपके यशस्वी और स्वस्थ्य जीवन की प्रभु से प्रार्थना करते है I सादर - इंजी संजय वर्मा, मानसेवी सचिव - आई. जी. एस. जबलपुर चैप्टर - 9425803337
साहित्य जगत के विलक्षण साधक –संजीव वर्मा 'सलिल'
मंडला( मध्य प्रदेश ) में जन्मे संजीव वर्मा ‘सलिल” जी, आधुनिक मीरा महादेवी वर्मा के भतीजे हैं। संजीव जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर ट्रू मीडिया राष्ट्रीय पत्रिका में जब विशेषाँक निकालने की बात चली तो मुझे लगा कि बेशक संजीव जी के महादेवी वर्मा जी से रक्त सम्बंध हैं परंतु हमसे भी उनके शब्द सम्बंध तो हैं ही । इसी सम्बंध के चलते लगा उनके विषय में कुछ लिखूँ । संजीव जी की शिक्षा: त्रिवर्षीय डिप्लोमा सिविलअभियांत्रिकी, बी.ई., एम. आई. ई., विशारद, एम. ए. (अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र), एल.एल. बी., डिप्लोमा पत्रकारिता, डी. सी. ए.न के साथ-साथ न जाने कितनी ही भारी भरकम डिग्रियाँ उनके पास हैं।
मुझे याद आ रहा 11 जनवरी 2018 का वह दिन जब विश्व पुस्तक मेले में लेखक मंच पर ऋत फाउंडेशन एवं युवा उत्कर्ष साहित्य्क मंच के तत्वाधान में पुस्तक लोकार्पण एवं साहित्यिक परिचर्चा में मुख्य अतिथि के आसन पर संजीव जी विराजमान थे । मैं सभी के समक्ष लेखक मंच से साहित्य और राज्याश्रय परिचर्चा विषय पर बोल रही थी। मंच से क्रमश: जब सलिल जी का बोलने का समय आया तो उन्होंने सबसे पहले मंच से बोलने वालों पर छोटी-छोटी कविताएं सुना डाली। बस तभी उनकी काव्य क्षमता का अनुमान लग गया था.......भला भात तैयार हो गया यह जानने केलिए एक दो चावल के दाने ही तो पतीली से निकाल कर दबाकर तसल्ली कर ली जाती है । बस वो ही अभी तक की मुलाकात है हमारी ।
यहाँ पर आपकी भाव-तीव्रता का सहज स्वाभाविक समावेश हुआ है।
बना मंदिर नया,दे दिया तीर्थ है ,
नया जिसे कहें सभी गौरव कथा ।
महामानव तुम्हीं, प्रेरणा स्त्रोत हो ,
हमें उजास दो गढें किस्मत नयी।
खडे हैं सुर सभी , देवतालोक में
प्रशस्ति गा रहे , करें स्वागत सभी।
संजीव जी आजकल सवैया छंद पर काम कर रहे हैं। मुझे लगता है नवान्वेषित सवैये उन्हें साहित्याकाश की ऊँचाईयों पर ले जाएंगे। आईये ! देखते हैं एक सवैया –
तलाशते रहे कमी, न खूबियाँ
निहारते , प्रसन्नता कहाँ मिले ?
विरासते रहें हमीं, न और को
पुकारते, हँसी – खुशी कहाँ मिले?
बटोरने रहे सदा , न रंक बंधु हो
सके, न आसमां – जमें मिले ।
निहारते रहे छिपे , न मीत प्रीत पा
सके , मिले – कभी नही मिले।
समसामयिक रचनाओं में भी आपका कोई सानी नही ।
सांत्वना है ‘ सलिल ‘ इतनी लोग
सच सुन समझते
मुखौटा हर एक नेता है चुनावी
मास का
माँ नर्मदा के भक्तिरस में डूबे साहित्य सागर संजीव वर्मा ‘ सलिल ‘ से साहित्य की कोई विधा इनसे अछूती नही है जिस प्रकार सागर में गोते लगाकर रत्न हाथ लगते हैं उसी प्रकार् इनके साहित्य साग्र में गोता लगाने पर कोई न कोई विधा हाथ लग जाती है।
कवि हृदय लेकर कल्पना के सप्तरंगी आकाश में आसन जमाकर इन्होंने जिस काव्य का सृजन किया है, वह घर-घर पहुँचे। अपनी अन्तर्मुखी मनोवृत्ति एवं साहित्य सुलभ गहरे अनुभवों के कारण आपके द्वारा रचित काव्य में वेदना एवं सूक्ष्म अनुभूतियों के कोमल भाव मुखरित हुए हैं। आपके काव्य में संगीतात्मकता एवं भाव-तीव्रता का सहज स्वाभाविक समावेश हुआ है।
साहित्य के विलक्षण साधक आप निरंतर साहित्य –पथ पर अग्रसर रहें, युगों-युगों तक आपका यश गान हो। शुभकामनाओं सहित मैं …………….
डॉ. पुष्पा जोशी
सह- संपादक ट्रू मीडिया
नोएडा एक्सटैंशन यू.पी.

अवध शरण
*
सलिल जी रेवा पुत्र हैं।
महमहिमामयी महादेवी वर्मा के
मानस पुत्र की भांति उनके स्नेह भाजन भी।
छंद विधान,नवीन छन्दों के निर्माण में पटु।
मुझे भी उनका साहचर्य कुछ समय के लिए मिला जो यादगार है।सहित्य के प्रति जागरूक करना, नव लेखकों को प्रोत्साहित करना उनकी रुचि के विषय हैं।
[से.नि प्राचार्य, शहडोल]
संजीव वर्मा 'सलिल' --एक अजीम शख्सियत
प्रोफेसर अनिल जैन
*
यूँ तो होश संभालते ही मेरा मिज़ाज अदबी था । मैंने उर्दू, अंग्रेजी और हिंदी ज़ुबान के कई रिसाले पढ़ डाले थे । गाहे बगाहे क़लम भी चला लिया करता था
इसी शौक से मुब्तिला होकर कुछेक अंग्रेजी ग़ज़लें लिख डाली । बहुत समय तक तो ना मैंने खुद ने ना ही किसी और ने इन गजलों कोई तरजीह नहीं दी क्योंकि पेशतर तो मेरे क़स्बाई नुमा शहर में अंग्रेजी के जानकार न के बराबर थे दूसरा मैं खुद काफी झिझक महसूस कर रहा था कि पता नहीं लोग इस बारे में क्या सोचेंगे ।
इत्तफाकन मुझे आदरणीय संजीव वर्मा सलिल जी के बारे में पता चला । यहाँ यह भी बताते चलूं कि सलिल जी की प्राध्यापक पत्नी डॉ साधना वर्मा उन दिनों मेरी कलीग हुआ करती थीं । उनसे पता चला कि सलिल का मिज़ाज भी शायराना है ।
सलिल जी से पहली मुलाकात के अनुभव को लफ़्ज़ों में बयान करना बहुत ही मुश्किल काम है । बस इतना ही कहूँगा वे पल जीवन के चंद हमेशा याद रखे जाने वाले पल हैं । उनका गंभीर चेहरा, उनका अंदाज़े बयां, ज़ुबानों पर उनकी धाक औऱ सबसे बड़ी बात उनका हौसला अफजाई का जो शऊर मैंने देखा उस पर केवल रश्क़ किया जा सकता है ।
उन्होंने मेरी गज़लों को पढ़ा, दाद दी, और भरोसा दिया कि वे उन्हे साया करवाएंगे । औऱ ऐसा उन्होंने किया भी । इस तरह मेरी ग़ज़लें जिनका उन्वान 'ऑफ एंड ऑन' है अपने अंजाम तक पहुँची । मेरा सफ़र पूरा हुआ लेकिन सलिल जी यहीं नहीं रुके । ये उनका मेरे लिए स्नेह ही था कि वे मेरी किताब हर एक अदबी जलसों में लेकर जाते औऱ कोशिश करते कि मैं और भी बुलंदियों को छू सकूँ ।
इसी सिलसिले में उन्होंने मेरी किताब केरल के हिंदी के जाने माने एक प्रोफेसर डॉ बाबू जोसेफ को भेंट की और गज़लों की तफसील डॉ जोसेफ को बयां की । मैंने लिखा कम था लेकिन सलिल जी ने जो तफसील बताई उससे डॉ जोसेफ बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने मेरे दीवान का तर्जुमा हिंदी ज़ुबान में कर डाला जिसे हिंदी में 'यदा कदा' शीर्षक से प्रकाशित किया गया । इस तरह मेरी टोपी में एक पंख और जुड़ गया ।
इसके बाद रोज़मर्रा की ज़रुरतों में मशरूफ होने के कारण सलिल जी से मुलाकातों का दौर काफ़ी कम हो गया फिर भी फोन पर अक्सर मैं सलाह मशविरा किया करता था । हर मसले पर उनका नज़रिया बहुत साफ था और यही साफगोई उनके हर मशविरे का मज़मून हुआ करती थी ।
वक़्त अपनी रफ्तार से चलता रहा । छुटपुट लेखन भी चलता रहा । और वक्त जैसे फिर उसी मोड़ पर आकर खड़ा हो गया । हुआ यूं कि छोटी छोटी तहरीरों के सफे दर सफे जमा होकर एक किताब की शक्ल अख्तियार करने लगे और साया होने को मचल उठे ।
फिर वही सलिल जी से मुलाकातों का दौर शुरू हुआ । जिस्मानी तौर पर तो उनमें कोई फर्क नज़र नहीं आया लेकिन वैचारिक स्तर वे पूरी तरह से लबरेज़ थे । सलिल जी ने फिर मुझे इनकरेज किया कि मेरी पोयम्स में काफ़ी कुछ है जिसे लोग पसंद करेंगें ।उन्होंने ने यह भी बताया कि आज के दौर में किस तरह के नये नये प्रयोग किये जा रहे हैं । सलिल जी ने खुद ही मेरी अंग्रेजी पोयम्स जिसका टाइटल 'द सेकंड थॉट' है का प्रीफेस लिखा, कवर पेज डिजाइन करवाया और पब्लिश भी करवाई । यहां तक कि किताब का विमोचन भी उन्हीं ने करवाया ।
इस सब के लिए केवल शुक्रगुजार होना कहना मुनासिब नहीं होगा पर यह सच है कि यही सारी बातें किसी इंसान को उन बुलंदियों तक ले जाती हैं जिस बुलंदी पर आज इंजीनियर संजीव वर्मा'सलिल' कायम हैं । वे वास्तव में इसके हकदार हैं ।
[बी 47, वैशाली नगर, दमोह 9630631158 aniljaindamoh@gmail.com]
***
संजीव वर्मा सलिल जी की रचनाएं नए लेखकों तथा कवियों के लिए प्रेरणास्रोत रही हैं।आज काव्य से छन्द लुप्त होते जा रहे हैं।सलिल जी ने इस दिशा में बहुत बड़ा कार्य किया है।यह बात महत्वपूर्ण नहीं है कि आप किसी विषय के बड़े विद्वान हैं ,महत्वपूर्ण तो यह है कि आपके विद्वता रूपी गंगा का जलपान किसने किसने किया।आपने किसी को कुछ सिखाया या नहीं।मैं तो मैथ्स व विज्ञान के साथ ज्योतिष तथा आध्यात्म के फील्ड में कार्य करता हूं।मेरा ये सदैव प्रयास रहता है कि मैं अपने पीछे एक बड़ी संख्या में शिष्यों को अपना सर्वस्व ज्ञान दे सकूं।अभी कुछ महीने पूर्व मैं काठमांडू में था वहां एक छात्र ने सलिल जी की रचना संसार का जिक्र किया।उसने कहा मैं उनके फेसबुक वाल से ही बहुत कुछ का कविताओं की बारीकियां सीख लेता हूं।व्यंग्य,गीत,दोहा,सोरठा,आलोचना सभी विधाओं पर इनकी पकड़ इतनी जबरजस्त है कि सलिल सर अपने आप में एक चलते फिरते हिंदी के विश्वविद्यालय हैं।आप जो समय समय पर विभिन्न जानकारियां प्रदान करते हैं वह इतनी लाभप्रद होती हैं कि उसका महत्व कोई हिंदी सीखने वाला ही बता सकता है।
आपका रचना संसार बहुत वृहद है।अनुकरणीय है।संग्रहणीय है।आप इंजीनियर रहे हैं।विज्ञान क्रमबद्ध ज्ञान की बात करता है।अनुशासन की बात करता है।धर्म के नियम भी अनुशासित हैं।कर्म के प्रति समर्पण तथा ईश्वर की शरणागति ही गीता का मूल उपदेश है।ऐसे महान साहित्यकार व संत हृदय कवि के 108 वर्ष के आयु की श्री कृष्ण से प्रार्थना करता हूं।
सुजीत जी महाराज, गोरखपुर
🏵🏵अनुभवजन्य प्रेरणा स्त्रोत--आचार्य ई. संजीव वर्मा सलिल जी --🏵🏵
मानव जीवन में अनुभव की अन औपचारि क पाठशाला अत्यन्तB महत्वपूर्ण होती है। अनुभव का पाठ किसी निर्धारित पाठ्यक्रम के अन्तर्गत किसी निर्धारित पाठशाला में प्राप्त नहीं किया जा सकता है ।यह तो मानव जीवन के सांसों की गिनती बढ़ने के साथ साथ प्राप्त होता है। उम्र एवं कार्य अभ्यास की परिपक्वता अनुभवजन्यता को बढ़ाती है। ऐसे ही अनभवजन्य प्रेरणा स्रोत एक सशक्त मिशाल हैं हमारे अग्रज भाई श्रधेय आचार्य ई. संजीव वर्मा सलिल। आप अध्यन के क्षेत्र में अभियांत्रिकी,न्याय एवं कानून आदि अनेकों क्षेत्रों में प्रवीण हैं। विभिन्न भाषओं के साहित्य की जानकारी में भी आप महारथ हासिल किये हैं। हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं में भी आपकी गहरी पकड़ है। अनेंक वर्षों से आप हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं पर अपनी लेखनी चला रहें हैं।आपको सरस्वती जी का वरदान प्राप्त है।आपनें कविता,कहानी, गीत ,गजल,दोहा,सोरठा, छन्द,चोपाई,छप्पये,चौपाइ, आलेख,निबंध,रिपोर्टज, समीक्षा, साक्षात्कार आदि अनेकों विधाओं में विशेषज्ञता हासिल की है। आपअनुभवजन्य प्रेरक के रूप में सभी को सदैव उपलब्ध रहते है। विविध विषयों,विविध क्षेत्रों में आप लेखन कार्य करते रहते है। चित्रकारी,फोटोग्राफी प्राचीन एवं नवीन उपकरण तकनीकी आदि विभिन्न कला कौशल में आप उत्क्रष्टता से प्रवीण हैं। अनेकों साहित्यक,सामाजिक सांस्कृतिक,वैज्ञानिक, शिक्षा,कला, क्रीड़ा आदि अनेंक क्षेत्रों में आपको सम्मान,पुरुस्कार प्राप्त हुऐ है। अनेकों संस्थाओं द्वारा आपको अभिनन्दित किया गया है।आप जैसे अनुभवजन्य प्रेरणायुक्त प्रेरक की आज अत्यंत आवश्कता है।
🏵🏵डॉ. मुकुल तिवारी।
बलमुकुन्द त्रिपाठी मार्ग
राम मंदिर के पास, दीक्षितपुरा,जबलपुर,म.प्र.।
मो.९४२४८३७५८५।
***
श्री सलिल जी एक प्रकाश पुंज
हृदय हुआ गद् गद् अनुज सुन कर शुभ सम्वाद।
शीर्ष हुआ उन्नत अधिक प्रभु की कृपा प्रसाद।
हिन्दी के उत्थान में अमर रहेगा नाम।
भाषा के विज्ञान में की सेवा निष्काम।।
डॉ. सतीश सक्सेना 'शून्य'
***
सलिल एक जुनूनी साहित्यकार
राजेश अरोरा 'शलभ'
संजीव वर्मा सलिल एक जुनूनी साहित्यकार हैं...जैसा पिछले लगभग 25 वर्षों से मैंने उन्हें जाना ।उनसे मेरी पहली मुलाकात अभियंता साहित्यकारों की संस्था, 'अभियान' म.प्र.की लखनऊ शाखा के एक कार्यक्रम में हुई थी जब हम दोनों ने एक दूसरे को समझा और जाना था।हुआ यूं कि वर्ष 1996 में मेरी एक पुस्तक 'हास्य बम ' प्रकाशित हुई थी और सलिल जी ने मुझे इस पुस्तक को अभियान जबलपुर,मध्यप्रदेश (जो संस्था का मुख्यालय था ) द्वारा आयोजित होने वाली प्रकाशित पुस्तकों की एक प्रतियोगिता में भेजने के लिए प्रेरित किया ।बाद में मुझे ज्ञात हुआ कि प्रतियोगिता साहित्य की सभी विधाओं हेतु अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित हो रही है और निर्णयोपरांत विजेताओं के लिए एक भव्य पुरस्कार व सम्मान कार्यक्रम प्रस्तावित है, साथ हीक्षअन्य सत्रों में कवि सम्मेलन व नाटक आदि भी आयोजित थे ।कुल मिलाकर मुझे यह प्रतियोगिता उचित और निष्पक्ष लगी क्योंकि प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल में मैं किसी को भी जानता - पहचानता नहीं था !अतः मैंने पुस्तक प्रविष्टि प्रतियोगिता हेतु भेज दी ।
उसके बाद सलिल जी से इस विषय पर कोई बातचीत नहीं हुई ।
लगभग एक माह के पश्चात मुझे उनके एक औपचारिक पत्र से ज्ञात हुआ कि निर्णायक मंडल ने सर्व सम्मति से हास्य विधा में 10 हिन्दी भाषी राज्यों से प्राप्त 107 हास्य व्यंग्य की पुस्तकों में से सम्यक् विचारोपरांत 'हास्य बम 'को सर्वश्रेष्ठ घोषित किया है और सम्मान व पुरस्कार कार्यक्रम जबलपुर, म.प्र. में फलां फलां तारीख को होना सुनिश्चित है ,जिसमें मैं सादर आमंत्रित किया गया था ।
निर्धारित तिथि पर मैं जबलपुर पहुंच गयाऔर मुझे स्टेशन पर रिसीव करने पूरी विनम्रतापूर्वक सलिल जी स्वयं आये । मैंने उनसे पूछा कि मैं कहा रुकूंगा तो उन्होंने बड़ी सदाशयता से कहा कि उनके रहते हुए आपको कोई परेशानी नहीं होगी।जहाँ तक रुकने की बात है तो आपके रुकने की व्यवस्था तोअन्य अतिथियों की भांति होटल में भी की गई है परंतु यदि आप उचित समझें तो मेरे घर भी रुक सकते हैं ,वहां आपको कदाचित अधिक आराम मिले ।मैंने भी सोचा कि सलिल जी ठीक ही कह रहे हैं, क्योंकि मैंने सुन रखा था कि उनकी पत्नी भी साहित्य प्रेमी हैं ,तो उनके घर से अच्छा साहित्यिक वातावरण और कहां हो सकता था ,अतः मैंने भी घरपर रुकने के लिए अपनी सहमति दे दी,जिससे सलिल जी प्रसन्न दिखे । तात्पर्य यह कि जबलपुर में मेरे प्रवास की सम्पूर्ण अवधि के दौरान सलिल जी ने मेरे आतिथ्य और आवभगत में कोई कसर नहीं छोड़ी वरन् यह भी उलाहना दी कि मैं साथ अपनी धर्मपत्नी को क्यों नहीं लाया ? यही नहीं ,कार्यक्रम के उपरांत भी उन्होंने मुझे दो दिन जबलपुर में रोककर नर्मदा जी के दर्शन सहित पूरे जबलपुर नगर के रमणीक स्थलों की सैर भी कराई ।बाद में स्टेशन तक छोड़ने भी स्वयं आए ,जबकि अगर वह इतनी सदाशयता न भी दिखाते, तो भी मुझे उनसे मिलकर उनके व्यवहार से महती प्रसन्नता हुई थी ।
कदाचित सलिल जी के साथ मेरा यह संस्मरण उनके समूचे सरल व्यक्तित्व को रेखांकित करने के लिए पर्याप्त है ।
कालांतर में जब मेरी एक अन्य पुस्तक 'अनंत हसंत' को 2001में अभियान ,जबलपुर द्वारा सभी विधाओं में सम्मिलित रूप से सर्वश्रेष्ठ निर्णीत किया गया तो सलिल जी ने लखनऊ में कार्यक्रम आयोजित करने की इच्छा व्यक्त की और मुख्य अतिथि के रूप में तत्कालीन राज्यपाल, उ.प्र. आचार्य विष्णुकांत शास्त्री जी को आमंत्रित करने का आग्रह मुझसे किया तब मैंने भी उनके उस कार्यक्रम हेतु तत्कालीन काबीना मंत्री,उ.प्र., शीमा रिज़्वी से (जो मुझसे व्यक्तिगत रूप से भली भांति परिचित थीं ) निवेदन कर राज्यपाल जी से इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के लिए उनकी सहमति सहजता से अल्प समय में ही प्राप्त कर ली ।इस कार्यक्रम के बाद सलिल जी से मेरे व्यक्तिगत संबंध और प्रगाढ़ हो गये ।राज्यपाल आचार्य विष्णु कांत शास्त्री जी ने भी जबलपुर से आकर लखनऊ में भव्य कार्यक्रम आयोजित करने हेतु अभियान संस्था और उसके संस्थापक संजीव वर्मा सलिल की भूरि- भूरि प्रशंसा की।
सलिल की साहित्य साधना
**********************
यह तो सलिल जी के व्यक्तित्व की एक झलक थी..यदि बात करें उनकी साहित्य साधना की , उनकी रचनात्मकता की ,तो मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूं कि शायद ही कोई दिन ऐसा होता होगा जब संजीव कुछ न कुछ रचना न करते हों..दोहा छंद तो उनके लिए बायें हाथ के एक खेल की तरह है.उन्हें चलते फिरते गूढ़ से गूढ़ बातों को दोहों में व्यक्त करने में महारथ प्राप्त है।विज्ञान के विद्यार्थी होने के कारण साहित्य में तर्कसंगत कथ्य रचने में उन्हें सहायता मिलती है । "भूकम्प से कैसे बचें "उनकी पुस्तक इसका एक अच्छा उदाहरण है।वे बीसियों साल "नर्मदा" साहित्यिक पत्रिका का सम्पादन कर अपनी सम्पादन क्षमता का सबल परिचय देते रहे ।यहीं पर एक और बात का उल्लेख करना चाहूंगा ,वह यह कि नर्मदा का गेट अप देखकर मुझे लगता था कि शायद वह ज़रूरत से ज़्यादा घना था और उससे कुछ अधिक दर्शनीय बनाया जा सकता था , परंतु साथ ही मैंने ग़ौर किया कि कदाचित सलिल जी की सोच यह रही हो कि अधिक से अधिक पठनीय सामग्री को कम से कम स्थान व मूल्य में पाठकों को पहुंचाया जाये।बहरहाल, तात्पर्य यह है कि सलिल का वैज्ञानिक आधार उनकी रचनात्मकता में बाधक न होकर सहायक होता रहता है और अधिकतम प्राप्ति के सिद्धांत को पुष्ट करता है ।
