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शुक्रवार, 2 जून 2023

मुहावरे पर कविता, माँगे मिले न भीख

मुहावरे पर कविता

माँगे मिले न भीख 

*
कविवर एक निढाल थे
कैसे होगा काज?
जुमलेबाजों का हुआ
सकल देश पर राज।
बिटिया स्यानी हो गई
करना जल्दी ब्याह।
मिले कहीं से धन मिटे
चिंता तभी अथाह।
अवधपुरी में गए तो
झिड़कें पहरेदार।
सबसे मिल सकते नहीं,
जब-तब श्री सरकार।
भीख माँगने आ गए
आई तनिक न लाज।
मिले हाथ दो ईश से
करो कहीं कुछ काज।
हो निराश वन में गया
आश्रम देखा एक।
सोचा कुछ उपदेश सुन
पाऊँ बुद्धि विवेक।
दो बालक थे खेलते
कुटिया देखी एक।
राह निहारें संत की
आई महिला नेक।
अन्न मिठाई फल मिले
सोचा जागे भाग।
घर जा बिटिया को दिया
जो पाया सामान।
चकित हुई बिटिया निरख
किसकी कृपा महान।
विप्र कहे- 'जननी मिलीं
दी बिन बोले सीख।
बिन माँगे मोती मिले
माँगे मिले न भीख।
***

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