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शुक्रवार, 2 जून 2023

मुक्तिका, दोहा, मुक्तक, गीत, अग्रवाल, यमक, द्विपदी



गीत
*
निर्मल शुक्ल
न रही चाँदनी
श्याम गुप्त है चाँद
*
रोजगार बिन
लौट रहे हैं मेघ
विवश निज गाँव
पवन वेग से
आकर कुचले
देह, छीन ले ठाँव
संध्या सिंह
लॉकडाउन में
भूखा, सिसके माँद
*
छप्पन इंची
छाती ठोंके सूरज
मन की बात
करे - घरों-घर
राशन-रुपया
बँटवाया गत रात
अरथी निकली
सत्य व्रतों की
श्वास वनों को फाँद
*
फिर नीरव को
कर्ज दिलाने
राज कुँवर बेचैन
चारण पत्रकार
हैं नत शिर
भाट वाक् अरु नैन
हुआ असहमत
जो सूरज से
वही भरेगा डाँड
२-६-२०२०

***

शोध परक लेख :
अग्र सदा रहता सुखी
*​
अग्र सदा रहता सुखी, अगड़ा कहते लोग
पृष्ठ रहे पिछड़ा 'सलिल', सदा मनाता सोग
सब दिन जात न एक समान
मानव संस्कृति का इतिहास अगड़ों और पिछड़ों की संघर्ष कथा है. बाधा और संकट हर मनुष्य के जीवन में आते हैं, जो जूझकर आगे बढ़ गया वह 'अगड़ा' हुआ. इसके विपरीत जो हिम्मत हारकर पीछे रह गया 'पिछड़ा' हुआ. अवर्तमान राजनीति में अगड़ों और पिछड़ों को एक दूसरे का विरोधी बताया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है. वास्तव में वे एक दूसरे के पूरक हैं. आज का 'अगड़ा' कल 'पिछड़ा' और आज का 'पिछड़ा' कल 'अगड़ा' हो सकता है. इसीलिए कहते हैं- 'सब दिन जात न एक समान'.
मन के हारे हार है
जो मनुष्य भाग्य भरोसे बैठा रहता है उसे वह नहीं मिलता जिसका वह पात्र है. संस्कृत का एक श्लोक है-
उद्यमेन हि सिद्धयन्ति कार्याणि न मनोरथै:
नहि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:
.
उद्यम से ही कार्य सिद्ध हो, नहीं मनोरथ है पर्याप्त
सोते सिंह के मुख न घुसे मृग, सत्य वचन यह मानें आप्त
लोक में दोहा प्रचलित है-
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
अग्रधारा लक्ष्य पाती
जो​ मन से नहीं हारते और निरंतर प्रयास रात होकर आगे आते हैं या नेतृत्व करते हैं वे ही समाज की अग्रधारा में कहे जाते हैं. हममें से हर एक को अग्रधारा में सम्मिलित होने का प्रयास करते रहना चाहिए. किसी धारा में असंख्य लहरें, लहर में असंख्य बिंदु और बिंदु में असंख्य परमाणु होते हैं. यहाँ सब अपने-अपने प्रयास और पुरुषार्थ से अपना स्थान बनाते हैं, कोइ किसी का स्थान नहीं छीनता न किसी को अपना स्थान देता है. इसलिए न तो किसी से द्वेष करें न किसी के अहसान के तले दबकर स्वाभिमान गँवायें.
अग्रधारा लक्ष्य पाती, पराजित होती नहीं
कौन​ आगे कौन पीछे, देख ​पथ खोती नहीं
​बहुउपयोगी अग्र है
जो​ आगे रहेगा वह पीछे वालों का पाठ-प्रदर्शक या मार्गदर्शक अपने आप बन जाता है. उसके संघर्ष, पराक्रम, उपलब्धि, जीवट, और अनुकरण अन्यों के लिए प्रेरक बन जाते हैं. इस तरह वह चाहे-अनचाहे, जाने-अनजाने अन्यों के साथ और अन्य उसके साथ जुड़ जाते हैं.
बहुउपयोगी अग्र है, अन्य सदा दें साथ
बढ़ा उसे खुद भी बढ़ें, रखकर ऊँचा माथ
अग्र साथ दे सभी का