सलिल जी को समय के साथ चलना भी बख़ूबी आता है ।जब सोशल मीडिया अपनी शैशवावस्था में था, तभी उन्होंने इसके भविष्य को भांपकर अपना लिया और नर्मदा का प्रकाशन इंटरनेट पर करना प्रारम्भ कर दिया जो एक दूरदर्शी कदम था और जिसका लाभ अब उन्हें मिल रहा है ।वे एक अभियंता से आचार्य के रूप में स्थापित हो चुके हैं और अपने ज्ञान,विज्ञान और वृहत साहित्य सृजनात्मकता से सैकड़ों साहित्यप्रेमियों के हृदयों पर राज कर रहे हैं..उनका सृजन अब काफी समृद्ध हो चुका है और उनकी ख्याति दिन ब दिन बढ़ती जा रही है जो अनायास नहीं, सायास प्रतीत होती है और उनके परिश्रम को प्रमाणित करती है ।
मैं सलिल जी के स्वस्थ व सक्रिय साहित्यिक दीर्घायु की कामना करता हूं
***


संजीव वर्मा सलिल मेरी दृष्टि में
एशिया का सबसे बड़ा गाँव.. उत्तर प्रदेश का गहमर..। फौजी गाँव , .. कई बार दूरदर्शन पर देखा सुना....। उपन्यासकार गोपाल राम गहमरी का गाँव....। ...अब, अखंड गहमरी ( अखंड प्रताप सिंह) का साहित्यिक कार्यक्रम। ... हॉल में फोल्डिंग चार पाइयां लगी हुई हैं। .. साहित्यकार एक-एक कर आते जा रहे हैं।
दो व्यक्ति आये। एक की दाड़ी बढ़ी हुई सी, कुछ छितरी हुई सी। पैंट शर्ट पहने। दूसरे की दाड़ी-मूँछ सफाचट, सिर के अधपके बाल कुछ बिखरे हुए से। कुर्ता-पाजामा पहने बहुत साधारण से। .... अपने बगल में पड़े खाली पलंगों पर बैठने का इशारा करता हूँ। दुआ सलाम के बाद, सामान्य सा परिचय ....। सामान रखकर ...बहुत गर्मी है... कहकर अपने कपड़े खोलकर पंखे की हवा लेने का प्रयास करते हैं दोनों। .... बातों का सिलसिला शनैः शनैः आगे बढ़ता है। परिचय की परतें खुलने लगती हैं। पता लगता है, जबलपुर से हैं, संस्मरण लेखिका एवं छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा के भतीजे...। जबलपुर के कवि आचार्य भगवत दुबे एवं गार्गीशरण मिश्र से परिचय होने की बात कहता हूँ .... बात और आगे बढ़ती है। धीरे धीरे नाम पता चलता है ... संजीव वर्मा सलिल। .. एक बार कोलकाता के श्यामलाल उपाध्याय के मुँह से सुना था उनका नाम...। उनके दो संकलनों की भूमिका लेखक यही थे। बड़ी ही विद्वता पूर्ण भूमिका थी।
आधुनिक कविता को लेकर काफी चर्चा होती रही। प्रश्न था.. आजकल के कवियों की कविताओं में छंद भंग का दोष..., छंद के व्याकरण की जानकारी का अभाव...। कविताओं में रसानुभूति की कमी...। मंच पर बढ़ती हुई लप्फाजी .... आदि आदि। उनका विचार था कि कविता पर चर्चा के लिए कार्यशाला होना अति आवश्यक है। एक समय था जब गोष्ठियों में समस्या पूर्तियाँ दी जाती थीं, सुनी जाती थीं, कविताओं की आलोचना की जाती थी, वरिष्ठ कवि कनिष्ठों को समझाते थे और कनिष्ठ बड़े अदब के साथ उनके सुझावों को सुनते, गुनते व मानते थे। मगर अब स्थिति बदल गई है। अब तो “आपै गुरु आपै चेला” वाली स्थिति आ गई है। कोई किसी की सुनता ही नहीं। दो चार लाइनें लिख कर .. महाकवि होने का भ्रम पाल लेते हैं। बहुत सारी बातें हुईं.... कार्यक्रम समाप्त हुआ। जो जहाँ से आये थे, वापस चले गये।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद का जबलपुर अधिवेशन....। साढ़े छह सौ लोगों का जमावड़ा...। मैं भी पहुँचा हुआ था। प्रवेश द्वार पर एक सज्जन दिखे....। वही कुर्ता पाजामा वाले सज्जन ...। पुरानी यादें ताजा हो गईं। दुआ सलाम के बाद चले गये। हम लोग भी कार्यक्रम के विभिन्न सत्रों में व्यस्त हो गये।
दूसरे दिन सूचना मिली ... बसंत कुमार शर्मा जी के निवास पर एक गोष्ठी है, आप को आना है। रामेश्वर शर्मा उर्फ रामू भैया (कोटा), डॉ. राम सनेही लाल शर्मा यायावर जी (फीरोजाबाद), श्रीमती क्रान्ति कनाटे (ग्वालियर) , मैं (कोलकाता) और भी कई लोग विशेष रूप से आमंत्रित थे। गाड़ी भेज दी थी। हम लोग समय से थोड़े बाद में पहुंचे। कार्यक्रम आरंभ हुआ, सबका परिचय दिया गया। कविता पाठ हुए। कविता पर फिर कुछ चर्चा हुई। “साहित्य त्रिवेणी” के एक अंक का विमोचन भी हुआ।
मेरे मस्तिष्क में गहमर में छन्दों पर हुई चर्चा .... उमड़ घुमड़ रही थी। मैंने सलिल के सामने प्रस्ताव रखा कि “भारतीय छंद विधा” को लेकर “साहित्य त्रिवेणी” का एक विशेषांक निकाला जाय और आप उसके अतिथि संपादन का भार संभालें। उससे पहले यायावर जी के अतिथि संपादन में “साहित्य त्रिवेणी” का “नवगीत विशेषांक” भी आ चुका था। जिसमें सलिल जी का भी नवगीत छपा था। वे पत्रिका के स्तर को देख चुके थे। अतः तुरंत तैयार हो गये।
विशेषांक की तैयारी शुरू हो गई। रचनाएं मंगाई जाने लगीं। उन्होंने अथक परिश्रम किया। मैं शनैः शनैः उनके ज्ञान के अपार भंडार से परिचित होता चला गया। मुझे पता लगा वे वाट्सएप पर ‘अभियान जबलपुर’, ‘हिन्दी व्याकरण और साहित्य’, ‘सवैया सलिला’ और फेसबुक पर ‘विश्व वाणी हिन्दी संस्थान’ का संचालन-परिचालन करते हैं। इसके अलावा अंतर्जाल पर ‘हिन्द युग्म’ पर ‘छंद-शिक्षण’, ‘साहित्य शिल्पी’ पर ‘काव्य का रचना शास्त्र’ सिखाते आ रहे हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने छंद और अलंकारों पर अनेक लेख भी लिखे हैं। तात्पर्य यह है वे पूर्णरूपेण साहित्य को समर्पित हैं। उनकी एक-एक सांस साहित्य सेवा में संलग्न है।
उनका अपना रचना संसार तो है ही, संपादन आदि के लिए भी समय निकालते हैं। उनका एक-एक पल साहित्यमय बन गया है। इसमें कोई शक नहीं।
मैं उनके दीर्घ जीवन, अच्छे स्वास्थ्य, यशस्वी व कीर्तिमय जीवन की कामना करते हुए ‘ट्रू मिडिया’ एवं उसके संपादक मण्डल को भी धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने अपने विशेषांक हेतु उचित व्यक्ति को चुना है। उनका जीवन हम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा। इन्ही शब्दों के साथ..
डॉ. कुँवर वीरसिंह मार्तण्ड
संपादक : साहित्य-त्रिवेणी ( बहुभाषिक त्रैमाषिक साहित्य-पत्रिका)
डी-1, 94/A, पश्चिम पुटखाली, मंडलपाड़ा, पो.- दौलतपुर वाया विवेकानंद पल्ली, महेशतला, कोलकाता– 700139,
मो.– 9831062362, email: sahityatriveni@gmail।.com
***
*संजीव वर्मा "सलिल"* एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही मस्तिष्क में हिंदी का व्याकरण नृत्य कर उठता है। सोचते रह जायेंगे पर कुछ भी ऐसा है क्या जो नहीं जानते वे। प्रकांड विद्वान, प्रत्येक विधा उनकी चारिणी है।
इस साहित्य शिल्पी की शिक्षा है , बी.ई.., एम. आई.ई., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम. ऐ.., एल-एल. बी., विशारद,, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा ।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री सलिल जी स्वयं में एक प्रकाश पुंज हैं। जाने कितनी बार कितनी जगहों पर इन्हें सम्मानित किया जा चुका हैं। जो मुझे ज्ञात हैं वे यह हैं
सलिल जी को देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, कायस्थ कीर्तिध्वज, कायस्थ भूषण २ बार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, वास्तु गौरव, सर्टिफिकेट ऑफ़ मेरिट ५ बार, उत्कृष्टता प्रमाण पत्र २, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, सत्संग शिरोमणि, साहित्य श्री ३ बार, साहित्य भारती, साहित्य दीप, काव्य श्री, शायर वाकिफ सम्मान, रासिख सम्मान, रोहित कुमार सम्मान, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, नोबल इन्सान, मानस हंस, हरी ठाकुर स्मृति सम्मान, बैरिस्टर छेदी लाल स्मृति सम्मान, सारस्वत साहित्य सम्मान २ बार . उनकी प्रतिभा को उत्तर प्रदेश, राजस्थान, एवं गोवा के महामहिम राज्यपालों, म.प्र. के विधान सभाध्यक्ष, राजस्थान के माननीय मुख्या मंत्री, जबलपुर - लखनऊ एवं खंडवा के महापौरों, तथा हरी सिंह गौर विश्व विद्यालय सागर, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपतियों तथा अन्य अनेक नेताओं एवं विद्वानों ने विविध अवसरों पर उनके बहु आयामी योगदान के लिए सम्मानित किया है.
बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी हैं ये। इतना कुछ लिखा है इन्होंने किन्तु अहंकार नाममात्र को नहीं। सरल और सहज व्यक्ति।
काशित पुस्तकें:- काव्य संग्रह - मनमीत, दर्द के फ़लक से,
ग्रंथ - रविदास भक्ति सागर
Dr. Jyoti Mishra, Saptshringi Apartment
#402, 4th Floor, Behind Surya Hotel, Karbala Road
Bilaspur (Chhattisgarh) 495001
1974.mysoul@gmail.com, 9827924340
***
संस्मरण : पहली मुलाकात।
मैं बैंक का सेवानिवृत्त प्रबंधक साहित्य पाठन से तो जुडा़ था, पर लेखन और साहित्यकारों से दूर था। बैंक सेवा के दौरान आपा- धापी में समय द्रुत गति से दौड़ता जा रहा था। सेवा निवृत्ति के बाद फेसबुक समूहों से जुड़ा और लघुकथाएँ लिखने लगा। फेसबुक पर 'लघुकथा के परिंदे' समूह की संचालिका सुश्री कांता राय ने बताया कि साहित्य की दुनिया में आचार्य संजीव वर्मा सलिल का बडा़ नाम है और वे जबलपुर में रहते हैं, उन्होंने मुझे उनसे मिलने की सलाह दी।यह तीन वर्ष पुरानी बात है।
जबलपुर में होमसाईंस कालेज रोड़ जाना पहचाना स्थान है, बिना किसी परेशानी के पहुँच गया एक दिन उनके निवास पर।
दरवाजा खुलते ही देखा पूरा कमरा चारों तरफ से पुस्तकों से भरा हुआ है, कुर्सी पर विराजमान थे आचार्य जी सामने टेबिल, टेबिल पर कम्प्यूटर, उन्होंने गर्मजोशी से स्वागत किया। मेरे दिमाग में एक छवि थी कि गंवई तकिया लगाए तख्त पर अधलेटे विचार मुद्रा में किसी व्यक्ति से परिचय होगा। परंतु आचार्य जी तो वर्तमान युग के साहित्य कार है जिनके पास बुजुर्गों के संस्कार भी हैं और कम्प्यूटर युग की तकनीक भी। वे लगातार परिचयात्मक बात करते रहे, और अंगुलियाँ कम्प्यूटर पर चलती रही। उन्होंने कहा बस दो मिनट यह लेख पूरा कर लूँ। मेरी नजर कमरे में रखी पुस्तकों को टटोल रही थी, मेरी पसंद की पुस्तकों का खजाना देख कर मन ही मन प्रसन्न हो रहा था। नये कवर की कई पुस्तकों, लेखकों से मैं अन्जान था।
उन्होंने नजर उठाई और बातों का सिलसिला चल पडा़, पाँच मिनिट बाद ही ऐसा महसूस होने लगा कि हम तो बरसों से एक दूसरे से परिचित हैं, जबलपुर और उसके विकास से जुडी़ बातों पर सहभागिता होना लाजिमी है। तभी मालूम हुआ कि आप पेशे से इंजीनियर हैं।
साहित्य है ही इतना विशाल उससे हर वर्ग, जाति, समुदाय और पेशे के लोग जुडे़ हैं। साहित्य पर चर्चा होने लगी, लघुकथा विधा पर इसके इतिहास और वर्तमान पर उन्होंने भरपूर जानकारी दी।
तीन घंटे कब निकल गये मालूम ही नहीं पडा़।
तब से विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान की गोष्ठियाँ में मेरी पत्नी मधु जैन के साथ सहभागिता होने लगी। अब उनका सान्निध्य और स्नेह हम दोनों को प्राप्त है।
पवन जैन,
593 संजीवनी नगर, जबलपुर।
jainpawan9954@gmail.com
***

लाडले लला संजीव सलिल
कान्ति शुक्ला
*
मानव जीवन का विकास चिंतन, विचार और अनुभूतियों पर निर्भर करता है। उन्नति और प्रगति जीवन के आदर्श हैं। जो कवि जितना महान होता है, उसकी अनुभूतियाँ भी उतनी ही व्यापक होतीं हैं। मूर्धन्य विद्वान सुकवि छंद साधक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जी का नाम ध्यान में आते ही एक विराट साधक व्यक्तित्व का चित्र नेत्रों के समक्ष स्वतः ही स्पष्टतः परिलक्षित हो उठता है। मैंने 'सलिल' जी का नाम तो बहुत सुना था और उनके व्यक्तित्व, कृतित्व, सनातन छंदों के प्रति अगाध समर्पण संवर्द्धन की भावना ने उनके प्रति मेरे मन ने एक सम्मान की धारणा बना ली थी और जब रू-ब-रू भेंट हुई तब भी उनके सहज स्नेही स्वभाव ने प्रभावित किया और मन की धारणा को भी बल दिया परंतु यह धारणा मात्र कुछ दिन ही रही और पता नहीं कैसे हम ऐसे स्नेह-सूत्र में बँधे कि 'सलिल' जी मेरे नटखट देवर यानी 'लला' (हमारी बुंदेली भाषा में छोटे देवर को लला कहकर संबोधित करते हैं न) होकर ह्रदय में विराजमान हो गए और मैं उनकी ऐसी बड़ी भौजी जो गाहे-बगाहे दो-चार खरी-खोटी सुनाकर धौंस जमाने की पूर्ण अधिकारिणी हो गयी। हमारे बुंदेली परिवेश, संस्कृति और बुंदेली भाषा ने हमारे स्नेह को और प्रगाढ़ करने में महती भूमिका निभाई। हम फोन पर अथवा भेंट होने पर बुंदेली में संवाद करते हुए और अधिक सहज होते गए। अब वस्तुस्थिति यह है कि उनकी अटूट अथक साहित्य-साधना, छंद शोध, आचार्यत्व, विद्वता या समर्पण की चर्चा होती है तो मैं आत्मविभोर सी गौरवान्वित और स्नेहाभिभूत हो उठती हूँ।
व्यक्तित्व और कृतित्व की भूमिका में विराट को सूक्ष्म में कहना कितना कठिन होता है, मैं अनुभव कर रही हूँ। व्यक्तित्व और विचार दोनों ही दृष्टियों से स्पृहणीय रचनाकार'सलिल' जी की लेखनी पांडित्य के प्रभामंडल से परे चिंतन और चेतना में - प्रेरणा, प्रगति और परिणाम के त्रिपथ को एकाकार करती द्वन्द्वरहित अन्वेषित महामार्ग के निर्माण का प्रयास करती दिखाई देती है। उनके वैचारिक स्वभाव में अवसर और अनुकूलता की दिशा में बह जाने की कमजोरी नहीं- वे सत्य, स्वाभिमान और गौरवशाली परम्पराओं की रक्षा के लिए प्रतिकूलता के साथ पूरी ताकत से टक्कर लेने में विश्वास रखते हैं। जहाँ तक 'सलिल'जी की साहित्य संरचना का प्रश्न है वहाँ उनके साहित्य में जहाँ शाश्वत सिद्धांतों का समन्वय है, वहाँ युगानुकूल सामयिकता भी है, उत्तम दिशा-निर्देश है, चिरंतन साहित्य में चेतनामूलक सिद्धांतों का विवरण है जो प्रत्येक युग के लिए समान उपयोगी है तो सामयिक सृजन युग विशेष के लिए होते हुए भी मानव जीवन के समस्त पहेलुओं की विवृत्ति है, जहाँ एकांगी दृष्टिकोण को स्थान नहीं।
"सलिल' जी के रचनात्मक संसार में भाव, विचार और अनुभूतियों के सफल प्रकाशन के लिए भाषा का व्यापक रूप है जिसमें विविधरूपता का रहस्य भी समाहित है। एक शब्द में अनेक अर्थ और अभिव्यंजनाएँ हैं, जीवन की प्रेरणात्मक शक्ति है तो मानव मूल्यों के मनोविज्ञान का स्निग्धतम स्पर्श है, भावोद्रेक है। अभिनव बिम्बात्मक अभिव्यंजना है जिसने मुझे विशेष रूप से प्रभावित किया है। माँ वाणी की विशेष कृपा दृष्टि और श्रमसाध्य बड़े-बड़े कार्य करने की अपूर्व क्षमता ने जहाँ अनेक पुस्तकें लिखने की प्रेरणा दी है, वहीं पारंपरिक छंदों में सृजन करने के साथ सैकड़ों नवीन छंद रचने का अन्यतम कौशल भी प्रदान किया है- तो हमारे लाड़ले लला हैं कि कभी ' विश्व वाणी संवाद' का परचम लहरा रहे हैं, कभी दोहा मंथन कर रहे हैं तो कभी वृहद छंद कोष निर्मित कर रहे हैं ,कभी सवैया कोष में सनातन सवैयों के साथ नित नूतन सवैये रचे जा रहे हैं। सत्य तो यह है कि लला की असाधारण सृजन क्षमता, निष्ठा, अभूतपूर्व लगन और अप्रतिम कौशल चमत्कृत करता है और रचनात्मक कौशल विस्मय का सृजन करता है। समरसता और सहयोगी भावना तो इतनी अधिक प्रबल है कि सबको सिखाने के लिए सदैव तत्पर और उपलब्ध हैं, जो एक गुरू की विशिष्ट गरिमा का परिचायक है। मैंने स्वयं अपने कहानी संग्रह की भूमिका लिखने का अल्टीमेटम मात्र एक दिन की अवधि का दिया और सुखद आश्चर्य रहा कि वह मेरी अपेक्षा में खरे उतरे और एक ही दिन में सारगर्भित भूमिका मुझे प्रेषित कर दी ।
जहाँ तक रचनाओं का प्रश्न है, विशेष रूप से पुण्यसलिला माँ नर्मदा को जो समर्पित हैं- उन रचनाओं में मनोहारी शिल्पविन्यास, आस्था, भाषा-सौष्ठव, वर्णन का प्रवाह, भाव-विशदता, ओजस्विता तथा गीतिमत्ता का सुंदर समावेश है। जीवन के व्यवहार पक्ष के कार्य वैविध्य और अन्तर्पक्ष की वृत्ति विविधता है। प्राकृतिक भव्य दृश्यों की पृष्ठभूमि में कथ्य की अवधारणा में कलात्मकता और सघन सूक्ष्मता का समावेश है। प्रकृति के ह्रदयग्राही मनोरम रूप-वर्णन में भाव, गति और भाषा की दृष्टि से परिमार्जन स्पष्टतः परिलक्षित है । 'सलिल' जी के अन्य साहित्य में कविता का आधार स्वरूप छंद-सौरभ और शब्दों की व्यंजना है जो भावोत्पादक और विचारोत्पादक रहती है और जिस प्रांजल रूप में वह ह्रदय से रूप-परिग्रह करती है , वह स्थायी और कालांतर व्यापी है।
'सलिल' जी की सर्जना और उसमें प्रयुक्त भाषायी बिम्ब सांस्कृतिक अस्मिता के परिचायक हैं जो बोधगम्य ,रागात्मक और लोकाभिमुख होकर अत्यंत संश्लिष्ट सामाजिक यथार्थ की ओर दृष्टिक्षेप करते हैं। जिन उपमाओं का अर्थ एक परम्परा में बंधकर चलता है- उसी अर्थ का स्पष्टीकरण उनका कवि-मन सहजता से कर जाता है और उक्त स्थल पर अपने प्रतीकात्मक प्रयोग से अपने अभीष्ट को प्राप्त कर लेता है जो पाठक को रसोद्रेक के साथ अनायास ही छंद साधने की प्रक्रिया की ओर उन्मुख कर देता है। अपने सलिल नाम के अनुरूप सुरुचिपूर्ण सटीक सचेतक मृदु निनाद की अजस्र धारा इसी प्रकार सतत प्रवाहित रहे और नव रचनाकारों की प्रेरणा की संवाहक बने, ऐसी मेरी शुभेच्छा है। मैं संपूर्ण ह्रदय से 'सलिल' जी के स्वस्थ, सुखी और सुदीर्घ जीवन की ईश्वर से प्रार्थना करते हुए अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ व्यक्त करती हूँ ।
[लेखिका परिचय : वरिष्ठ कहानीकार-कवयित्री, ग़ज़ल, बाल कविता तथा कहानी की ५ पुस्तकें प्रकाशित, ५ प्रकाशनाधीन। सचिव करवाय कला परिषद्, प्रधान संपादक साहित्य सरोज रैमसीकी। संपर्क - एम आई जी ३५ डी सेक्टर, अयोध्या नगर, भोपाल ४६२०४१, संपर्क ९९९३०४७७२६, ७००९५५८७१७, kantishukla47@gamil.com .]