आगे​ जाने के लिए आवश्यक यह है कि पीछे वालों को साथ लिया जाय तथा उनका साथ दिया जाय. कुशल नायक 'काम करो' नहीं कहता, वह 'आइये, काम करें' कहकर सबको साथ लेकर चलता और मंजिल वार्ता है.
अग्र साथ दे सभी का, रखे सभी को संग
वरण​ सफलता का करें, सभी जमे तब रंग
अन्य स्थानों की तरह शब्दकोष में भी अग्रधारा आगरा-स्थान ग्रहण करती है. ​आइये आगरा और अग्र के साथियों से मिलें-
​​अग्र- वि. सं. अगला, पहला, मुख्य, अधिक. अ. आगे. पु. अगला भाग, नोक, शिखर, अपने वर्ग का सबसे अच्छा पदार्थ, बढ़-चढ़कर होना, उत्कर्ष, लक्ष्य आरंभ, एक तौल, आहार की के मात्रा, समूह, नायक.
​​अग्रकर-पु. हाथ का अगला हिस्सा, उँगली, पहली किरण​.
​​अग्र​ग- पु. नेता, नायक, मुखिया.
​​अग्र​गण्य-वि. गिनते समय प्रथम, मुख्य, पहला.
​​अग्र​गामी/मिन-वि. आगे चलनेवाला. पु. नायक, अगुआ, स्त्री. अग्रगामिनी.
​​अग्र​दल-पु. फॉरवर्ड ब्लोक भारत का एक राजनैतिक दल जिसकी स्थापना नेताजी सुभाषचन्द्र बोसने की थी, सेना की अगली टुकड़ी​.
​​अग्र​ज-वि. पहले जन्मा हुआ, श्रेष्ठ. पु. बड़ा भाई, ब्राम्हण, अगुआ.
​​अग्र​जन्मा/जन्मन-पु. बड़ा भाई, ब्राम्हण.
​​अग्र​जा-स्त्री. बड़ी बहिन.
​​अग्र​जात/ जातक -पु. पहले जन्मा, पूर्व जन्म का.
​​अग्र​जाति-स्त्री. ब्राम्हण.
​​अग्र​जिव्हा-स्त्री. जीभ का अगला हिस्सा.
​​अग्र​णी-वि. आगे चलनेवाला, प्रथम, श्रेष्ठ, उत्तम. पु. नेता, अगुआ, एक अग्नि.
​​अग्र​तर-वि. और आगे का, कहे हुए के बाद का, फरदर इ.
​​अग्र​दाय-अग्रिम देय, पहले दिया जानेवाला, बयाना, एडवांस, इम्प्रेस्ट मनी.-दानी/निन- पु. मृतकके निमित्त दिया पदार्थ/शूद्रका दान ग्रहण करनेवाला निम्न/पतित ब्राम्हण,-दूत- पु. पहले से पहुँचकर किसी के आने की सूचना देनेवाला.-निरूपण- पु. भविष्य-कथन, भविष्यवाणी, भावी. -सुनहु भरत भावी प्रबल. राम.,
​​अग्र​पर्णी/परनी-स्त्री. अजलोमा का वृक्ष.
​​अग्र​पा- सबसे पहले पाने/पीनेवाला.-पाद- पाँव का अगला भाग, अँगूठा.
​​अग्र​पूजा- स्त्री. सबसे पहले/सर्वाधिक पूजा/सम्मान.
​​अग्र​पूज्य- वि. सबसे पहले/सर्वाधिक सम्मान.
​​अग्र​प्रेषण-पु. देखें अग्रसारण.
​​अग्र​प्रेषित-वि. पहले से भेजना, उच्चाधिकारी की ओर आगे भेजना, फॉरवर्डेड इ.-बीज- पु. वह वृक्ष जिसकी कलम/डाल काटकर लगाई जाए. वि. इस प्रकार जमनेवाला पौधा.
​​अग्र​भाग-पु. प्रथम/श्रेष्ठ/सर्वाधिक/अगला भाग -अग्र भाग कौसल्याहि दीन्हा. राम., सिरा, नोक, श्राद्ध में पहले दी जानेवाली वस्तु.
​​अग्र​भागी/गिन-वि. प्रथम भाग/सर्व प्रथम पाने का अधिकारी.
​​अग्र​भुक/ज-वि. पहले खानेवाला, देव-पिटर आदि को खिलाये बिना खानेवाला, पेटू.
​​अग्र​भू/भूमि-स्त्री. लक्ष्य, माकन का सबसे ऊपर का भाग, छत.
​​अग्र​महिषी-स्त्री. पटरानी, सबसे बड़ी पत्नि/महिला.-मांस-पु. हृदय/यकृत का रक रोग.
​​अग्र​यान-पु. सेना की अगली टुकड़ी, शत्रु से लड़ने हेतु पहले जानेवाला सैन्यदल. वि. अग्रगामी.​ ​​अग्र​यायी/यिन वि. आगे बढ़नेवाला, नेतृत्व करनेवाला​.
​​अग्र​योधी/धिन-पु. सबसे आगे बढ़कर लड़नेवाला, प्रमुख योद्धा.
​​अग्र​लेख- सबसे पहले/प्रमुखता से छपा लेख, सम्पादकीय, लीडिंग आर्टिकल इ.​
​​अग्र​लोहिता-स्त्री. चिल्ली शाक.
​​अग्र​वक्त्र-पु. चीर-फाड़ का एक औज़ार.
​​अग्र​वर्ती/तिन-वि. आगे रहनेवाला.
​​अग्र​शाला-स्त्री. ओसारा, सामने की परछी/बरामदा, फ्रंट वरांडा इं.
​​अग्र​संधानी-स्त्री. कर्मलेखा, यम की वह पोथी/पुस्तक जिसमें जीवों के कर्मों का लिखे जाते हैं.
​​अग्र​संध्या-स्त्री. प्रातःकाल/भोर.
​​अग्र​सर-वि. पु. आगेजानेवाला, अग्रगामी, अगुआ, प्रमुख, स्त्री. अग्रसरी.​​
अग्रसारण-पु. आगे बढ़ाना, अपनेसे उच्च अधिकारी की ओर भेजना, अग्रप्रेषण.
​​अग्र​सारा-स्त्री. पौधे का फलरहित सिरा.
​​अग्र​सारित-वि. देखें अग्रप्रेषित.
​​अग्र​सूची-स्त्री. सुई की नोक, प्रारंभ में लगी सूची, अनुक्रमाणिका.
​​अग्र​सोची-वि. समय से पहले/पूर्व सोचनेवाला, दूरदर्शी. अग्रसोची सदा सुखी मुहा.
​​अग्र​स्थान-पहला/प्रथम स्थान.
​​अग्र​हर-वि. प्रथम दीजानेवाली/देय वस्तु.
​​अग्र​हस्त-पु. हाथ का अगला भाग, उँगली, हाथी की सूंड़ की नोक.
​​अग्र​हायण-पु. अगहन माह,
​​अग्र​​हार-पु. राजा/राज्य की प्र से ब्राम्हण/विद्वान को निर्वाहनार्थ मिलनेवाला भूमिदान, विप्रदान हेतु खेत की उपज से निकाला हुआ अन्न.
अग्रजाधिकार- पु. देखें ज्येष्ठाधिकार.
अग्रतः/तस- अ. सं. आगे, पहले, आगेसे.
अग्रवाल- पु. वैश्यों का एक वर्गजाति, अगरवाल.
अग्रश/अग्रशस/अग्रशः-अ. सं. आरम्भ से ही.
अग्रह- पु.संस्कृत ग्रहण न करना, गृहहीन, वानप्रस्थ.
२-६-२०१७
***
मुक्तिका
*
तुम आओ तो सावन-सावन
तुम जाओ मत फागुन-फागुन
.
लट झूमें लब चूम-चुमाकर
नचती हैं ज्यों चंचल नागिन
.
नयनों में शत स्वप्न बसे नव
लहराता अपनापन पावन
.
मत रोको पीने दो मादक
जीवन रस जी भर तज लंघन
.
पहले गाओ कजरी भावन
सुन धुन सोहर की नाचो तब
***
(संस्कारी जातीय, डिल्ला छंद
बहर मुतफाईलुन फेलुन फेलुन
प्रतिपद सोलह मात्रा,पंक्तयांत भगण)
***
मुक्तक
*
वीणा की तरह गुनगुना के गीत गाइए
चम्पा की तरह ज़िंदगी में मुस्कुराइए
आगम-निगम, पुराण पढ़ें या नहीं पढ़ें
इंसान की तरह से पसीना बहाइये
२-६-२०१६
***
यमकीय दो पदी :
रोटियाँ दो जून की दे, खुश हुआ दो जून जब
टैक्स दो दोगुना बोला, आयकर कानून तब
***
मुक्तिका :
*
ये पूजता वो लगाता है ठोकर
पत्थर कहे आदमी है या जोकर?
वही काट पाते फसल खेत से जो
गये थे जमीं में कभी आप बोकर
हकीकत है ये आप मानें, न मानें
अधूरे रहेंगे मुझे ख्वाब खोकर
कोशिश हूँ मैं हाथ मेरा न छोड़ें
चलें मंजिलों तक मुझे मौन ढोकर
मेहनत ही सबसे बड़ी है नियामत
कहता है इंसान रिक्शे में सोकर
केवल कमाया न किंचित लुटाया
निश्चित वही जाएगा आप रोकर
हूँ संजीव शब्दों से सच्ची सखावत
करी, पूर्णता पा मगर शून्य होकर
२-६-२०१५
***
दोहा सलिला:
*
भँवरे की अनुगूँज को, सुनता है उद्यान
शर्त न थककर मौन हो, लाती रात विहान
*
धूप जलाती है बदन, धूल रही हैं ढांक
सलिल-चाँदनी साथ मिल, करते निर्मल-पाक
*
जाकर आना मोद दे, आकर जाना शोक
होनी होकर ही रहे, पूरक तम-आलोक
*
अब नालंदा अभय हो, ज्ञान-रश्मि हो खूब
'सलिल' मिटा अज्ञान निज, सके सत्य में डूब
३०-५-२०१५

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