***
सम्माननीय काव्य गुरु आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
इंजी. अमरेंद्र नारायण
[भूतपूर्व महासचिव एशिया पैसिफिक टेलीकौम्युनिटी शुभा आशीर्वाद, १०५५, रिज रोड, साउथ सिविल लाइन्स ,जबलपुर ४८२००१ मध्य प्रदेश दूरभाष +९१ ७६१ २६० ४६०० ई मेल amarnar@gmail.com]
*
आचार्य संजीव वर्मा सलिल जी बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति हैं। वे एक कुशल अभियंता, एक सफल विधिवेत्ता, एक प्रशिक्षित पत्रकार और एक विख्यात साहित्यकार तो हैं ही, साथ ही हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार हेतु
निरंतर कार्यरत एक कर्मठ हिंदी सेवी संयोजक भी हैं।
सलिल जी ने कई मधुर गीत लिखे हैं और एक विशेषज्ञ अभियंता के रूप में तकनीकी विषयों पर उपयोगी लेख लिख कर उन्होंने तकनीक के प्रचार में अपना सहयोग भी दिया है । साहित्य, अभियान्त्रिकी और सामाजिक विषयों से जुड़े कई सामयिक विषयों पर उन्होंने मौलिक और व्यावहारिक विचार रखे हैं।
सलिल जी विभिन्न संस्थाओं के सदस्य मात्र ही नहीं हैं, वे कई संस्थाओं के जन्मदाता भी हैं और संयोजक भी हैं। उनकी योग्यता और उनके समर्पित व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर कई लोग साहित्य के क्षेत्र में उन्हें अपना गुरु मानते हैं। साहित्य सृजन हेतु उत्सुक अनेक जनों को उन्होंने विधिवत भाषा, व्याकरण और पिंगल सिखाया और उनके लिखे को तराशा-सँवारा है।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का कोई अभिवक्ता एक प्रतिष्ठित अभियंता हो और पिंगल तथा उरूज का ज्ञाता भी हो- यह कोई साधारण बात नहीं है। विस्मृति के गह्वर से पुराने छंदों को खोज-खोज कर उनका मधुर शब्दावली से श्रृंगार कोई ऐसा शब्द चितेरा ही कर सकता है जिसमें एक विद्वान् की अन्वेषण क्षमता, अभियंता की व्यावहारिक सृजन प्रतिभा और एक सिद्धहस्त कलाकार के सौन्दर्य बोध का सम्यक समन्वय हो। सलिल जी का प्रभावशाली व्यक्तित्व इसी कोटि का है ।
सलिल जी का आग्रह है-
''मौन तज कर मनीषा कह बात अपनी''
यह आज के ऐसे परिवेश में और भी आवश्यक है जहाँ
''तंत्र लाठियाँ घुमाता, जन खाता है मार
उजियारे की हो रही अन्धकार से हार!''
कई रचनाकार संवेदनशील तो होते हैं पर वे मुखर नहीं हो पाते। सलिल जी का कहना है-
''रही सड़क पर अब तक चुप्पी,पर अब सच कहना ही होगा!''
साहित्यकार जब अपना मौन तोड़ता है तो उसकी वाणी कभी गर्जना कर चुनौती देती है तो कभी तीर बन कर बेंधती है । सलिल जी का साहित्यकार इसी प्रकृति का है! सलिल जी शुभ जहाँ है,उसका नमन करते हुए सनातन
सत्य की अभिव्यक्ति में विश्वास रखते हैं।
माँ सरस्वती से उनकी प्रार्थना है-
''अमल -धवल शुचि विमल सनातन मैया!
बुद्धि-ज्ञान-विज्ञान प्रदायिनी छैयां''
तिमिर हारिणी
भय निवारिणी सुखदा,
नाद-ताल, गति-यति
खेलें तव कैंया
अनहद सुनवा दो कल्याणी!
जय-जय वीणापाणी!''
उम्मीदों की फसल उगाने का आह्वान करते हुए सलिल जी ईश्वर, अपने माता पिता और पुरखों के प्रति भक्ति,श्रद्धा और कृतज्ञता अर्पित कर अपनी विनम्रता और शुभ का सम्मान करने की अपनी प्रवृत्ति का परिचय देते हैं । हर भावुक और संवेदनशील साहित्यकार अपने आस-पास बिखरे परिवेश पर अपनी दृष्टि डालता है और जहाँ उसकी भावुकता ठहर जाती है, वहां उसका चिंतन उसे उद्वेलित करने लगता है । इस ठहराव में भी गति का सन्देश है और आशा की प्रेरणा भी! सलिल जी का आह्वान है-
''आज नया इतिहास लिखें हम
कठिनाई में संकल्पों का
नव हास लिखें हम!''
सलिल जी एक कर्मठ साहित्य साधक और एक सम्माननीय काव्य गुरु भी हैं। अनेक युवा साहित्यकार उनसे प्रेरणा पाकर उत्कृष्ट साहित्य की सर्जना कर रहे हैं। उनका यह योगदान निरंतर फूलता-फलता रहे और उनकी प्रखर प्रतिभा के प्रसून खिलते रहें! हिंदी भाषा के विकास,विस्तार,प्रसार के लिये ऐसे समर्पित साधकों की बहुत आवश्यकता है। उन्हें सप्रेम नमस्कार।
१-७-२०१९
***
***
कलम के धनी , हमारे वरद् हस्त., सरस्वती पुत्र आदरणीय आचार्य श्री संजीव वर्मा सलिल जी से मेरी प्रथम वार्ता मोबाइल पर हुई ,,, उनके सानिध्य ने हिन्दी साहित्य की विधाओं पर लिखने की प्रेरणा दी ,,, फलतः दोहा दोहा नर्मदा मे मेरे दोहो का प्रकाशन हुआ ,,, दोहा सतसई पर कार्य चल रहा है ,,, 300 हाइकु भी प्रकाशित करने प्रेषित किये है ,, बून्देलखण्ड़ की यात्रा के दौरान कुछ पल का सानिध्य मिला ,, मिलकर ऐसा लगा जैसे बरसों से जानते हो ,, हृदय अभिभूत हो गया ,, हिन्दी साहित्य उनके कण कण में बसा है .उनके साहित्य प्रेम का जीता जागता प्रमाण उनका निजी बैठक गृह है जो किसी पुस्तकालय से कम नहीं ,, दुर्लभ ग्रन्थ भी उपलब्ध है ...मिलकर नयी ऊर्जा का संचार हुआ ,, खूदा यह अवसर बार बार लाए ... उनके साहित्य कर्म की प्रशंसा करना , वह शब्द शक्ति मेरी कलम मेंं कहाँ ... माँ शारदे की कृपा व उनका सानिध्य हर पल मिलता रहे ।।
विनोद कुमार जैन वाग्वर सागवाड़ा
***
संस्मरण
एक दिन मेरे फ़ोन पर सुबह-सुबह एक कॉल आया, मैं उठाई और उधर से एक आवाज़ आयी हेलो मैं संजीव वर्मा 'सलिल' बोल रहा हूँ। मैं धन्य हो गई उनकी आवाज़ सुनकर, फिर हमारी बातें हुई। आदरणीय संजीव वर्मा 'सलिल' सर वास्तव में दोहा सलिला के सिलसिले में बात करना चाह रहे थे। उन्होंने मुझसे कहा कि अपने 100 दोहे दोहा सलिला के लिए भेजो, और मैंने भेज दिया। दोहा सलिला में मेरे दोहों को भी स्थान मिला और काफी कुछ त्रुटियां रही होंगी मेरे दोहों में क्योंकि
यह मेरा प्रथम साझा संग्रह था। सर ने उन्हें ठीक किया मैं उनका सदैव आभारी रहूँगी।
दूसरी बार जब हमारी फ़ोन पर बातें हुई तो समय का पता नहीं चला कि कितने घंटे हम लोग बात किये। वो बातें सिर्फ हम सबकी चहेती साहित्यकारा आदरणीया महादेवी वर्मा जी के बारे में हुई। मैं बचपन से ही महादेवी वर्मा जी की बहुत बड़ी प्रशंसक रही हूँ। इन से मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगा और महादेवी वर्मा जी के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला। मैं अपने आप को भाग्यशाली समझता हूँ कि मुझे इनका सानिध्य मिला।
तीसरी बात मेरी प्रथम कृति 'जपले मन हनुमान' के लिए मैं सर को लेख लिखने के लिए बोली तो सर ने अपना आशीष मुझे दोहों में दिये। जो कि एक अद्भुत बात है।
रीता सिवानी
***
मैंने आदरणीय संजीव 'सलिल' जी के निर्देशन में खड़ीबोली में सौ दोहों का सृजन किया है । अतः दोहा लेखन में मैं उन्हें अपने परमश्रद्धेय गुरु मानती हूँ ।
आपका प्रथम परिचय दिल्ली में युवा उत्कर्ष साहित्य मंच के कार्यक्रम में हुआ था । आप उस कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में मंच की शोभा बढ़ा रहे थे । सौभाग्य से मुझे भी उनके समक्ष काव्यपाठ करने का सौभाग्य मिला । अवसर था मुक्तक विधा में काव्यपाठ करने का । आपसे परिचय होने के पश्चात दूसरी बार मोबाइल पर बात करने का अवसर मिला । उन दिनों आप दोहा विधा का तीसरा भाग "दोहा दीप्त दिनेश" नामक पुस्तक का संपादन कर रहे थे । आपने मुझसे भी पूछा कि क्या मैं दोहा लेखन में रुचि रखती हूँ । उस समय मैंने मात्र तीस दोहे लिख रखे थे, जो मैंने तुरंत आपको ई मेल कर दिए। उन दोहों में मैंने देशज शब्दों का प्रयोग भी किया हुआ था। क्योंकि अब तक जो दोहे मुझे स्मरण थे उन में भी इस प्रकार की ही भाषा का प्रयोग किया गया था । दोहा गायन मुझे बहुत ही अच्छा लगता है । मैं स्वयं तो दोहे गाती ही हूँ । शिक्षिका भी हूँ अतः अपने विद्यालय के बच्चों को भी दोहे गाना सिखाती हूँ । पाठ्यक्रम में न हों तब भी अन्य गतिविधि के अंतर्गत दोहा गायन प्रतियोगिता कराना बहुत अच्छा लगता है ।
आदरणीय सलिल जी ने मुझे एक सप्ताह का समय दिया और कहा कि आप सौ दोहे लिखिए । यह मेरे लिए एक चुनौती पूर्ण कार्य था ।
मैंने संकल्प लिया कि इस कार्य को मैं अवश्य पूर्ण करूँगी । पूरी निष्ठा और लगन से मैंने दोहे लिखे । अनेक बार सलिल जी से दोहों पर विचार विमर्श भी किया। सीखने का उत्साह बढ़ता गया और मेरा साहित्यिक संकल्प माननीय 'सलिल जी' के निर्देशन में पूर्ण हुआ।" विभिन्न विधाओं हाइकु,पिरामिड,चौका,कविता के उपरांत साझा संकलन में एक और पद्य विधा खड़ीबोली में "दोहा" की बढ़ोत्तरी हुई,जिसका श्रेय परम आदरणीय सलिल जी को जाता है ।
"दोहा दीप्त दिनेश" के नाम से साझा संग्रह प्रकाशित हुआ। लखनऊ में पुस्तक का लोकार्पण हुआ, जिसमें मैं व्यक्तिगत कारण से उपस्थित होने में असमर्थ रही ।
कुछ ही दिन पश्चात मेरे पते पर कोरियर से दोहा संकलन के तीनों भाग पहुँचा दिए गए ।
सच मानिए मुझे इस बात की खुशी तो बहुत थी कि पुस्तकें घर बैठे ही मिल गई, लेकिन मैं उन्हें
इतनी दूर से आने पर भी आतिथ्य न दे सकी जिसका मुझे आजीवन खेद रहेगा।
सरल वाणी , सरल वार्तालाप अति प्रबुद्ध ,ज्ञानवान तथा मेघों सी धीर गम्भीर वाणी के धनी परम श्रद्धेय परम आदरणीय सलिल जी को मेरा सादर चरण स्पर्श।
शशि त्यागी
अमरोहा
9045172402
***
(आदरणीय आचार्य संजीव सलिल जी को सादर नमन करते हुए यह कहने में कोई संकोच नहीं कि मैं उनके व्यक्तित्व व कृतित्व से अभिभूत हूँ. मेरी नवगीत कृति ‘जब से मन की नाव चली’ और गीतिका शतक ‘चलो प्रेम का दूर क्षितिज तक पहुँचायें संदेश’’ की अप्रतिम भूमिका के लिए मैं सदैव उनका कृतज्ञ रहूँगा. उन पर कुछ भी लिखना सूर्य को दीपक दिखाना है, फिर भी मेरी लेखनी से मैं जितना लिख पाया समर्पित है-)
गीतिका
छंद- मरहट्ठा माधवी, विधान- 16, 13 (चौपाई+दोहा का विषम चरण)
पदांत- है, समांत- आर
छंद प्रवीण, गीत-नवगीतों, काव्यम विधा में धार है.
गद्य पद्य में सहज सरल हैं, भाषा पर अधिकार है.
मेरी कृतियों पर सम्पादन, लिखीं भूमिकायें अप्रतिम,
समालोचना, समाधान में, लेखन भी दमदार है.
हैं साहित्यं सुधा रस सागर, निर्मल सलिल सुजान से,
संरक्षण देता, हितकारी, इतना हृदय उदार है.
माँ वाणी मुख पर राजित है, होते सिद्ध मनोरथ ज्यों,
पंच वृक्ष नंदनकानन में, कल्पवृक्ष मंदार है.
विधि-विधान का जो अकाट्य देते प्रमाण भी दृढता से, ’आकुल’ ऐसे उद्भट कवि को, साष्टांग नमस्कार है.
-डॉ. गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ 817, महावीर नगर- 2, कोटा- (राजस्थान)
पिन- 324005 चलितांक- 7728824817.
***
कुण्डलिया:-
श्रीधरप्रसाद द्विवेदी डाल्टनगंज
**
रचना छल-छल सलिल सा, कर लेते 'संजीव'।
करते जब कल नाद कवि, हिलता सबका ग्रीव।
हिलता सबका ग्रीव, बन्द से मस्त बनाते।
नव नव रचते छन्द, कभी नवगीत सुनाते।
कह श्रीधर मतिमन्द, छन्द का अद्भुत गढ़ना।
धन्य धन्य संजीव, आपकी अद्भुत रचना।।
***
श्रीधर प्रसाद द्विवेदी
सलिल प्रवाहित हो रहे, जग में गंग समान।
धवल धार सम कीर्ति है, सब करते गुणगान।।
छन्द गीत नव गीत हो, सब हैं रस की खान।
रच रच कर रचना किये, रसिक करें स्नान।।
११.४.२०२१ 
***
डॉ। संगीत भारद्वाज, भोपाल 
आपका अद्भुत और अबाध लेखन सचमुच बहुत निराला है ।
आशा, विश्वास और प्रेरणा देने वाला है।
आपको सदा नमन है, वंदन है।
आप स्वयं सलिल हैं ,लेखन सृजन की अविरल धारा हैं
२१.४.२०२१ 
***
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
व्यक्तित्व एवं कृतित्व
संतोष शुक्ला, ग्वालियर
***************
पारिवारिक परिशिष्ट
माँ भारती के वरद पुत्र आचार्य संजीव वर्मा ' सलिल 'जी का नाम साहित्य जगत में, झिलमिलाते ध्रुव तारे के समान है, जो तारामंडल में अपनी अलग पहचान बनाए हुए है।
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल ' जी का निवास मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में है, पर उनके ज्ञान का प्रकाश यत्र-तत्र-सर्वत्र फैला है।
आपको ज्ञान का अथाह भण्डार मानो उन्हें विरासत में मिला है, स्वयं ' सलिल 'जी अपनी माँ कवियत्री शान्ति देवी एवं बुआश्री महादेवी वर्मा को साहित्य और भाषा के प्रति अटूट स्नेह और विश्वास का प्रेरणा श्रोत मानते हैं।उनकी रग-रग में बचपन से ही संस्कारों के बीज अंकुरित, प्रस्फुटित और पल्लवित हुए हैं जिसकी पुष्टि सलिल जी द्वारा लिखित महादेवी वर्मा के संस्मरण में कई स्थानों पर हुई है। सलिल जी को बुआश्री का प्यार आसानी से नहीं मिल गया।
दो पीढ़ियों के मध्य का अंतराल नई पीढ़ियों के लिए अपरिचय बन जाना इसका मुख्य कारण बना।
उन्होंने अथक परिश्रम कर खोजबीन की, पत्रकारिता का कोर्स करने के कारण, उनका खोजी होना स्वाभाविक था।ऐसे मिला बुआश्री का अपरिमित स्नेह। वैसे बुआ का भतीजों पर विशेष स्नेह होता है।
सलिल जी को पूर्वजों की सेवा करना तथा उनकी जानकारी रखने की अलग ही आदत है।
आज भी वो अपने नाना जी रायबहादुर माता प्रसाद सिन्हा ' रईस ' जो मैनपुरी में ऑनरेरी मजिस्ट्रेट थे, उनके बारे में विषद जानकारी के लिए परेशान हैं।
सलिल जी को वृद्धों की सेवा और उनको सम्मान करना युवावस्था से ही प्रिय था।
उपनाम ' सलिल ' रखने का विशेष कारण था ।उनकी बुआश्री ने कहा 'सलिल' ही क्यों 'सलिलेश' क्यों नहीं।
दिनकर जी के निबंध ' नेता नहीं नागरिक चाहिए 'से प्रभावित हो कर, उनके किशोर मन में वैशिष्ट्य से सामान्यता की चाह उपजी।
सलिल जी आज इतने लब्धप्रतिष्ठ होने के बावजूद भी अपने को सामान्य ही मानते हैं।
वे बुआश्री के शब्दों में 'शैतान' भी थे। वह तो बचपन का स्वाभाविक गुण होता है लड़कों में।
आचार्य जी ने माता-पिता, मौसी,बहनों के स्नेह को रचनाओं में अंकित किया है।माँ को समर्पित बहुत ही मार्मिक कविता का सृजन किया। माँ के जाने के बाद पिता की स्थिति को भी दर्शाया है।
अपनी काव्य कृति ' सड़क पर ' अपनी स्नेहमयी मौसी को समर्पित की।
आज के स्वार्थी युग में आचार्य सलिल जी एक अच्छे इंसान हैं।
साहित्य सेवा:-
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जी अभियंता और अधिवक्ता होते हुए भी हिन्दी के परम साधक हैं। विविध विधाओं में लेखन कार्य के कारण ही हिन्दी जगत में उनकी अच्छी पहचान बनी हुई है।
उनकी कृति ' काल है संक्रांति का 'में जिन गीतों और नवगीतों का संकलन हुआ है, उनका क्षेत्र बहुत व्यापक है।उनको पढ़कर ऐसा लगता है कि सलिल जी समाज के जागरूक पहरेदार हैं।आपने अपनी रचनाओं में किसी पहलू को नहीं छोड़ा है, सारे समाज का ही मूल्यांकन किया है।
उनकी अभिव्यंजनाओं में विश्वास की झलक है।वो एक संवेदनशील रचनाकार हैं। जिस समाज में रहते हैं ,उसकी हर गतिविधि को समझते हैं और उन्हीं में से अपनी रचना की सामग्री चुन लेते हैं। यही कारण है कि उनकी रचना पाठकों की भावनाओं तक गहराई से पहुंचती हैं।
जिधर देखो उधर विरोधाभास ही नजर आता है, जो चाहिए उसके विपरीत होता है।
सलिल जी की रचनाओं के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है की उनकी पैनी दृष्टि से कोई क्षेत्र ,कोई वर्ग नहीं बचा है।
आचार्य जी की कविताओं की यह विशेषता है कि जैसा वह सोचते हैं वैसा पाठक भी सोचने को विवश हो जाता है।
आज का इंसान जानते हुए भी गलत राह पर चलता है, समझाने पर भी नहीं समझता तब देखिए सलिल जी के तेवर
'मनुज न किंचित चेतते/श्वान थके हैं भौंक।'
भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर पड़ रहे पाश्चात्य प्रभाव को भली-भाँति समझ रहे हैं लेकिन वे आस्था और संभावना के कवि हैं वो निराश नहीं होते, जानते हैं सदियों से दासता के कारण उदास और सोये हुए लोगों को जगाने के लिए तीव्र ध्वनि की आवश्यकता होती है। सलिल जी की कविता वही शंखध्वनि है।
प्रकाशित कृतियाँ:
कलम के देव,भूकंप के साथ जीना सीखें, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, काल है संक्रांति का, कुरुक्षेत्र गाथा, सड़क पर।
उल्लेखनीय घटनाएँ
अनूठा उदाहरण:
सलिल जी की पत्नी साधना वर्मा जी कैंसर जैसी भयंकर बीमारी से ग्रसित हो अस्पताल में भर्ती थीं उस विषम परिस्थिति में भी सलिल जी ने गीत, नवगीत, मुक्तक, मुक्तिकाओं की सर्जना की, जब अपने को सम्हालना ही कठिन होता है।
इतना ही नहीं स्वयं आचार्य जी ने एक के बाद भयंकर कष्ट झेले।
१९९४, १९९६ और १९९९ में सड़क दुर्घटना में फ्रैक्चर हुआ।१९९४ में तो बाएं पैर का हिप ज्वाइंट ही निकाल दिया गया। चलने में कष्ट होता है इसके बावजूद भी वो साहित्य साधना में लीन सुदूरवर्ती प्रांतों में जाते ही रहते हैं। धन्य है उनकी साहित्य साधना।
विहगावलोकन :
काल है संक्रांति का -
'काल है संक्रांति का' सलिल जी गीत नवगीत की अनुपम कृति है।आपको समय की अच्छी पकड़ है। वास्तव में यह काल संक्रांति का ही है।आज सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है, टूट रहे हैं, बिखर रहे हैं और उनके स्थान पर नये मूल्यों की स्थापना हो रही है।इसी संदर्भ में सलिल जी ने सूर्य को सम्बोधित करते हुए कई गीत लिखे हैं। सभी एक से बढ़कर एक सुन्दर, भावप्रवण एवं नवीनता से भरपूर हैं। सभी रचनाएँ छंदों के अनुशासन में एवं लयबद्ध हो सभी बिन्दुओं पर खरी उतरी हैं। जब सूर्य दक्षिणायन में होता है, उस समय को बड़े ही सुन्दर प्रतीकों से वर्णित किया है। यह उनकी अद्भुत क्षमता का ही द्योतक है।
इस कृति में राजनीति की दुर्दशा, विसंगति की बाढ़, हताशा, निराशा, वेदना, संत्रास, आतंक और आक्रोश को दर्शाते अनेकों दृश्य हैं जो बहुत ही प्रेरक हैं।
काल है संक्रांति का कृति के कुछ अंश
१. काल है संक्रांति का,
तुम मत थको सूरज
२. स्वभाषा को भूल
इंग्लिश से लड़ाती लाड़
३. प्रथा की चूनर न भाती
फेंकती है फाड़
४. जनविरोधी सियासत
को कब्र में दो गाड़
५. प्राच्य पर पाश्चात्य का
अब चढ़ गया है रंग
६. शराफत को शरारत
नित कर रही है तंग
७. मनुज करनी देखकर
खुद नियति भी है दंग
८.अनवरत विस्फोटक होता
गगन, सागर चरण धोता
९. कैंसर झेलो ग्रहण का
कीमियो नव आस बोल
१०. खिचड़ी तिल गुड़वाले। लड़ुआ
पिज्जा तजकर खाओ बबुआ
११. करना सदा जो सही हो
तकदीर से मत हों गिले
तदवीर से जय हो किले
१२.लेटा हूँ मखमल गादी
पर लेकिन नींद नहीं आती है
इस करवट में पड़े दिखाई
कमसिन बरतनवाली बाई
१३. वेश संत का मन शैतान
१४. लोकतंत्र का बंदी बेबस
१५ .उड़ चल हंसा मत रुकना
१६.हम में हर एक तीसमारखाँ
कोई नहीं किसी से कम
१७. हम आपस में उलझ उलझ कर
दिखा रहे हैं अपनी दम
१८. लिए शपथ सब
संविधान की
देश देवता हैं सबका
देश हितों से करो न सौदा
तुम्हें वास्ता है रब का
दूसरी कृति 'सड़क पर' नवगीत संग्रह
गीतकार-आचार्य संजीव वर्मा ' सलिल' का नाम नवीन छंदों के निर्माण तथा उनपर गहनता से किये गए कार्यों के लिए प्रबुद्ध जगत में बड़े गौरव से लिया जाता है।
रस,अलंकार और छंद का गहन ज्ञान उनकी कृतियों में स्पष्ट दिखाई देता है। विषय वस्तु की दृष्टि से कोई विषय उनकी लेखनी से बचा नहीं है।रचनाओं पर उनकी पकड़ गहरी है। हर क्षेत्र का अनुभव उसी रूप में बोलता है जिससे पाठक और श्रोता उसी परिवेश में पहुंच जाता है।हिन्दी के साथ साथ बुन्देली, पचेली,भोजपुरी, ब्रजभाषा, अवधी, राजस्थानी, मालवी, छत्तीसगढ़ी, हरियाणवी तथा अंग्रेजी भाषा में भी लेखन कार्य किया है।
मूल्यांकन -
उनकी कृति 'काल है संक्रांति की 'उद्भट समीक्षकों द्वारा की समीक्षा पढ़कर ही पता चलता है कि आचार्य सलिल जी ज्ञान के अक्षय भण्डार हैं अनन्त सागर हैं।
'काल है संक्रांति का 'और 'यदा कदा 'जैसी अमूल्य कृतियाँ मुझे उपहार के रूप में प्राप्त हैं।
आचार्य सलिल जी की सद्य प्रकाशित 'सड़क पर'
मैंने अभी पढ़ी -
'सड़क पर' नवगीत संग्रह में गीतकार सलिल जी ने देश में हो रहे राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों को स्पष्ट रूप से दर्शाया है।
उनके नवगीतों में भाग्य के सहारे न रहकर परिश्रम द्वारा लक्ष्य प्राप्त करने पर सदैव जोर दिया है। छोटे-छोटे शब्दों द्वारा बड़े-बड़े संदेश दिये हैं और चेतावनी भी दी है।
कहीं अभावग्रसित होने के कारण तो कहीं अत्याधुनिक होने पर प्यार की खरीद फरोख्त को भी उन्होंने सृजन में उकेरा है। आजकल शादी कम और तलाक ज्यादा होते हैं, यह भी आधुनिकता का एक चोला है।
इसके अतिरिक्त सलिल जी ने एक और डाइवोर्स की बात लिखी है
निष्ठा ने मेहनत से
डाइवोर्स चाहा है।
आगे भी
मलिन बिंब देख-देख
मन दर्पण
चटका है
आजकल बिना रिश्वत के कोई काम नहीं होता
सलिल जी के शब्दों में
पद-मद ने रिश्वत का
टैक्स फिर उगाहा है ।
पाश्चात्य के प्रभाव में लोगों को ग्रसित देख गीतकार का हृदय व्यथित है-
देह को दिखाना ही
प्रगति परिचायक है
मानो लगी होड़
कौन कितना सकता है छोड़?
पाश्चात्य प्रभाव के कारण ही लोग अपने माता-पिता को असहाय छोड़, बृद्धाश्रम में छोड़ कर अपनी जिम्मेदारियों से मुँह मोड़ लेते हैं।
अपने पुराने स्वास्थ्यवर्धक खान-पान को भूलकर हानिकारक चीजों को शौक से खाते हैं देखिए
ब्रेड बटर बिस्कुट
मन उन्मन ने
गटका है।
अब
लोरी को राइम ने
औंधे मुँह पटका है
इसी क्रम में
नाक बहा, टाई बाँध
अंग्रेजी बोलेंगे
अब कान्हा गोकुल में
शायद ही डोलेंगे।
आजकल शिक्षा बहुत मँहगी हो गई है। उच्च शिक्षा प्राप्त युवक नौकरी की तलाश इधर- उधर भटकते हैं। बढ़ती बेरोजगारी पर भी आचार्य जी ने चिंता व्यक्त की है। शायद ही कोई ऐसा विषय है जिस पर सलिल जी की पैनी दृष्टि न पड़ी हो।
आचार्य जी के नवगीतों के केंद्र में श्रमजीवी श्रमिक है।चाहे वह खेतों में काम करनेवाला किसान हो, फैक्ट्रियों में काम करनेवाला श्रमिक या दिनभर पसीना बहाने वाला कोई मजदूर जो अथक परिश्रम के बाद भी उचित पारिश्रमिक नहीं पाता तो दूसरी ओर मिल मालिक, सेठों,सूदखोरों की तोंद बढ़ती रहती है। देखिए-
चूहा झाँक रहा हंडी में
लेकिन पाई
सिर्फ हताशा
यह भी देखने में आता है
जो नहीं हासिल
वही सब चाहिए
जितनी आँखें
उतने सपने
समाज के विभिन्न पहलुओं पर बड़ी बारीकी से कलम चलाई है।
घर में काम वाली बाइयों, ऑफिस में सहकर्मियों तथा पास पड़ोस में रहने वाली महिलाओं के प्रति पुरुषों की कुदृष्टि को भी पैनी नजर का शिकार बनाया है।
महिलाएँ आज भले ही लगभग सभी क्षेत्रों में अपना वर्चस्व स्थापित कर रही हैं फिर भी मध्यम और सामान्य वर्ग की महि,लाओं की स्थिति अभी भी बहुत अच्छी नहीं है।कार्यरत महिलाओं को दोहरी भूमिका निभाने के बाद भी ताने, प्रताड़ना और उपेक्षा का सामना करना पड़ता है।
सलिल जी के शब्दों में
मैंने पाए कर कमल, तुमने पाए हाथ
मेरा सर ऊँचा रहे झुके तुम्हारा माथ
सलिल जी ने नवगीतों में विसंगतियों को खूब उकेरा है।कुछ उदाहरण देखते हैं-
आँखें रहते सूर हो गए
जब हम खुद से दूर हो गए
.
मन की मछली तन की तितली
हाथ न आई पल में फिसली
जब तक कुर्सी तब तक ठाट
नाच जमूरा नाच मदारी
.
मँहगाई आई
दीवाली दीवाला है
नेता हैं अफसर हैं
पग-पग घोटाला है
आजादी के इतने वर्षों बाद भी गाँव और गरीबी का अभी भी बुरा हाल है लेकिन गीतकार का कहना है-
अब तक जो बीता सो बीता
अब न आस घट होगा रीता
.
मिल कर काटें तम की कारा
उजियारे के हों पौ बारा
.
बहुत झुकाया अब तक तूने
अब तो अपना भाल उठा
मन भावन सावन के माध्यम से जहाँ किसानों की खुशी का अंकन किया है वहीं बरसात में होने वाली समस्याओं को भी चित्रित किया है।
आचार्य जी ने नये नये छंदों की रचना कर अभिनव प्रयोग किया है।
सलिल जी ने नवगीतों में परिवेश की सजीवता बनाए रखने के लिए घरों में उपयोग में आने वाली वस्तुओं, रिश्तों के सम्बोधनों आदि का ही प्रयोग किया है।
संचार क्रांति के आने से लोगों में कितना बदलाव आया है उसकी चिंता भी गीतकार को है
.
हलो हाय मोबाइल ने
दिया न हाय गले मिलने
नातों को जीता छलने
.
' सलिल 'जी ने गीतों नवगीतों में लयबद्धता पर विशेष जोर दिया है।
लोक गीतों में गाये जाने वाले शब्दों, छंदों , अन्य भाषाओं के शब्दों, नये-नये बिम्बों तथा प्रतीकों का निर्माण कर लोगों के लिए सड़क पर भी फुटपाथ बनाये हैं।जो बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।
' सड़क ' गीत नवगीत संग्रह में अनेकानेक छोटे छोटे बिन्दुओं को अंकित किया है उन सब को इंगित करना असंभव है।
सलिल जी ने ' सड़क पर ' गीत नवगीत संग्रह में सड़क को केंद्र बिन्दु बनाकर जीवन के अनेकानेक पहलुओं को बड़ी कुशलता से चित्रित किया है
सड़क पर जनम है
सड़क पर मरण है
सड़क पर शरम है
सड़क बेशरम है
सड़क पर सियासत
सड़क पर भजन है
सड़क ही सख्त लेकिन
सड़क ही नरम है
सड़क पर सड़क से
सड़क मिल रही है।
आचार्य संजीव वर्मा ' सलिल 'जी ने अपनी सभी रचनाओं में माँ नर्मदा के वर्चस्व को सदा वर्णित किया है तथा 'सलिल' को अपनी रचनाओं में भी यथासंभव प्रयुक्त किया है।
माँ नर्मदा के पावन निर्मल सलिल की तरह आचार्य 'सलिल 'जी भी सदा प्रवहमान हैं और सदा रहेंगे।
उनकी इस कृति को पाठकों का भरपूर मान, सम्मान और प्यार मिलेगा ऐसा मेरा विश्वास है।
***
गीता गीत
संपादक गीत पराग
सलिल भैया की तुलना कम्प्यूटर से करूं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
विद्वत्ता में उनका कोई सानी नही।
वे क्षण भर में काव्य रचना और समीक्षा में पारंगत हैं।
वे कब नाराज होते हैं कब खुश होते हैं समझ में नहीं आता। तभी तो वे सलिल कहलाते हैं।
उनके घर में उनकी हजारों हजार किताबों की लायब्रेरी अद्भुत है।
उनके पास कुछ समय के लिये भी बैठने से ज्ञान की बहुत सी बातें पता चलती हैं।
वे स्वंम किसी भी विषय पर बहुत विस्तृत और सारगर्भित सुन्दर लिख सकते हैं।
हमारे लिये उनके लिये कुछ लिखना सूर्य को दिया दिखाने जैसा है।
हम उनका बहुत मान सम्मान और आदर करते हैं।
ईश्वर उन्हैं हमेशा स्वस्थ और ऊर्जावान बनाये रखे।

***
विश्ववाणी हिन्दी संस्थान अभियान
दिल्ली संस्थान इकाई स्थापना
के शुभ अवसर पर
आचार्य संजीव वर्मा सलिल जी
से एक आत्मीय मुलाकात
जबलपुर,,,, पत्थरों का शहर,,, जो अपने संगमरमर पत्थर के लिए बहुत प्रसिद्ध है । इस पत्थर का उपयोग आभूषण व मूर्तियाँ बनाने में इस्तेमाल होता है जो पूरे भारत में भेजा जाता है । इस शहर से अनेक साहित्यकार उदित हुए जिनमें से एक है आचार्य संजीव वर्मा सलिल जी ।
उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश आपके सामने पेश हैं । उन्होंने बेहद खूबसूरत ढंग से बातचीत आरंभ करते हुए कहा-
मैं जिस शहर से आता हूँ वहीं से अपनी बात शुरु करता हूँ । नर्मदा के किनारे बसे जबलपुर में कल पत्थर बहुत है,,,,बेसालट,,,, इसलिए इसे पत्थरों का शहर कहते हैं और आजकल तो हर शहर पत्थरों का शहर हो गया है ।
"पत्थर से हर शहर में मिलते मकां हजारों
मैं ढूंढ ढूंढ हारा घर एक नही मिलता!"
उन्होंने बताया कि मैंने भी चालीस बरस नौकरी की है और नौकरीपेशा लोगों की मानसिकता पर बहुत ही सटीक बात कही-
"बाप की दो बात सहन नही कर पाते
अफसरों की लट भी प्रसाद है!!!"
बातचीत के दौरान समाजिकता की चर्चा चली तो झट दो पँक्तियाँ हाजिर कर दी-
"जब तलक जिंदा था रोटियाँ न मुहैया थी
मर गया तो तेहरवीं में दावतें हैं!!"
उन्होंने बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए कहा कि भारत में साहित्य साधना न तो शौक है न व्यवसाय! हमारे ऋषि मुनि जिस परम्परा का सृजन कर रहे हैं वैदिक काल से उसमें साहित्य का एक ही उद्देश्य है जिसमें सबका हित समाहित हो, वह साहित्य है जिसमें वैचारिक प्रतिबद्धता नहीं आती ।
उन्होंने खूबसूरत समां बांधते हुए बताया कि दोहा उनकी खास विधा है । दोहों पर चर्चा चल निकली तो बेहद दिलकश अन्दाज में उन्होंने वातावरण व पुस्तक उपहार पर संदेश देते हुए दोहा सुनाया-
"जन्म ब्याह राखी तिलक गृहप्रवेश त्योहार
सलिल बचा पोघे लगा, दें पुस्तक उपहार!"
भाषा को लेकर वे सदा जागरुक रहते हैं तथा जागरुकता का संदेश फैलाते हैं ।
"हिन्दी आटा माढिए उर्दू मोयन डाल
सलिल संस्कृत सान दे पूरी बने कमाल!"
अलंकारों का प्रयोग वे बड़ी बेबाकी से करते है । यमक अलंकार का उदाहरण देते हुए वे मुस्करा कर बोले-
" ठाकुर जी को कर रहे ठाकुर नम्र प्रणाम
ठाकुराइन मुसका रहीं आज पड़ा फिर काम!"
बातचीत के दौरान उन्होंने पूछा- कई बार ये बात उठती है कि हम कौन हैं,,,,हमारा क्या परिचय है । आज के वातावरण को लेकर उन्होंने लाजवाब रचना प्रस्तुत की-
"क्या बताऊं कौन हूँ मैं
नाद अनहद मौन हूँ मैं
दूरियों को नापता हूँ
दिशाओं में व्यापता हूँ. संयोजिका- अंजू खरबंदा, दिल्ली
***
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल': जो मैं जाना
***
चलता फिरता बृहद ज्ञान कोष ( encyclopedia) क्या आपने देखा है? नहीं देखा न? नहीं देखा, तो आप जबलपुर ( मध्य प्रदेश ) के एक सेवा निवृत्त कार्यपालक अभियन्ता श्री संजीव वर्मा 'सलिल' जी से मिलिए। जी हाँ, सलिल जी ही वह encyclopedia हैं।
सरल और सहज व्यक्तित्व के धनी ' सलिल ' जी से मुझे पहली बार मिलने का सौभाग्य गहमर ( गाजीपुर) के साहित्य सम्मेलन में मिला। वहाँ बड़ी आत्मीयता से वे सभी नव सिखुआ कलमकारों से भी मिल रहे थे और बात- बात में ही लोगो को छन्द के कई गुर सीखा दे रहे थे। मैं वहीं उनके विशाल एव सरल व्यक्तित्व से प्रभावित हुआ। तबसे उनकी संगति लाभ का इंतजार में था। इस इन्तजार का अंत इस वर्ष 9-10 मार्च को हुआ जब हम लोग साहित्यिक संस्था ' परिमल- प्रवाह ' के वैनर तले मेदिनीनगर, पलामू (झारखण्ड) में एक साहित्यिक सम्मेलन का आयोजन किये थे।आयोजन में मेरे आमंत्रण पर 'सलिल' जी पलामू आये और मुझे उनके आतिथ्य का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस अवसर पर उनके साथ बिताए गए क्षणों का संस्मरण आप से साझा कर रहा हूँ-
' सलिल' जी से दो दिनों का साथ हुआ और इनसे समकालीन साहित्य की दिशा और दशा पर चर्चा हुई। हिन्दी के प्रति इनका समर्पण देखा और बात करते- करते भी कुछ न कुछ लिखते रचते पाया। किसी व्यक्ति की मेधा एक साथ कई दिशाओं में कैसे चलती है, यह सलिल जी से ही सम्भव है। ऐसा मैं इसलिये कह रहा हूँ कि मेरी छोटी पोती जो अभी नर्सरी में पढ़ती है और बातूनी भी है, अक्सर आकर उनके पास बैठ जाती और उनसे बात करने लगती, इसी क्रम में वे उसे अपने लिखे 'नवगीत' " सूरज बबुआ! चल स्कूल।" बात- बात में याद करा दिया। यह उनका कौशल है कि बच्चों के बीच भी सहज भाव से घुल मिल कर उनको भी अच्छे संस्कार में ढाल लेते हैं तथा यह उनके व्यक्तिव का आकर्षण है कि बच्चे भी इनसे सम्मोहित हो जुड़ जाते हैं।
'सलिल' जी साहित्य के अनेक विधाओं में दर्जनाधिक पुस्तकों की रचना तो कर ही चुके हैं, कई संकलनों का उत्कृष्ट सम्पादन भी किये हैं। लगभग सौ से अधिक कवि- लेखकों के पुस्तक की समीक्षा लिखी है और उन्हें उत्कृष्ट लेखन की और प्रेरित भी किया है।
कलम के देव, भूकम्प के साथ जीना सीखें, लोकतंत्र का मकबरा, गीत मेरे, काल है संक्रांति का, निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, तिनका- तिनका नीड, आदि इनकी काव्यात्मक कृतियां है।
इनमें आशुकवित्व की शक्ति है। पलामू भ्रमण के समय 'वेतला वन भ्रमण' के क्रम में बस पर बैठे- बैठे ही 'हायकू' विधा में मनोरम प्रकृति चित्रण कर डाला। छन्दों के ये स्वयं कोष तो हैं ही, पारम्परिक छन्दों के अतिरिक्त इन्होंने लक्षण- उदाहरण सहित सैकड़ों नए छन्द से भी साहित्य जगत को समृद्ध किया है।
'सलिल' जी हिन्दी भाषा में उर्दू के घाल-मेल के पक्षधर नहीं हैं पर क्षेत्रीय भाषाओं- बोलियों के साहित्य में इनकी गहरी रुचि है। ये स्वयं भी बघेली, बुंदेली, निमाड़ी, भोजपुरी, मगही आदि बोलियों में रचना करते हैं।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' से साहित्य जगत को अभी बहुत- बहुत आशाएं हैं। 'आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी' की तरह नए- नए रचनाकारों को गढ़ते तराशते ये दीर्घ जीवी हों । इन्ही कामनाओं के साथ-
श्रीधर प्रसाद द्विवेदी
डाल्टनगंज, पलामू, ( झारखण्ड )
***
ज्ञान और विद्या के सितारों की झिलमिल इं.संजीव.वर्मा 'सलिल'
अमरनाथ
*
श्रीमती शांति देवी वर्मा एवं श्री राजबहादुर वर्मा जी के आँगन में 20 अगस्त-1952 को एक शिशु ने किलकारी भरी।समूचे परिवार में नवजीवन और नव -हर्ष की मरमरी
नर्मदा बहने लगी।नाम रखा गया, "संजीव"।
जिसके आगमन मात्र से ही प्राणों में नव- ऊर्जा का संचार हो ने लगे,तो वह संजीव ही हो सकता है।
यही संजीव ,नव-संजीवनी बिखेरता हुआ शिक्षा और साहित्य के आकाश में झिलमिला उठा, जब सिविल इंजीनियरिंग मे डिप्लोमा, उसके बाद बी,ई, ए,एम,आई,ई, अर्थशास्त्र व दर्शनशास्त्र में परास्नातक, एल,एल,बी, विशारद, पत्रकारिता में डिप्लोमा, आदि विविध शिक्षा क्षेत्रों मे अपनी आभा बिखेरनी शुरु की। आपको बाद में "आचार्य" की उपाधि से भी नवाजा गया।सरल स्वभाव, मिलनसार, मृदुभाषी इस महामानव से मेरी प्रथम मुलाकात सन 1985 में हुयी।तभी से हम दोनों 'सलिल' की तरह एक-दूजे में घुले हुए हैं।
आप मूलतः अभियंता हैं और अभियंत्रण साहित्य लेखन में आप सिद्धहस्त हैं। भारतीय सड़क काँग्रेस के आप आजीवन सदस्य तो है ही, उसके लिए अभियंत्रण साहित्य को हिंदी मे लिखने मे प्रयासरत हैं। अभियंत्रण साहित्य समेटे आपने कई स्मारिकाओं का कुशल संपादन किया है और " भूकंप के साथ जीना सीखें* जैसी अमूल्य ज्ञान की भंडार लघु-पुस्तिका का सृजन भी किया है।
हिंदी साहित्य में आपकी अब तक अनेक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं।कलम के देव, लोक तंत्र का मकबरा,मीत मेरे, काल है संक्रांति का, सड़क पार, आपकी उत्तम कृतियाँ है, जबकि कुरुक्षेत्र गाथा आप और स्व,दुर्गा प्रसाद खरे जी की गीताजी के ऊपर रचित स्मरणीय कृति है।कलम के देव, निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, तिनका तिनका नीड़, आपके द्वारा संपादित सामूहिक काव्य संग्रह हैं।आप और आपकी धर्मपत्नी श्रीमती साधना वर्मा जी के संयुक्त संपादन मे वर्ष 2018 मे चार दोहा संकलनों का प्रकाशन हुआ है।आपने "नर्मदा" और "दिव्य नर्मदा" पत्रिकाओं का संपादन और संचालन अनेक वर्षों तक किया है।आप भारतीय सड़क काँग्रेस की स्मारिका "अभियंता बंधु" का भी संपादन कर चुके है।आप हिंदी साहित्य की हर विधा लेखन में तो सिद्धहस्त है ही,.विभिन्न.बोलियों में भी आपने साहित्यरचना की है।छांदसिक गीत, नवगीत, कहानी, निबंध, आलेख, संस्मरण, समीक्षा, अनुवाद, रिपोर्ताज आदि लेखन में आप बहुचर्चित हैं। नवगीत और छंदशास्त्र पर आप कार्यशाला भी चलाते है। छंदशास्त्र के पुरातन और नवीन छंदों पर आप शोध कर रहे है। सभी प्रकार के सवैया-छंदों पर शोध करते हुए आपने अनेक नवीन सवैयों का सृजन किया है।
सोशल मीडिया से आप ब्लागिंग फेसबुक, व्हाट्सएप के द्वारा गहराई तक जुड़े है।छंद की लगभग हर विधा पर आपने नवांकुरों को सिखाने हेतु अलग-अलग 50 ग्रुपों की स्थापना कर रखी है। स्वयं भी अनेक साहित्यिक ग्रुपों से जुड़े हुए है। छंदों के आचार्य के रूप में आपकी पहचान बनती जा रही है।अनेक साहित्यिक संस्थाओं में जज की भूमिका भी निभा चुके हैं।अभियान जबलपुर के आप संस्थापक और विश्वहिंदी संस्थान के आप संचालन मंडल से जुड़े है।समन्वय प्रकाशन,अभियान, जबलपुर आपका अपना प्रकाशन संस्थान है।
इण्डिया जिओ टैक्नीकल सोसायटी, इन्स्टीट्यूट आफ इंजीनियर्स,राष्टीय कायस्थ महापरिषद, तथा विश्व कायस्थ समाज से भी आप जुड़े हैं।
आपकी रचनायें भारत की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती है। प्रो-भागवत प्रसाद नियाज पर आपने एक शोध ग्रंथ प्रकाशित किया है।अभियंता साहित्यकार मंच, लखनऊ द्वारा आप दो बार सम्मानित हो चुके है। विभिन्न संस्थायें आपको सम्मानित करके स्वयं गौरवान्वित होती है।
हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए आप समर्पित है।
आपका एक दोहा देखें-
हिंदी आटा माँढिए, उर्दू मोयन डाल।
सलिल संस्कृत ज्ञान दे, पूड़ी बने कमाल।।
आप म,प्र,सरकार के कार्यपालन अभियंता पद से सेवा निवृत्त होकर वर्तमान में साहित्य साधना,नवांकुरों को प्रशिक्षण और हाई कोर्ट में वकालत कर रहें हैं।
आयु के हिसाब से यद्यपि आप मुझसे छोटे हैं, लेकिन ज्ञान-विज्ञान में, मुझ जैसे देहाती कीचड़ी-जोहड़ की तुलना में आप प्रशांत महासागर है।
पारिवारिक परिचय-
आपकी शादी डॉ-साधना वर्मा जी से 30,01,1985 को हुयी थी, जो स्वयं एक शिक्षिका है और विदुषी भी। आपके एक पुत्र और एक पुत्री है।दोनों अभी अविवाहित हैं ।
आपका वर्तमान पता है-
204 विजय अपार्टमेंट्स,नेपियर टाउन, जबलपुर,म.प्र.।
आपके दीर्घ जीवन और साहित्यिक उत्कर्ष के लिए हार्दिक शुभ कामनाएं।
अमरनाथ
लखनऊ
***
लता यादव गुरुग्राम
*
साहित्य-सलिला ग्रुप मे मेरा प्रथम अनुरोध सलिल जी ने स्वीकार कर मुझे धन्य कर दिया और तभी से मैं फेसबुक पर मुखर होने लगी ।
संजीव सलिल जी ने महीयसी महादेवी वर्मा जी के विषय में बहुत सुन्दर लेख प्रस्तुत किया था और उस लेख में महादेवी जी से अपने भतीजे होने का संबंध उजागर किए थे तो उसे पढ़कर लगा जैसे सलिल जी को मै वर्षों से जानती हूँ क्योंकि महादेवी जी की कविताओं में मेरी विषेश रुचि रहती थी ।
इसके उपरान्त उनका लखनऊ आगमन हुआ मेरे आग्रह मेरे घर भी आए । मै काफी परेशान चल रही थी कि मेरी परिस्थिति पर बैठे-बैठे एक कविता लिख दिए और साथ ही मुझे बहुत प्रोत्साहित किया कि मैं साहित्य के क्षेत्र में क्रियाशील रहूं ।
मै उनके ज्ञान- गंगा में गोते लगाती रहती हूँ । व्याकरण एवं छंद के विविध विधाओं के ज्ञाता सभी साहित्यकारों का मार्ग दर्शन कराते रहते हैं ।आपकी रचनाओं में नवगीत एवं दोहे अद्वितीय है ।
साहित्य जगत आपके अमूल्य सहयोग से सदैव लाभान्वित होता रहेगा । ईश्वर की कृपा सदैव आपपर बनी रहे शुभ कामनाओं सहित ।
***
यह हम सभी के लिए हर्ष का विषय है कि 'ट्रू मीडिया पत्रिका' आचार्य श्री संजीव वर्मा सलिल जी के साहित्यिक योगदान के सम्मान स्वरूप उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर केंद्रित विशेषांक निकालने जा रही है।
हार्दिक मंगल कामनाओं सहित पिछले छः वर्षों के उनके सानिध्य में उन्हें जैसे देखा, पाया उन्हीं में से कुछ, मन के भाव काव्य पंक्तियों में लिखने का प्रयास किया है,
प्रस्तुत है-
आ* आचरण पावन विशुद्ध विचार, मंगल भाव हैं
चा* चाह कविता की सुघड़तम, व्याकरणिक प्रभाव है।
आर्य* आर्य संस्कृति से निबंधित, सद्गुणों में श्रेष्ठ हैं
सलिल निर्मल सर्वहित साधक, श्री संजीव ज्येष्ठ हैं।
सं* संचरित साहित्य छांदस ज्ञान में हों सब निपुण
जी* जीत निश्चित है सलिल सी, प्राप्त कर शुभ सृजन गुण।
व* वंदना के स्वर मधुर, माँ का अभय वरदान है
वाग्देवी की कृपा तुम पर, अपरिमित ज्ञान है।
व* वचन मन से अहर्निश, साहित्य को सम्पूर्ण अर्पण
र* रमे हैं लेखन, पठन-पाठन, सृजन हित है समर्पण।
मा* माननीय सम्माननीय, श्री सलिल हृदय उदार है
संजीवनी के रूप में, अनमोल से उपहार है।
स* सतत अनुशीलन सृजन, नवकाव्य सूत्र विधान है
लि* लिख रहे साहित्य प्रचुर, विविध विधागत ज्ञान है।
ल* लक्ष्य है साहित्य हिंदी का, प्रचार प्रसार है
बांटने को व्यग्र, मन में प्यार भाव उदार है।
*पथ प्रदर्शक, मित्र, गुरु, भ्राता, विविध से रूप हैं
*है अलग वैशिष्ट्य दाता भाव, परम् अनूप है।
शुद्ध निश्छल हृदय से, है व्यक्त तन्मय भावनायें
सृजनऋषि आचार्य श्री, आनंदमय शुभ कामनाएं।
सुरेश कुशवाहा तन्मय
9893266014
***
संजीव सलिल जी के प्रति
--------------------------------
सारस्वत अभियान हैं,श्रीमान संजीव।
लेखन,सम्पादन करें,रखकर हुनर सजीव।।
करते अक्षर-साधना,विनत भाव से नित्य।
इसीलिये साहित्य के, बने हुये आदित्य।।
कलम चली निर्बाध नित,जा पहुंचे आकाश।
फिर भी रहते धरा पर,रहें सदा सब काश।।
रच दीं ऐसी पुस्तकें,जिनका नहीं जवाब।
सृजन कर्म को आपने,दे दी चोखी
आब।।
चिंतन में हैं उच्च जो,जिनमें गति, मति, वेग।
जो देते हैं नित्य ही,सिरजन के नव नेग।।
जिनने रोशन कर दिया,पूरा मध्यप्रदेश।
वह वर्मा संजीव जी,जाने सारा देश।।
मित्रों के जो मित्र हैं,सदा निभायें साथ।
जो परहित के वास्ते, सदा बढ़ाते हाथ।।
जो तन-मन से सात्विक,मानुष नेक,महान।
ऐसे बंदे को 'शरद',ही मिलता है मान।।
सत्य,ज्ञान,सत्कर्म से,जो रखते हैं प्रीत।
श्रीमान संजीव जी, की हरदम ही जीत।।
यश पाया,नित मान भी,बढ़ी निरंतर शान।
हर कवि, लेखक 'सलिल' का,करता है जयगान।।
दुआ कर रहा,है नमन,वंदन बारम्बार।
भाई श्री संजीव जी,'शरद' करे जयकार।।
-प्रो.शरद नारायण खरे
विभागाध्यक्ष इतिहास शासकीय जे एम सी महिला महाविद्यालय, मंडला (प्र) -481661(मो.9425484382)
***
कुण्डलिया:-
**
रचना छल-छल सलिल सा, कर लेते 'संजीव'।
करते जब कल नाद कवि, हिलता सबका ग्रीव।
हिलता सबका ग्रीव, बन्द से मस्त बनाते।
नव नव रचते छन्द, कभी नवगीत सुनाते।
कह श्रीधर मतिमन्द, छन्द का अद्भुत गढ़ना।
धन्य धन्य संजीव, आपकी अद्भुत रचना।।
***
संजीव वर्मा और मैं
——- जयप्रकाश श्रीवास्तव
मैं संजीव वर्मा सलिल के विषय में यह कतई नहीं कहना
चाहता कि वे सर्वगुण सम्पन्न हैं वे साहित्याकाश के दैदीप्त
मान नक्षत्र हैं वे नवीन छंदों के पुरोधा हैं उनकी लेखनी सतत प्रवाहमान है,साहित्य के प्रति उनका समर्पण स्तुत्य
है,सीखने वालों के प्रति उनका स्वभाव सदा प्रेरणादायी
रहा है,वे सदैव नये सृजन के पक्षधर रहे हैं,उनकी वाकपटुता वैचारिक रूप से सामने वाले को निरुत्तर कर देती है,वे एक कुशल मार्गदर्शक की भाँति अपने विचारों को सप्रमाण पुष्टि देते हैं,मैं यह भी नहीं कहना चाहता कि
उनका व्यक्तित्व असाधारण है,यह सब कुछ सबने अपने अपने ढँग से कहा होगा कहते होंगे।
मेरे नजरिये से संजीव वर्मा सलिल,संजीव वर्मा सरल ज्यादा उपयक्त लगते हैं उनकी सरलता और
सहजता ही है जो किसी को भी अपने आकर्षण में बाँध लेती है,मेरी उनसे मुलाक़ात कुछ ज्यादा पुरानी नहीं है ज़िला साहित्यकार परिषद की एक गोष्ठी में उनसे साक्षात्कार हुआ।गोष्ठी के उपराँत सामान्य परिचय के
बाद मेरे हाथ मेरे द्वितीय गीत संग्रह की प्रति देख उन्होंने
आग्रह किया कि यह प्रति मुझे दे सकते हों तो दे दें मैं इस पर कुछ लिखना चाहूँगा मैंने वह प्रति उन्हें भेंट कर दी।कुछ दिन बाद फेसबुक वाल पर परिंदे संवेदना के की एक बृहत् समीक्षा लगी थी समीक्षाकार थे आचार्य संजीव वर्मा सलिल समीक्षा पढ़कर मैं अभिभूत हो गया
बगैर किसी लाग लपेट के अपने ही गीतों पर बेबाक उनका अभिमत पढ़ उनकी सरलता ने मुझे आकर्षित कर लिया था बाद में दो एक पत्रिकाओं ने भी उनकी अनुमति से उक्त समीक्षा अपनी अपनी पत्रिकाओं में छापी और इस तरह उनसे प्रथम परिचय प्रगाढ़ मित्रता में परिवर्तित हो गया।
आज भी जब कभी हम मिलते हैं तो तमाम औपचारिकताओं के बाद भी बहुत कुछ हमारे बीच ऐसा होता है जिसके लिए शब्द छोटे हो जाते हैं और एक अंतर्निहित विचारधारा निसृत होने लगती है जो सहजता और सरलता से हमारे मनों को शीतल कर जाती है। यूँ भी जब कभी मन होता है अपनी कहने और सुनने का तो जा पहुँचता हूँ उनके पास फिर शुरु होती है अंतहीन वैचारिक
गोष्ठी ,पता ही नहीं चलता समय कब कितना गुज़र गया।
जहाँ तक उनके कृतित्व की बात है तो बहुत अधिक परिचित नहीं हूँ फिर भी जो कुछ सामने आया
है उससे उनकी थाह पाना मुश्किल ही है ,हाँ इतना ज़रूर
कहना चाहता हूँ कि उनके व्यक्तित्व को उनके कृतित्व से
नहीं नापा जा सकता।अंत में वे दीर्घायु हों और सदैव अपनी ऊर्जा से साहित्य जगत को रोशन करते रहें।
इतिइत्यम
जयप्रकाश श्रीवास्तव
मो.7869193927
***
सलिल जी रेवा पुत्र हैं।
महमहिमामयी महादेवी वर्मा के
मानस पुत्र की भांति उनके स्नेह भाजन भी।
छंद विधान,नवीन छन्दों के निर्माण में पटु।
मुझे भी उनका साहचर्य कुछ समय के लिए मिला जो यादगार है।सहित्य के प्रति जागरूक करना, नव लेखकों को प्रोत्साहित करना उनकी रुचि के विषय हैं।
***
आदरणीय आचार्य श्री संजीव वर्मा सलिल जी को सादर नमस्कार,
जैसा कि सर्वविदित है कि आप महान साहित्यिक कवियित्री महादेवी वर्मा जी के परिवार से हैं, लगता है आदरणीया वर्मा जी का श्री सलिल पर बहुत ही स्नेह रहा होगा, जो विरासत में आप को आशीष के रूप में मिला है। माँ शारदा की कृपा के पात्र श्री सलिल जी एक कुशल साहित्यकार के साथ ही साथ एक परिपक्व इंसान भी है। मेरी रूबरू मुलाकात तो अभी तक न हो पाई पर टेलीफोनिक टाक से मैं कई बार आप का आशीष प्राप्त कर चुका हूँ और यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि आप मेरे मित्रवत गुरु है। एक संकलन में मेरे सौ दोहे आप के द्वारा प्रकाशित हुए जिसके लिए मैं हृदय से आभारी हूँ और मेरा कोई भी प्रकाशन आप द्वारा ही हो इसकी कामना करता हूँ। यूँ तो आप मुझे एक अनुज का प्यार देते हैं जो आप के विशाल हृदयता को दर्शाता है। आप से जुड़कर दोहा विधा में मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला। प्रभु से विनय विनय करता हूँ कि आप दीर्घायु रहें और साहित्य को और भी प्रखर बनाते हुए हम सभी के अभिवावक बने रहें।
ट्रू मीडिया के संस्थापक भाई श्री ओमप्रकाश प्रजापति जो सादर नमस्कार जो अपने कर्म कौशल द्वारा ऐसे वरिष्ठ साहित्यकार से सभी को अवगत करा रहे हैं। आप दिल से बधाई स्वीकार करें और अपनी कीर्ति को देश दुनिया में प्रसारित करते रहें, ॐ जय माँ शारदा!
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
***
" नयी प्रतिभाओ को खोजना उनका स्वाभाव है "
किसी भी क्षेत्र या विधा का निरंतर विकास तभी संभव है जब उसमे नये विचार यानी की नये लोगो का जुड़ाव
समय - समय पर होता रहे l
साहित्य का क्षेत्र भी इस से अछूता नहीं है परन्तु नये साहित्यकारो की खोज वही कर सकता है जिसका हृदय विशाल हो एवं वह अपने ज्ञान को बाँटने वाला भाव मन में रखता हो l
श्री संजीव वर्मा जी का व्यक्तित्व भी कुछ इस ही तरह का है , वह अपने नित्य के कार्यो से जहा भी जाते है वहाँ साहित्य के क्षेत्र में रूचि रखने वालो को अपने संपर्क में रखने का प्रयास अवश्य करते है ताकि उनकी प्रतिभाओ में और निखार आ सके l युवाओ को साहित्य सेवा के लिए आकर्षित करने में श्री संजीव वर्मा जी की विशेष रूचि रही है l इस कार्य के लिए वह निरंतर विद्यालयों और महाविद्यालो के प्राध्यापकों और विद्यार्थियो के संपर्क में बने रहते है l नए साहित्यकारों के मध्य संजीव जी को आचार्यजी के नाम से भी संबोधित किया जाता है l
आचार्य जी भी सदा अपना साहित्यिक ज्ञान सदा बाँटने तत्पर रहते है l उनके निवास पर एक कक्ष सिर्फ साहित्यिक सेवा के लिए ही समर्पित है l जहाँ युवा साहित्यकार जाकर लेखन कार्य कर सकते है l कक्ष में आचार्य जी का निजी पुस्तकालय भी जहाँ साहित्य की सभी कलाओं को दर्शाने वाली पुस्तकों का अनूठा संग्रह है l जो नये साहित्यकारों के लिए किसी खजाने से कम नहीं है l समय -समय पर आचार्य जी पुस्तके ,विद्यालयों में भी बिना किसी शुल्क के पहुंचाते रहते है l उनका मानना है की पुस्तके सजावट की वस्तुऐं नहीं है l
साहित्य की विभिन्न विद्याओ को जन जन तक पहुंचाने के लिए,आप के द्वारा समय समय पर विद्यालयों और महाविद्यालयों में साहित्य कार्यशाला का आयोजन किया जाता रहा है ताकि युवाओ को साहित्य की हर विद्याओ का ज्ञान प्राप्त हो सके l आचार्य जी निरंतर कहते रहते है ज्ञान जितना बांटोगे उतना बढ़ेगा l
आप के द्वारा आयोजित किसी भी प्रकार के कवि सम्मेलन या साहित्यिक कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ नवोदित साहित्यकार भी अवश्य देखने मिल जाते है l नवोदित साहित्यकार के भीतर ऐसे ही अवसरों पर अपनी कला के प्रदर्शन की भूख रहती है l
आचार्य जी को कई बार संस्कारधानी जबलपुर के बाहर भी साहित्यिक कार्यक्रमों में विशिष्ट अतिथि के रूप में बुलाया जाता रहा है ,ऐसे अवसरों पर भी आप का प्रयास रहता है की किसी युवा नवोदित साहित्यकार को भी अपने साथ लेते चले ताकि उसे साहित्य जगत में स्थापित सज्जनो से मिलने का अवसर मिले तथा नयी नयी साहित्यिक विद्याओ की जानकारी वरिष्ठ साहित्यकारों से प्राप्त हो सके l
आज के समय में साहित्य जगत में स्थापित सभी वरिष्ठ साहित्यकार यदि आचार्य जी का ही अनुसरण करे तो वह समय दूर नहीं जब हिंदी भाषा की सेवा के लिए बिना किसी विशेष प्रयास के नित्य नये साहित्यकार उपलब्ध होते रहेंगे l
***
गुरुवर सलिल सर जी से मेरी बातें अक्सर होती रहती है, उनके मार्गदर्शन में गीत, दोहे, मुक्तक एवं छंदबद्ध कविताएँ लिखना एवं सिखना निरंतर जारी है।
उनसे बातें कर ऐसा लगता है जैसे किसी घर के सदस्य से बातें हो रही हो,इतने प्यार एवं आत्मीयता से बात करते हैं कि वक्त का पता ही नहीें चलता और उनसे बातें कर अपने-आप को गौरवान्वित महसूस होने लगता है।
दोहा सलिला हेतु दोहे मँगाकर उसे तराशने से लेकर उसकी विस्तृत व्याख्या एवं संपादन इतनी कुशलता से किया आपने कि पढ़ने को लोग विवश हो जाएँ।
साझा संकलन हेतु श्रद्धेय श्री ने सौ प्रतिशत अपनी जिम्मेदारी निर्वहन करते हुए नव रचनाकारों को एक प्लेटफार्म दिये हैं।
उनका सानिध्य अविस्मरणीय रहेगा, उनकी रचनाएँ पढ़कर उसी तरह लिखने की कोशिश हर रचनाकार करता है।
आप एक सहृदय व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति हैं ।
सादर नमन गुरुवर।
***
विद्वता और शालीनता के संगम आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
सन् 2016 की बात है।मेरा प्रथम दोहा संग्रह 'जीवन की हर बात' के प्रकाशन की प्रक्रिया मेरे दोहा गुरु कविवर चेतन दुबे 'अनिल' जी के मार्गदर्शन में आकार ले रही थी।जब पुस्तक के लिए विद्वतजनों और विशेष रूप से कुछ दोहाकारों के अभिमत हेतु मैंने चेतन जी से कहा तो उन्होंने मेरे दोहा संग्रह हेतु आदरणीय सलिल जी से बात की तो सलिल जी ने सहर्ष उसे स्वीकार किया और मेरे दोहा संग्रह के लिए अपना अभिमत दिया।उनकी सरलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उस समय मेरा-उनका परिचय भी नहीं था फिर भी उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया।इस प्रकार उनसे मेरा प्रथम परिचय उस लेख के माध्यम से हुआ।तत्पश्चात उनसे फ़ोनपर नियमित सम्पर्क बना रहा और वे सदैव कुछ न कुछ सृजन की प्रेरणा और मार्गदर्शन देते रहे।विगत वर्ष के अंत में एक साहित्यिक आयोजन में आने पर उन्होंने मुझे अपने लखनऊ आने की सूचना दी और मुझे उनसे मिलकर भी उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य मिला।
संजीव वर्मा 'सलिल' जी के ज्ञान और विद्वता की व्याख्या कर पाना मेरे जैसे साहित्य के विद्यार्थी के लिए लगभग असंभव है लेकिन अब तक उनके बारे में जो भी जाना-समझा है मैंने उस आधार पर इतना अवश्य कह सकता हूँ कि वर्तमान समय में हिंदी साहित्य के प्रमुख विद्वानों की सूची किसी भी आधार पर बनाई जाए तो उसमें 'सलिल' जी का नाम अवश्य आएगा।आमतौर पर अधिकांश साहित्यकार गद्य या पद्य में से किसी एक में ही विशेष दक्षता प्राप्त कर पाते हैं लेकिन सलिल जी जितने बड़े कवि हैं उससे भी बढ़कर लेखक हैं और उससे भी कहीं बढ़कर एक बेहतरीन इंसान हैं।हिंदी काव्य की शायद ही कोई ऐसी विधा हो जिसमें उनकी लेखनी न चली हो और मात्र लेखनी ही नहीं चली बल्कि हिंदी काव्य की हर विधा में वो भरपूर महारत भी रखते हैं।उनकी अपनी भी अनेक कृतियाँ प्रकाशित हुई हैं और अनेक साझा संग्रहों का संपादन भी उन्होंने किया है।वैसे तो वे हमेशा से नए रचनाकारों का प्रोत्साहन और मार्गदर्शन करते रहे हैं लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विशेष रूप से व्हाट्सएप के माध्यम से अब और अधिक साहित्य सेवा वो कर रहे हैं और अनेक नए रचनाकार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उनके मार्गदर्शन में अपनी लेखन क्षमता निखार रहे हैं।मैं ईश्वर से उनके स्वास्थ्य और दीर्घायु की प्रार्थना करते हुए इस कामना के साथ अपनी लेखनी को विराम देता हूँ कि वे इसी प्रकार आजीवन साहित्य सृजन और साहित्य साधना में रत रहते हुए हिंदी साहित्य को समृद्ध करते रहें।
नेक ख़्वाहिशात के साथ
डा.हरि फ़ैज़ाबादी
लखनऊ
मो.---9450489789
***
आदरणीय आचार्य संजीव सलिल जी साहित्य में बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। मैं उनके साहित्य का अध्येता हूं। उनका साहित्य श्लाघनीय है। वे पिंगल शास्त्री हैं। उन्होंने अनेक नवीन छंदों की रचना की। वे एक सफल नवगीतकार, समीक्षक भी हैं। वे लासानी हैं। उनका साहित्य अनुकरणीय है। अनेक पुस्तकों के वे संपादक प्रकाशक हैं। उनके अनेक गीत नवगीत, दोहा संग्रह प्रकाशित हैं। वर्तमान समय की वे धरोहर हैं। कोई भी विधा उनसे अछूती नहीं है। वे निष्णात हैं। हर साहित्यकार उनसे मशवरा करने को लालायित रहता है। उनके विषय में जो आंशिक जानकारी थी वो प्रस्तुत की।
विश्ववाणी हिंदी संस्थान एवं समन्वय प्रकाशन हिंदी को समर्पित संस्थान है जिसमें साझा संकलनो का संपादन प्रकाशन होता है। नवोदित रचनाकारों के लिए पाठशाला है। आचार्य जी की रचनाधर्मिता मील का पत्थर है। ऐसे लोगों से ही आज हिंदी साहित्य प्रगति के सोपान चढ़ता है। असल में विश्ववाणी हिंदी संस्थान छंदशाला है। न जाने कितने लोग लाभान्वित हुए। आचार्य जी का सानिध्य पाकर हर कोई धन्य हो जाता है।
समय समय पर काव्यगोष्ठी का आयोजन होता है। हिंदी साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा होती है।
अविनाश ब्यौहार
जबलपुर
***
काव्य शास्त्र के विश्वविद्यालय, रोम रोम में छंदों को बसाये ,अनेक नये छंदों का सृजन करते हुए कविता के गौरव को बढाने वाले आदरणीय सलिलु जी को प्रणाम करता हूँ ।उनके बारे में ठीक से लिखा जाये तो एक एक विधा पर एक अध्याय बन सकता है ।सलिल जी का स्नेह आशीर्वाद, सानिध्य मुझे मिलता रहा है ।वे साहित्य के ऐसे वटवृक्ष हैं जिसकी घनी छायादार शाखायें दूर दूर तक फैली हुई हैं।हम उन शाखाओं के तले बैठकर काव्य के जटिल प्रश्नों का सहजता से हल पाकर सुखद अनुभव करते हैं ।उनके व्यक्तित्व पर जो विशेषांक प्रकाशित होने जा रहा है, उस हेतु सभी बधाई के पात्र हैं ।सलिल जी को अपना विनम्र प्रणाम निवेदित है ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
***

आचार्य संजीव सलिल के प्रति.....
कुमार अनुपम
सरस्वती पुत्र संजीव सलिल
इस युग के हैं चिंतक चन्दन
वंदन पद पद पर कर रहे
उनचास पवन रह रह क्षण क्षण
कलम -स्वरों का अभियान चला जब
सलिल की बही अविरल सरिता
निर्झर मन ने दिया समय को
ज्ञान सागर की अप्रतिम कविता
.
साहित्य सृजन का वेद व्यास
वह रहा ,सितारों झुक जाओ
संजीव सलिल के ब्रह्म नाद में
तांडव करो झूमो गाओ
चित्रगुप्त का चन्द्रगुप्त यह
कर्मयोगी सा बढ़ता जाता
अक्षर साधन की गंगा में
सृजन-नौका खेता जाता
शंकर है यह, शोध ऋषि भी
हालाहल वह पीता है
अमृत शब्दों की वाणी उसकी
जन गण मन में जीता है
जिस ओर चला,गिरि श्रृंग गिरे
जिस ओर बढ़ा तूफ़ान उठा
संकल्प लिया, ब्रम्हांड हिला
कलम चला , अंधकार मिटा
जागो विसुवियस,मचलो जल थल
शशि ले किरणों का हार चलो .
अमिताभ गगन से तुम उतरो
अक्षर -कुंकुम ले श्रृंगार करो
अब बोल रहे हैं दिक् दिगंत
वरद पुत्र तव स्वागत है
संजीव सलिल हैं नहीं यही
अनुपम साहित्य साधक है .
***
संस्मरण-
आ. सलिल जी को सर्वप्रथम बहुत बहुत बधाई . सलिल जी से मेरी मुलाकात व मित्रता सन 2011 में फेसबुक पर हुई थी, अाज भी एक किस्सा जहन मे याद अाता है. हम अभिव्यक्ति विश्वम के माध्यम से रचनाअों पर चर्चा करते थे. एक बार अनुभूति के पटल पर उनके कुछ माहिया की पोस्ट लगी हुई थी .मैने उस पोस्ट पर अपनी जानकारी के अनुरूप शिल्प को लेकर अपनी टिप्पणी कर दी, जिससे समूह के कुछ लोगों को यह चर्चा नागवार गुजरी. उन्होनें मुझे संदेश दिया कि तुम्हें एेसा नही करना चाहिये था, इसका कारण यह था कि साहित्य में छंद के अाचार्य कहे जाने वाले सलिल से हर कोई अपने विचार साझा करने या चर्चा करने में हिचकता था अौर मैं अपने स्वभाव के अनुरूप सरल मन से चर्चा करने में विश्वास रखती थी.
मुझे रचना के शिल्प में जिस नियम पर आपत्ति थी मैं अडिग रही, हालाकिं हमारी चर्चा प्राय: समूह से इतर ही होती थी . मैने उन्हें अपने विचारों व लोगों की प्रतिक्रिया से अवगत कराते हुए संदेश दिया कि -
यदि अापको अनुचित प्रतीत हुआ हो तो क्षमा चाहती हूँ, जो गलत लगा वही कहा.
जबाब मे सलिल जी का संदेश मिला कि - आप सही है अौर आपके अतिरिक्त कोई भी चर्चा नहीं करता है , मैं चाहता हूँ कि लोग प्रतिक्रिया दें किंतु कोई नही आता है.
उस वायके के बाद सलिल जी से चर्चा व वार्ता दोनों सतत होने लगी, हम एक साथ एक ही समूह हेतु कार्यरत है. व बहुत अच्छे मित्र भी है. आ. सलिल जी के साहित्य के लिये योगदान अतुलनीय है. सरल ह्रदय के स्वामी सलिल जी के पास साहित्य का अथाह सागर है. . उन्होनें लोगों को छंद सिखाकर साहित्य जगत को अनेक अच्छे रचनाकार देकर अपना विशेष योगदान दिया हैँं. गीत नवगीत कुछ लोगों को हमनें मिलकर सिखाया किंतु लोगों के स्वार्थ व अति महत्वकांशा, साधना व धेर्य की कमी ने आहत भी किया.
सलिल जी ने उसके बाद अनगिनत गीत , नवगीत व छंद की किताबों की समिक्षा भी की व छंद पर अपनी साधना करके दोहो की बेहद उम्दा श्रूंखला तैयार करके अपने समय व श्रम् की आहुति देकर महानतम कार्य को अंजाम दिया है . मेरी उन्हें अशेष शुभकामनाएँ .
शशि पुरवार
***
27.01.17 को *सलीलजी* से पहली मुलाकात जबलपुर में 'इंस्टीटयूशन आफ इंजीनियर्स' के सेमिनार में हुई थी व उसके बाद उनके *"अभियान जबलपुर"* पटल व व्यक्तिगत दूरभाष के माध्यम से संपर्क सतत व प्रगाढ प्रमुख रूप से दो कारणों से होता गया : पहला, किशोरावस्था में पनपी साहित्यिक अभिरूचि व दूसरा, जबलपुर अभियांत्रिकी महाविद्यालय के छात्र रहने के कारण जबलपुर से विशेष लगाव ।
सलीलजी नैसर्गिक रूप से सरल, सहज व समग्र तो है ही साथ ही बहुआयामी प्रतिभा के धनी भी है । वे भिन्न भाषाओं व बोलीयों में *साहित्य की विविध विधाओं के माध्यम से अपने सामाजिक सरोकारो को निष्ठापूर्वक निभाने के साथ साथ* साहित्य के प्रति भी पूर्णरूपेण समर्पित व्यक्ति भी है जिनकी ख्याति निःसंदेह नियत हैं ।
अक्सर होता यह है बड़े होने पर पायी विद्वता से सहमकर हमारे बालसुलभ ठहाके दुबक जाते हैं या बाहरी (पढें सुने) के शोर में हमारी खुद की आवाज दब जाती हैं, नियम, उपनियम के जंजाल मे मौलिक चिंतन उलझकर रह जाता है लेकिन लगता है कि सलीलजी ने अब तक इन सबसे खुद को बचाकर रखा है और आगे भी रखने मे सक्षम रहकर स्वनाम को सार्थक करेंगे ।
*उनके सार्वकालिक मौलिक साहित्य सृजन हेतू हार्दिक शुभकामनाएँ !*
इं. अनिल जी. खंडेलवाल
परामर्शदाता संरचना अभियंता
इंदौर
***
साहित्य शिल्पी-श्री०संजीव वर्मा 'सलिल' जी
कलम के देव के पुजारी, साहित्य शिल्पी श्री०संजीव वर्मा 'सलिल'जी किसी परिचय के मोहताज नहीं है।
ऐसे साहित्य शिल्पी हैं, जिनके तरासे शब्द हम सबको अपने आस-पास गुम्बदीय आभा लिए प्रकाशित होते मिलते हैं।
२०/८/१९५२ मंडला प्रदेश में कायस्थ परिवार कवियत्री स्व०श्री मती शान्ति देवी तथा लेखक श्री०राजबहादुर वर्मा सेवा निवृत्त जेल अधीक्षक के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में श्री०संजीव वर्मा'सलिल'जी का अवतरण हुआ।बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री०सलिल जी ने अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा, बी०ई०एम०आई०ई०,अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम०ए०एल०एल०बी०,विशारद पत्रकारिता में डिप्लोमा, कम्प्यूटर एप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है।
अपनी बुआ जी पुज्यनीया महादेवी वर्मा जी से एवं स्व०माता शान्ति देवी जी से साहित्य सेवा विरासत में इन्हें मिलीहै।
'सलिल'जी बहुत भाग्यशाली हैं जो उनका बचपन उस पावन आँगन में किलकित हुआ जहाँ महीयसी ममतामयी करुणा की मूर्ति पुज्यनीया महादेवी वर्मा जी ठाकुर जी ठाकुर जी खेलकर बड़ी हुई थीं।उनकी विलक्षण प्रतिभा को अपने पिताश्री से सुन सुनकर बड़े हुए सलिल जी पर बुआ जी का बहुत असर हुआ।
महीयसी महादेवी वर्मा जी की माता जी जिनका असल नाम हेमरानी जी था उन्हें श्री०'सलिल' जी के पिताजी प्यार से चिन्जा बुआ के नाम से पुकारते थे ये भी प्रेम सौहार्द का ही परिचायक था हेमरानी जी भी साहित्य की जीती जागती प्रतिमूर्ति थीं उन्हीं से प्रेरणा पाकर उनकी पुत्री पूज्यनीया महादेवी वर्मा जी ने जगत पीर की मुक्ताओं को अपनी नीर माला में पिरो लिया और उस नीर की स्निग्धता का उज्ज्वल रूप 'सलिल'जी प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
पूज्यनीया महादेवी जी की प्रथम रचना उसी सांझे आँगन की देन है जिसने हेमरानी जी को प्रत्यक्ष रूप से महादेवी जी की प्रेरणा स्रोत बना दिया और 'सलिल'जी बिना इस निश्छल बालभक्तिपूर्ण लहरियों में भीगे किसी साहित्य नदी में नहीं उतरते हैं....सलिल जी के हृदय पटल पर अंकित पंक्तियाँ......
माँ के ठाकुर जी भोले हैं
ठंडे पानी से नहलाती
गीला चन्दन उन्हें लगाती।
उनका भोग हमें दे जाती।
फिर भी कभी नहीं बोले हैं।
माँ के ठाकुर जी भोले हैं.......(महादेवी जी)
श्री०सलिल जी पर अपनी बुआ जी का प्रभाव इतना पड़ा कि पारिवारिक विघ्न बँटवारे के बाद महीयसी अपनी विदुषी बुआ जी का आशीष पाने के लिए दूर-दराज से उन्हें ढूढ़ निकाले और यही कहकर चरण-स्पर्श कर आशीष लिए...बिन्दु सिन्धु से जा मिला।
कलम के देव भक्ति गीत, भूकंप के साथ जीना सीखें जनोपयोगी तकनीकी, भूकंप के साथ जीना सीखें कृति नए तकनीक को समझाने का प्रयत्न करती है।भूकंप आपदा प्रदेशों के लिए देश-विदेश की तकनीकों को अन्तस्थ करते हुए जनमानस को स्थिर रहने की जनोपयोगी शिक्षा देने में सफल कृति है।भूकंप आपदा से किस तरह से हम अपना बचाव कर सकते हैं।भूकंप के साथ जीना सिखाती है।
लोकतंत्र का मकबरा कविताएँ, मीत मेरे कविताएँ, काल है संक्रांति का गीत-नवगीत संग्रह।
उनकी रचनाओं की कुछ पंक्तियाँ....
काग आया है
जयकार करो,
जीवन के हर दिन
सौ बार मरो....
कुसाशन एवं कुपात्रों पर सीधा वार है 'सलिल'जी की उपर्युक्त पंक्तियाँ
राजहंस को
बगुले सिखा रहे
मानसरोवर तज
सेवा पर
मेवा की वरीयता
नित उपदेशों का
मत आचरण करो
तुलसी त्यागो
कैक्टस अपनाओ......
परिस्थितियों से समझौता कमज़ोर लोग कर ही लेते हैं जनमानस के बहुतायत लोग कुपात्र की जयकार करने को न चाहते हुए भी मजबूर होते हैं पर इन सभी हालातों में सजग प्रहरी श्री०संजीव वर्मा 'सलिल'जी को समय का कुचक्र प्रहार करता है और वे अपने उपर्युक्त शब्दों से प्रतिक्रिया देते हैं एवं मानवीय मूल्यों के पतन को इंगित करते हैं..….कैक्टस अपनाओ तुलसी त्यागो....
अंतर्जाल के कवि के रूप में हम इन्हें समझ सकते हैं, कितनी सहज शैली में तीर जैसे शब्द बिना वार के वापस नहीं जाते।
और पंक्तियाँ देखिए....
लोकतंत्र का वरगद सूखा
उल्लू बैठे हरी डाल पर....
माली नोंच रहे कलियों को
शूल फूल का हृदय वेधते
फटा हुआ दोशाला सीने
तलवारों से रहे छेदते........
जीवन्त पंक्तियाँ आज कल की घटनाओं पर आधारित कही जा सकती हैं, कालजयी रचना, कालजयी पंक्तियाँ।
अनेकों भाषाओं को जानने वाले साहित्यकार हैं श्री०'सलिल'जी भाषा उनके मार्ग को बाधित नहीं कर सकती है।
देश की विभिन्न बोलियों से उन्हें प्रेम है तथा मन के टीस को कुछ इस तरह से भोजपुरी बोली में दोहे रूप में उजागर किया है जहाँ पर चौपाल रोता है, स्त्री को सौत का डाह है एवं अपनेपन का अल्हड़ फागुनी रंग, निम्नवत दोहे देखिए.....
पनघट के रंग अलग बा, अपनापन के ठौर।
निंबुआ अमुआ से मिले, फगुआ अमुआ बौर।।
खेतहुई रहा खेत क्यों, सलिल'सून खलिहान।
सुन सिसकी चौपाल के,पनघट के पहचान।।
परसउती के दरद के, मर्म न बुझे बाँझ।
दुपहरिया के जलन के, कइसे समझे साँझ।।
स्त्री मन को भी समझते हैं सलिल जी एवं पीर पराई को समझने पर विवश करते हैं।विसंगतियों का सटीक उदाहरण है"परसउती के दरद के, मर्म न बुझे बाँझ"पंक्ति के द्वारा।
''खेत हुई रहा खेत क्यों?..पंक्ति में रहीम एवं कबीर जी की अभिधा शक्ति है।इनके प्रभावशाली दोहे इन्हें अपनी अपनी मिट्टी से जोड़े रहते हैं, खेत खलिहान की पहचान देते हैं।
श्री०संजीव वर्मा'सलिल'जी पर मुझे कुछ लिखने का सुअवसर मिला यह मेरा सौभाग्य है इन्हें जितना पढ़ो और भी पढ़ने का मन करता है।कभी'धूमिल'जी की खरी-खरी वाला पुट मिलता है तो कभी सर्वेश्वर जी की सहजता याद आने लगती है।
मानवीय मूल्यों के गिरने का दुःख है इनके साहित्य में सजग साहित्यकारों के लिए आह्वाहन भी है कलम की पूजा भी है, चरमराती व्यवस्थाओं की कसक है तो कहीं सबकुछ सुधारने के लिए कलम को तलवार बनाने की प्रेरणा,तो साहित्य रण का शंखनाद भी।
इसी तरह से कलम चलती रहे, आदरणीय संजीव वर्मा'सलिल'जी की, पैंनी धार हो लेखनी की और पूरी तलवार हो।
शुभेच्छाके साथ।
सुषमा शैली
१९/०६/०१९
***
अनुभवजन्य प्रेरणा स्त्रोत--आचार्य ई. संजीव वर्मा सलिल जी --
मानव जीवन में अनुभव की अन औपचारि क पाठशाला अत्यन्तB महत्वपूर्ण होती है। अनुभव का पाठ किसी निर्धारित पाठ्यक्रम के अन्तर्गत किसी निर्धारित पाठशाला में प्राप्त नहीं किया जा सकता है ।यह तो मानव जीवन के सांसों की गिनती बढ़ने के साथ साथ प्राप्त होता है। उम्र एवं कार्य अभ्यास की परिपक्वता अनुभवजन्यता को बढ़ाती है। ऐसे ही अनभवजन्य प्रेरणा स्रोत एक सशक्त मिशाल हैं हमारे अग्रज भाई श्रधेय आचार्य ई. संजीव वर्मा सलिल। आप अध्यन के क्षेत्र में अभियांत्रिकी,न्याय एवं कानून आदि अनेकों क्षेत्रों में प्रवीण हैं। विभिन्न भाषओं के साहित्य की जानकारी में भी आप महारथ हासिल किये हैं। हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं में भी आपकी गहरी पकड़ है। अनेंक वर्षों से आप हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं पर अपनी लेखनी चला रहें हैं।आपको सरस्वती जी का वरदान प्राप्त है।आपनें कविता,कहानी, गीत ,गजल,दोहा,सोरठा, छन्द,चोपाई,छप्पये,चौपाइ, आलेख,निबंध,रिपोर्टज, समीक्षा, साक्षात्कार आदि अनेकों विधाओं में विशेषज्ञता हासिल की है। आपअनुभवजन्य प्रेरक के रूप में सभी को सदैव उपलब्ध रहते है। विविध विषयों,विविध क्षेत्रों में आप लेखन कार्य करते रहते है। चित्रकारी,फोटोग्राफी प्राचीन एवं नवीन उपकरण तकनीकी आदि विभिन्न कला कौशल में आप उत्क्रष्टता से प्रवीण हैं। अनेकों साहित्यक,सामाजिक सांस्कृतिक,वैज्ञानिक, शिक्षा,कला, क्रीड़ा आदि अनेंक क्षेत्रों में आपको सम्मान,पुरुस्कार प्राप्त हुऐ है। अनेकों संस्थाओं द्वारा आपको अभिनन्दित किया गया है।आप जैसे अनुभवजन्य प्रेरणायुक्त प्रेरक की आज अत्यंत आवश्कता है।
डॉ. मुकुल तिवारी।
बालमुकुन्द त्रिपाठी मार्ग
राम मंदिर के पास, दीक्षितपुरा,जबलपुर,म.प्र.।
मो.९४२४८३७५८५।
***
*आदर चित्रांश संजीव भैया*
उन दिनों मेरी पदस्थापना मंडला में थी।यही 80 के दशक का दौर।मंडला छोटा सा जिला, इने गिने अधिकारी वगैरह।उसी दौरान चित्रगुप्त कायस्थ सभा की स्थापना हो गई और राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ आर सी वर्मा के साथ साथ संजीव कुमार वर्मा सलिल साहब से भी भेंट मुलाकात हुई।उस समय ये कायस्थ सभाके मंडल अध्यक्ष पद को सुशोभित करते थे।
इसके बाद अन्य जगहों के बाद मेरी पदस्थापना जबलपुर में हुई तब यह परिचय प्रगाढ़ता में बदला।यह भी जानकारी हुई सरनेम गोत्र यहां तक कि अल्ल भी हम दोनों का एक ही है।चूंकि मै कनिष्ठ था अतः मुझे स्नेह का पूरा पूरा लाभ मिला।
वे जहाँ तहां समाज के अलावा साहित्य चर्चा करते मुझे इससे लगाव नहीं था अतः एक दिन स्पष्ट कर दिया कि भैया अपनी ऊपर की खिड़की जिसे दिमाग कहते हैं खाली है ये पद्य, अविता कविता अपने को समझ नहीं आती।आप तो मोटा मोटी गद्य का अध्ययन ही मुझ जैसे को सिखा दो।
इसके बाद मैने उनके साथ कई विद्वानों की संगत की, लोगों को सुनना एवं उससे भी बड़ी बात तथ्यों को समझना सीखा है।
पहिले पहल जो मिला सो पढ़ लिया की तर्ज़ पर इब्ने सफी, गुलशन नंदा, चतुरसेन जी, शिवानी ,वृंदावन लाल वर्मा कुछ भी पढ़ लेता था।पर उनकी संगत के उपरांत लेखक/विषय चयन कर सबसे पहिले किताब की भूमिका पढ़ता हूँ तदुपरान्त कतिपय चेप्टर, टॉपिक दुबारा पढ़ने एवं मनन करने काबिल होते हैं।
कोर्स का अध्ययन और आनंद हेतु (स्वाद लेकर पढ़ना) में बहुत फर्क होता है।
किस्से कहानी, यात्रा विवरण, संस्मरण, जीवनी, साक्षात्कार,समाज काफी कुछ पर बात तो कर लेते हैं हम लोग। सबसे बड़ी बात जो सीखने को मिली वह विनयशीलता है बिना किसी अहंकार के।
उनका आशीर्वाद हम पर बना रहे यही चित्रगुप्त से प्रार्थना है।
रामकुमार वर्मा
***
संजीव भैया के प्रति
------------------------
सदा लेखनी के धनी,श्रीमान संजीव
करते सिरजन नित्य ही,हैं सारस्वत जीव
हैं सारस्वत जीव,करें साहित्य-वंदना
हैं ज्ञानी,उत्कृष्ट,जानते लक्ष्य-साधना
कहती 'नीलम' आज,कभी ना कहें अलविदा
चोखे श्री संजीव,रहें गतिमान वे सदा।
--डॉ नीलम खरे
आज़ाद वार्ड
मंडला(मप्र)-481661
(9425484382)
***
धीर-गंभीर सलिल जी
भोपाल के विश्व संवाद केंद्र में जब भारतीय साहित्य परिषद की मासिक गोष्ठी चल रही थी तब अचानक ही एक धीर-गम्भीर प्रभावशाली व्यक्ति ने हॉल में प्रवेश किया। कौतूहल से मैं देखने लगी। फिर उनका परिचय प्राप्त हुआ कि वे "आचार्य संजीव वर्मा सलिल जी" हैं।
हम सब उन्हें अपने बीच पाकर हर्षित और गौरवान्वित हुए। विश्वास नहीं हो रहा था कि वे सच में हमारे बीच हैं। गोष्ठी के बाद आचार्य जी से सबका अनौपचारिक वार्तालाप प्रारम्भ हुआ। कुछ सदस्य अपनी पुस्तकें भी लाये थे। उन्होंने अपनी पुस्तक भेंट की।
उस दिन भाग्य से मेरे पास भी मेरे कहानी संग्रह की एक प्रति थी। बहुत मन हो रहा था कि मैं भी अपनी पुस्तक आचार्य जी को भेंट करूँ किन्तु संकोच हो रहा था कि इतने वरिष्ठ साहित्यकार भला क्या पढ़ेंगे मेरी पुस्तक। और स्वीकार भी क्या करेंगे क्योंकि पूर्व में कुछ साहित्यकारों के साथ यह अनुभव भी हुआ था कि उन्होंने पुस्तक लेने में ही आनाकानी की थी।
तो बहुत मन होने के बाद भी संकोच में घिरी रही। तब एक साथी लेखिका से कहा तो उन्होंने संजीव जी को बताया।
आचार्य जी ने बड़ी आत्मीयता से तुरंत मुझे बुलाया। बड़े स्नेह से मेरा संग्रह लेकर उस पर बात भी की। मेरे बारे में भी पूछा। लेखन पर भी बात की। कुछ ही क्षणों बाद तो लगा ही नहीं कि उनसे पहली बार मिल रही हूँ। लगा वर्षों का आत्मीय परिचय हो मानों उनसे। इतने वरिष्ठ लेकिन उतने ही सरल, सहज। मैं तो नतमस्तक हो गई उनकी सहृदयता के आगे।
फिर भी लगता रहा कि जबलपुर जाकर व्यस्त हो जाएंगे तो कहाँ याद रहेगा मेरा संग्रह उनको। लेकिन अभिभूत रह गई जब उनकी गहन, विस्तृत समीक्षा प्राप्त हुई। जिसे आचार्य जी ने न केवल फेसबुक के सभी साहित्यिक समूहों में लगाया वरन अपने ब्लॉग पर भी पोस्ट किया। व्यस्त दिनचर्या में से समय निकालकर किसी नवोदित की पुस्तक पढ़ना अपने आपमें नवोदित के लिए सौभाग्य की बात है और उस पर इतनी विस्तृत, आत्मीय समीक्षा पाना, वो पल एक गौरवमयी अविस्मरणीय पल के रूप में मेरे साहित्यिक जीवन पर अंकित हो गया।
इसके बाद भी आचार्य जी ने बहुत बार साहित्य की हर विधा में मुझे अपना स्नेहपूर्ण मार्गदर्शन दिया है। उनके जैसी सरलता और सहजता अन्यत्र दुर्लभ है। उनका स्नेहाशीष सदैव बना रहे।
डॉ विनीता राहुरिकर
***

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ - मानवीय संवेदनाओं के कवि
आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी का नाम अंतर्जाल पर हिंदी साहित्य जगत में विशेष रूप से सनातन एवं नवीन छंदों पर किये गए उनके कार्य को लेकर अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है, गूगल पर उनका नाम लिखते ही सैकड़ों के संख्या में अनेकानेक पेज खुल जाते हैं जिनमें छंद पिंगलशास्त्र के बारे में अद्भुत ज्ञान वर्धक आलेख तथ्यों के साथ उपलब्ध हैं और हम सभी का मार्गदर्शन कर रहे हैं. फेसबुक एवं अन्य सोशल मिडिया के माध्यम से नवसिखियों को छंद सिखाने का कार्य वे निरनतर कर रहे हैं. पेशे से इंजीनियर होने के बाबजूद उनका हिंदी भाषा, व्याकरण का ज्ञान अद्भुत है, उन्होंने वकालत की डिग्री भी हासिल की है जो दर्शाता है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती. वे विगत लगभग 20 वर्षों से हिंदी की सेवा माँ के समान निष्काम भाव से कर रहे हैं, उनका यह समर्पण वंदनीय है, साथ साथ हम जैसे नवोदितों के लिए अनुकरणीय है। गीतों में छंद वद्धता और गेयता के वे पक्षधर हैं।
आचार्य जी से मेरी प्रथम मुलाकात आदरणीय अरुण अर्णव खरे जी के साथ उनके निज आवास पर अक्टूबर २०१६ में हुई, उसे कार्यालय या एक पुस्तकालय कहूँ तो उचित होगा, उनके पास दो फ्लैट हैं, एक में उनका परिवार रहता है दूसरा साहित्यिक गतिविधियों को समर्पित है, लगभग दो घंटे हिंदी साहित्य के विकास में हम मिलकर क्या कर सकते हैं, इस पर चर्चा हुई. उनके सहज सरल व्यक्तित्व और हिंदी भाषा के लिए पूर्ण समर्पण के भाव ने मुझे बहुत प्रभावित किया. यह निर्णय लिया गया कि विश्ववाणी हिंदी संस्थान के अंतर्गत अभियान के माध्यम से जबलपुर में हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे लघुकथा, कहानी, दोहा छंद आदि विधाओं पर सीखने सिखाने हेतु कार्यशालाएं/गोष्ठी आयोजित की जाएँ, तब से लेकर आज तक २५ गोष्ठियों का आयोजन किया चुका है और यह क्रम अनवरत जारी है, व्हाट्सएप समूह के माध्यम से भी यह कार्य प्रगति की चल रहा है. इसी अवधि में तीन दोहा संकलन उन्होंने सम्पादित किये हैं, सम्पादन उत्कृष्ट एवं शिक्षाप्रद है.
वे एक कुशल वक्ता हैं, आशुकवि हैं, समयानुशासन का पालन उनकी आदत में शुमार है, चाहे वह किसी आयोजन में उपस्थिति का हो या फिर वक्तव्य, काव्यपाठ की अवधि का, निर्धारित अवधि में अपनी पूरी बात कह देने की कला में वे निपुण हैं. अनुशासन हीनता उन्हें बहुत विचलित करती है, कभी-कभी वे इसे सबके सामने प्रकट भी कर देते हैं.
उन्होंने कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, काल है संक्रांति का, सड़क पर, कुरुक्षेत्र गाथा आदि कृतियों के माध्यम से साहित्य में सबका हित समाहित करने का अनुपम कार्य किया है. यदि सामाजिक विसंगतियों पर करारा प्रहार करना आचार्य सलिल के काव्य की विशेषता है तो समाज में मंगल, प्रकृति की सुंदरता का वर्णन भी समान रूप से उनके काव्य का अंश है, माँ नर्मदा पर उनके उनके छंद हैं, दिव्य नर्मदा के नाम से वे ब्लॉग निरंतर लिख रहे हैं.
उनके साथ मुझे कई साहित्यिक यात्राएँ करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, अपने पैसे एवं समय खर्च कर साहित्यिक गतिविधियों में भाग लेने का उनका उत्साह सराहनीय है, अनुकरणीय है.
ट्रू मीडिया ने उनके कृतित्व पर एक विशेषांक निकालने का निर्णय लिया है, स्वागत योग्य है, इससे संस्कारधानी जबलपुर गौरवान्वित हुई है. मैं उनके उनके उज्जवल भविष्य और उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता हूँ. माँ शारदा की अनुकम्पा सदैव उन पर बनी रहे.
बसंत कुमार शर्मा
IRTS
संप्रति - वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक
जबलपुर मंडल, पश्चिम मध्य रेल
निवास - 354, रेल्वे डुप्लेक्स,
फेथ वैली स्कूल के सामने
पचपेढ़ी, साउथ सिविल लाइन्स,
जबलपुर (म.प्र.)
मोमोबाइल : 9479356702
ईमेल : basant5366@gmail.com
***
"आदरणीया मंजूषा मन,
आप आचार्य संजीव 'सलिल' से चार वर्ष पूर्व मिलीं और इतना कुछ लिख डाला, हम दादा को विगत २५ वर्षों से
जानते हैं।
'लोकतंत्र का मकबरा' काव्य-संग्रह का लोकार्पण उन्होंने कृपाकर हमारे लखनऊ आवास पर आकर श्री गिरीश नारायण पाण्डेय, वरि०साहि० एवं तत्कालीन आयकर आयुक्त के कर-कमलों द्वारा लखनऊ नगर के साहित्य -कारों के बीच इं०अमरनाथ और इं० गोविन्दप्रसाद तथा इं०संतोष प्रकाश माथुर ,संयुक्त प्र०नि०सेतु निगम एवं अध्यक्ष 'अभियान' की उपस्थिति में कराया था।
बाद में वे इन्स्टीट्यूटशन्स आफ़ इन्जीनियर्स आफ़ इण्डिया आदि की पत्रिका से सम्बद्ध होकर हिन्दी की सेवा में अभूतपूर्व कार्य करते रहे।
नर्मदा विषयक उनके कार्य का सानी नहीं तो महादेवी वर्मा से प्राप्त आशीष जगत् विख्यात है।
हमने आचार्य संजीव 'सलिल' को सदैव की भाँति सरल, गम्भीर, स्मित हास्य-युक्त उनका व्यक्तित्व मोहित करता है।
आपने उनके विषय में जो भी कहा अक्षरश: सत्य है।"
-देवकी नन्दन'शान्त',साहित्यभूषण, 'शान्तम्',१०/३०/२,इन्दिरानगर, लखनऊ-२२६०१६(उ०प्र०), मो० 9935217841;8840549296
***
छंदों का सम्पूर्ण विद्यालय हैं आचार्य संजीव वर्मा "'सलिल'
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' से मेरा परिचय पिछले चार वर्षों से है। लगभग चार वर्ष पहले की बात है, मैं एक छंद के विषय मे जानकारी चाहती थी पर यह जानकारी कहाँ से मिल सकती है यह मुझे पता नहीं था, सो जो हम आमतौर पर करते हैं मैंने भी वही किया... मैंने गूगल की मदद ली और गूगल पर छंद का नाम लिखा तो सबसे पहले मुझे "दिव्य नर्मदा" वेब पत्रिका से छंद की जानकारी प्राप्त हुई। मैंने दिव्य नर्मदा पर बहुत सारी रचनाएँ पढ़ीं।
चूँकि मैं भी जबलपुर की हूँ और जबलपुर मेरा नियमित आनाजाना होता है तो मेरे मन में आचार्य जी से मिलने की तीव्र इच्छा जागृत हुई। दिव्य नर्मदा पर मुझे आदरणीय संजीव वर्मा 'सलिल' जी का पता और फोन नम्बर भी मिला। मैं स्वयं को रोक नहीं पाई और मैंने आचार्य सलिल जी को व्हाट्सएप पर सन्देश लिखा कि मैं भी जबलपुर से हूँ... और जबलपुर आने पर आपसे भेंट करना चाहती हूँ। उन्होंने कहा कि मैं जब भी आऊँ तो उनके निवास स्थान पर उनसे मिल सकती हूँ।
उसके बाद जब में जबलपुर गई तो मैं सलिल जी से मिलने उनके के घर गई। आप बहुत ही सरल हृदय हैं बहुत ही सहजता से मिले और हमने बहुत देर तक साहित्यिक चर्चा की। हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए आप बहुत चिंतित एवं प्रयासरत लगे। चर्चा के दौरान हमने हिन्दी छंद, गीत-नवगीत, माहिया एवं हाइकु आदि पर विस्तार से बात की। लेखन की लगभग सभी विधाओं पर आपका ज्ञान अद्भुत है।
ततपश्चात मैं जब भी जबलपुर जाती हूँ तो आचार्य सलिल जी से अवश्य मिलती हूँ। उनके अथाह साहित्य ज्ञान के सागर से हर बार कुछ मोती चुनने का प्रयास करती हूँ।
ऐसी ही एक मुलाकात के दौरान उन्होंने सनातन छंदो पर अपने शोध पर विस्तार से बताया। सनातन छंदों पर किया गया यह शोध नवोदित रचनाकारों के लिए गीता साबित होगा।
आचार्य सलिल जी के विषय में चर्चा हो और उनके द्वारा संपादित "दोहा शतक मंजूषा" की चर्चा हो यह सम्भव नहीं। विश्व वाणी साहित्य संस्थान नामक संस्था के माध्यम से आप साहित्य सेवारत हैं। इसी प्रकाशन से प्रकाशित ये दोहा संग्रह पठनीय होने के साथ साथ संकलित करके रखने के योग्य हैं इनमें केवल दोहे संकलित नहीं हैं बल्कि दोहों के विषय मे विस्तार से समझाया गया है जिससे पाठक दोहों के शिल्प को समझ सके और दोहे रचने में सक्षम हो सके।
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जी के लिए कुछ कहते हुए शब्द कम पड़ जाते हैं किंतु साहित्य के लिए आपके योगदान की गाथा पूर्ण नहीं होती। आपकी साहित्य सेवा सराहनीय है।
मैं अपने हृदयतल से आपको शुभकामनाएं देती हूँ कि आप आपकी साहित्य सेवा की चर्चा दूर दूर तक पहुंचे। आप सफलता के नए नए कीर्तिमान स्थापित करें अवने विश्व वाणी संस्थान के माध्यम से हिंदी का प्रचार प्रसार करते रहें।
मंजूषा मन
कार्यकारी अधिकारी
अम्बुजा सीमेंट फाउंडेशन
ग्राम - रवान
जिला - बलौदा बाजार
पिन - 493331
छत्तीसगढ़
***
बहुमुखी व्यक्तिव के साहित्य पुरोधा - 'संजीव वर्मा सलिल'

श्री संजीव वर्मा 'सलिल" बहुमुखी प्रतिभा के धनी है । अभियांत्रिकी, विधि, दर्शा शास्त्र और अर्थशास्त्र विषयों में शिक्षा प्राप्त श्री संजीव वर्मा 'सलिल' जी देश के लब्ध-प्रतिष्ठित साहित्यकार है जिनकी कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, काल है संक्रांति का, सड़क पर और कुरुक्षेत्र गाथा सहित अनेक पुस्तके चर्चित रही है ।
दोहा, कुण्डलिया, रोला, छप्पय और कई छन्द और छंदाधारित गीत रचनाओ के सशक्त हस्ताक्षर सही सलिल जी का पुस्तक प्रेम अनूठा है। इसका प्रमाण इनकी 10 हजार से अधिक श्रेष्ठ पुस्तको का संग्रह से शोभायमान जबलपुर में इनके घर पर इनका पुस्तकालय है ।
इनकी लेखक, कवि, कथाकार, कहानीकार और समालोचक के रूप में अद्वित्तीय पहचान है । मेरे प्रथम काव्य संग्रह 'करते शब्द प्रहार' पर इनका शुभांशा मेरे लिए अविस्मरणीय हो गई । इन्होंने ने कई नव प्रयोग भी किये है । दोहो और कुंडलियों पर इनकी शिल्प विधा पर इनके आलेख को कई विद्वजन उल्लेख करते है ।
जहाँ तक मुझे जानकारी है ये महादेवी वर्मा के नजदीकी रिश्तेदार है । इनकी कई वेसाइट है । ईश्वर के प्रति प्रगाढ़ आस्था के कारण इन्होंने के भजन सृजित किये है और कई संस्कृत की पुस्तकों का हिंदी काव्य रूप में अनुवाद किया है ।
सलिल जी से जब भी कोई जिज्ञासा वश पूछता है तो सहभाव से प्रत्युत्तर दे समाधान करते है । ये इनकी सदाशयता की पहचान है । एक बार इनके अलंकारित दोहो के प्रत्युत्तर में मैंने दोहा क्या लिखा, दोहो में ही आधे घण्टे तक एक दूसरे को जवाब देते रहे, जिन्हें कई कवियों ने सराहा । ऐसे साहित्य पुरोधा श्री 'सलिल' जी साहित्य मर्मज्ञ के साथ ही ऐसे नेक दिल इंसान है जिन्होंने सैकड़ों नवयुवकों को का हौंसला बढ़ाया है । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं है ।
***
चमत्कारी लेखनी के धनी सलिल जी
आचार्य संजीव वर्मा सलिल जी के साथ मेरा संबंध वर्षों पुराना है। उनके साथ मेरी पहली मुलाकात सन् 2003 में कर्णाटक के बेलगाम में हुई थी। सलिल जी द्वारा संपादित पत्रिका नर्मदा के तत्वावधान में आयोजित दिव्य अलंकरण समारोह में मुझे हिंदी भूषण पुरस्कार प्राप्त हुआ था। उस सम्मान समारोह में उन्होंने मुझे कुछ किताबें उपहार के रूप में दी थीं, जिनमें एक किताब मध्य प्रदेश के दमोह के अंग्रेजी प्रोफसर अनिल जैन के अंग्रेजी ग़ज़ल संकलन Off and On भी थी। उस पुस्तक में संकलित अंग्रेजी ग़ज़लों से हम इतने प्रभावित हुए कि हमने उन ग़ज़लों का हिंदी में अनुवाद करने की इच्छा प्रकट की। सलिल जी के प्रयास से हमें इसके लिए प्रोफसर अनिल जैन की अनुमति मिली और Off and On का हिंदी अनुवाद यदा-कदा शीर्षक पर जबलपुर से प्रकाशित भी हुआ। सलिल जी हमेशा उत्तर भारत के हिंदी प्रांत को हिंदीतर भाषी क्षेत्रों से जोड़ने का प्रयास करते रहे हैं। उनके इस श्रम के कारण BSF के DIG मनोहर बाथम की हिंदी कविताओं का संकलन सरहद से हमारे हाथ में आ गया। हिंदी साहित्य में फौजी संवेदना की सुंदर अभिव्यक्ति के कारण इस संकलन की कविताएं बेजोड़ हैं। हमने इस काव्य संग्रह का मलयालम में अनुवाद किया, जिसका शीर्षक है 'अतिर्ति'। इस पुस्तक के लिए बढ़िया भूमिका लिखकर सलिल जी ने हमारा उत्साह बढ़ाया। यह विशेष रूप से उल्लेखनीय बात है कि सलिल जी के कारण हिंदी के अनेक विद्वान, कवि,लेखक आदि हमारे मित्र बन गए हैं। हिंदी साहित्य में कवि, आलोचक एवं संपादक के रूप में विख्यात सलिल जी की बहुमुखी प्रतिभा से हिन्दी भाषा का गौरव बढ़ा है। उन्होंने हिंदी को बहुत कुछ दिया है। इस लिए हिंदी साहित्य में उनका नाम हमेशा अमर रहेगा। हमने सलिल जी को बहुत दूर से देखा है, मगर वे हमारे बहुत करीब हैं। हमने उन्हें किताबें और तस्वीरों में देखा है, मगर वे हमें अपने मन की दूरबीन से देखते हैं। उनकी लेखनी के अद्भुत चमत्कार से हमारे दिल का अंधकार दूर हो गया है। सलिल जी को केरल से ढ़ेर सारी शुभकामनाएं।
डॉ. बाबू जोसफ, वडक्कन हाऊस, कुरविलंगाडु पोस्ट, कोट्टायम जिला, केरल-686633, मोबाइल.09447868474
***
श्री संजीव वर्मा सलिल के प्रति काव्यांजलि
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
अंतर्मन से कलकल बहती रसधार सलिल की कविता है
जीवन का सत्य समाहित है उपहार सलिल की कविता है
युग बोध कराती जन-जन के आक्रांत क्लांत मानव मन को
अंतस के छिपे पहलुओं का आधार सलिल की कविता है
==============================
समय फिसलता चला जा रहा शायद सिर्फ प्रयासों में
जैसे बीती उमर हमारी खुद की तो वनवासो में
लेकिन शायद अश्व समय का थकता रुकता नहीं कभी
नाम सलिल का हुआ है अच्छी कविता के इतिहासों में
=============================
मनोज श्रीवास्तव
सेवा निवृत्त वरिष्ठप्रबंधक( ट्रेनिंग) एच ए एल लखनऊ मंडल
2 / 78 विश्वास खंड गोमती नगर
लखनऊ उ प्र भारत 226010
mo -09452063024
E MAIL -hasyavyangkavi @yahoo . co .
*शब्द ब्रम्ह के पुजारी*
श्रुति-स्मृति की सनातन परंपरा के देश भारत में शब्द को ब्रम्ह और शब्द साधना को ब्रह्मानंद माना गया है। पाश्चात्य जीवन मूल्यों और अंग्रेजी भाषा के प्रति अंधमोह के काल में, अभियंता होते हुए भी कोई हिंदी भाषा, व्याकरण और साहित्य के प्रति समर्पित हो सकता है, यह आचार्य सलिल जी से मिलकर ही जाना।
भावपरक अलंकृत रचनाओं को कैसे लिखें यह ज्ञान आचार्य संजीव 'सलिल' जी अपने सम्पर्क में आनेवाले इच्छुक रचनाकारों को स्वतः दे देते हैं। लेखन कैसे सुधरे, कैसे आकर्षक हो, कैसे प्रभावी हो ऐसे बहुत से तथ्य आचार्य जी बताते हैं। वे केवल मौखिक जानकारी ही नहीं देते वरन पढ़ने के लिए साहित्य भी उपलब्ध करवाते हैं । उनकी विशाल लाइब्रेरी में हर विषयों पर आधारित पुस्तकें सुसज्जित हैं । विश्ववाणी संस्थान अभियान के कार्यालय में कोई भी साहित्य प्रेमी आचार्य जी से फोन पर सम्पर्क कर मिलने हेतु समय ले सकता है । एक ही मुलाकात में आप अवश्य ही अपने लेखन में आश्चर्य जनक बदलाव पायेंगे ।
साहित्य की किसी भी विधा में आप से मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सकता है । चाहें वो पुरातन छंद हो , नव छंद हो, गीत हो, नवगीत हो या गद्य में आलेख, संस्मरण, उपन्यास, कहानी या लघुकथा इन सभी में आप सिद्धस्थ हैं।
आचार्य सलिल जी संपादन कला में भी माहिर हैं। उन्होंने सामाजिक पत्रिका चित्राशीष, अभियंताओं की पत्रिकाओं इंजीनियर्स टाइम्स, अभियंता बंधु, साहित्यिक पत्रिका नर्मदा, अनेक स्मारिकाओं व पुस्तकों का संपादन किया है। अभियंता कवियों के संकलन निर्माण के नूपुर व नींव के पत्थर तथा समयजयी साहित्यकार भागवत प्रसाद मिश्र 'नियाज़' के लिए आपको
नाथद्वारा में 'संपादक रत्न' अलंकरण से अलंकृत किया गया है।
आचार्य सलिल जी ने संस्कृत से ५ नर्मदाष्टक, महालक्ष्यमष्टक स्त्रोत, शिव तांडव स्त्रोत, शिव महिम्न स्त्रोत, रामरक्षा स्त्रोत आदि का हिंदी काव्यानुवाद किया है। इस हेतु हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग को रजत जयंती वर्ष में आपको 'वाग्विदांबर' सम्मान प्राप्त हुआ। आचार्य जी ने हिंदी के अतिरिक्त बुंदेली, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, राजस्थानी, अवधी, हरयाणवी, सरायकी आदि में भी सृजन किया है।
बहुआयामी सृजनधर्मिता के धनी सलिल जी अभियांत्रिकी और तकनीकी विषयों को हिंदी में लिखने के प्रति प्रतिबद्ध हैं। आपको 'वैश्विकता के निकष पर भारतीय अभियांत्रिकी संरचनाएँ' पर अभियंताओं की सर्वोच्च संस्था इंस्टीटयूशन अॉफ इंजीनियर्स कोलकाता का अखिल भारतीय स्तर पर द्वितीय श्रेष्ठ पुरस्कार महामहिम राष्ट्रपति जी द्वारा प्रदान किया गया।
जबलपुर (म.प्र.)में १७ फरवरी को आयोजित सृजन पर्व के दौरान एक साथ कई पुस्तकों का विमोचन, समीक्षा व सम्मान समारोह को आचार्य जी ने बहुत ही कलात्मक तरीके से सम्पन्न किया । दोहा संकलन के तीन भाग सफलता पूर्वक न केवल सम्पादित किया वरन दोहाकारों को आपने दोहा सतसई लिखने हेतु प्रेरित भी किया । आपके निर्देशन में समन्वय प्रकाशन भी सफलता पूर्वक पुस्तकों का प्रकाशन कर नए कीर्तिमान गढ़ रहा है ।
छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर ( म. प्र. )

***
मेरी भावभव्यक्ति -
प्रतिभा के धनी : संजीव वर्मा सलिल
------------------*------------------------
प्रतिभा के लगते धनी, जन्म जात कवि वृन्द ।
हुए पुरोधा कवि 'सलिल',प्यारे जिनको छन्द ।।
प्यारे जिनको छंद, पुस्तके जिनकी चर्चित ।
छन्दों में रच काव्य, करी अति ख्याति अर्जित ।।
कह लक्ष्मण कविराय, साहित्य में लाय विभा*।
साहित्यिक मर्मज्ञ, मानते वर्मा में प्रतिभा ।।
*क्रांति कनाटे
२९-६-२०१९
***

कोई टिप्पणी नहीं: