कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 6 जून 2023

PRAYER, गणेश, ऊँट बिलहरीवी, सविता तिवारी, आँवला, शिरीष, गीतिका छंद, आम

मुक्तिका
*
वो आए तो भी नींद न आई तमाम शब
आँखों से नींद उनकी उड़ाई तमाम शब  

यादों के चरागों को बुझने नहीं दिया
लोभान की खुशबू सी लुटाई तमाम शब

ये चिलमनें दीदार को हैं तरसतीं हुजूर 
सुनकर नक़ाब रुख से हटाई तमाम शब

दीदार से बीमार की तबियत हुई हरी 
रुखसार की लाली जो चुराई तमाम शब

ले दिल न तुमने दिल दिया ये क्या सितम किया 
आँखों ने सुन के आँख मिलाई तमाम शब

सूरत पे मर मिटे मगर सीरत भी कम न थी 
जन्नत जमीं पे उसने बनाई तमाम शब

साँसों में साँस घोल दी, मुर्दा जिला दिया   
आने न दी या निंदिया चुराई तमाम शब
६-६-२०२३ 
***
मुक्तिका
*
वो आए तो भी नींद न आई तमाम शब
ना जान से जाता, न वो करते सलाम रब

गो ख्वाब में वो आए या आए ही नहीं थे
जाना नहीं तो भेजता कैसे पयाम कब?

होना या ना होना मिरा कुछ मायने नहीं
मौला करूँ तेरे बिना क्यों याँ कयाम अब?

वो गौर करे या ना करे, उसका काम है
मुझको उसी से काम जो मेरा कलाम नब

आती है मिरी याद न 'संजीव' तब तलक
होती नहीं है नींद भी उनकी हराम जब
६-६-२०२३
***
PRAYER
*
O' Almighty lord Ganesh!
Words are your sword ashesh.
You are always the First.
Make best from every worst.
You are symbol of wisdom.
You are innocent and handsome.
Ultimate terror to the Demon.
Shiv and Shiva's worthy son.
You bring us all the Shubha.
You bless the devotees with Vibha.
Be kind on us mother Riddhi.
Bless us all o mother Siddhi.
O lord Ganesh the Vighnesh.
Make us success o Karunesh.
6-6-2022
***
स्मरण
रामानुज लाल श्रीवास्तव 'ऊँट बिलहरीवी'
१९ वीं सदी का हिंदी साहित्य का इतिहास बाबू रामानुज लाल श्रीवास्तव 'ऊँट बिलहरीवी' भी के उल्लेखनीय कार्य की चर्चा किए बिना नहीं हो सकता। श्री मांगीलाल जी का स्नेह पूर्ण संबोधन संस्कारधानी जबलपुर के साहित्य जगत के सशक्त स्तंभ थे श्री राम नारायण उपाध्याय द्वारा लिखित एक लेख जो धर्म युग में १९७६ में प्रकाशित हुआ के अनुसार दधीचि की तरह जलकर हिंदी साहित्य को समृद्ध करने वाले श्री रामलाल जी श्रीवास्तव जबलपुर तो क्या समस्त मध्यप्रदेश की तीन पीढ़ियों के हाथी स्वदे हृदय हार्थी वह द्विवेदी युगीन साहित्यकारों के स्नेह भजन छायावाद युगीन साहित्यकारों के मार्गदर्शक और आधुनिक पीढ़ी के मसीहा थे दिवंगत हिन्दी स्विमिंग संपादक श्याम चन्द्र सुमन पृष्ठ ४९६ कथाकार विमल मित्र भगवती चरण वर्मा हरिवंश राय बच्चन जैसी विभूतियों ने जिनकी प्रतिभा को नतमस्तक प्रणाम किया उनकी प्रतिभा किस कोटि की होगी इसका अनुमान सहज ही किया जा सकता है डॉ राजकुमार तिवारी सुमित नवीन दुनिया जबलपुर दिनांक २६ अप्रैल वास्तव में हिंदी के आंखों में मध्य प्रदेश के साहित्यकार स्वर्गीय रामू श्रीवास्तव विशिष्ट स्थान के अधिकारी हैं उच्च कोटि के कवि लेखक समालोचक तो थे ही प्रेमा के संपादक के रूप में उन्हें अनेक कवि लेखकों को जन्म और प्रोत्साहन देने का श्रेय भी है हिंदी ही नहीं उर्दू फारसी और अंग्रेजी भाषा के साहित्य सागर में वे गहराई से बैठे और जो मोतीलाल उनसे हिंदी का भंडार समृद्ध किया श्री रामानुज लाल श्रीवास्तव की सर्जना विशेष रूप से उनके गीतिकाव्य निधि रातें के अध्ययन अनुशीलन और मूल्यांकन से परिचित होना आवश्यक है कृतित्व व्यक्तित्व का ही प्रगति करें वह सदन करता की शारीरिक मानसिक बनावट अभावों प्रभाव सुविधाओं दुविधा कुरूपता सुंदरता के साथ ही उसकी रुचि रुचि और संभवत संबद्धता को भी प्रतिबंधित प्रतिबिंबित करता है श्री रामानुज लाल श्रीवास्तव का जन्म मध्य प्रदेश के जबलपुर नगर के समीप से होरा कस्बे में २८ अगस्त सन १८९८ में हुआ श्री लक्ष्मण प्रसाद श्रीवास्तव तथा श्रीमती गेंदा देवी को मां सरस्वती का यह अनुपम उपहार पुत्र रूप में प्राप्त हुआ रामायण की लाल जी का जन्म सिहोरा में हुआ कुछ दिन बिलहरी में कटे परंतु आंखें खोली राजनांदगांव में शैशव राजनांदगांव के किले या राज महल में बीता घर में माता जी रामायण और महाभारत की कहानियाँ सुनाती और भजन गाना सिखाती पिताजी अपने उर्दू प्रेम के कारण अलीबाबा और चिराग अलादीन के कहानियाँ सुनाते थे किले के सामने घर था किले में जिस उत्साह से दशहरा मनाया जाता था उसी हौसले से मोहर्रम भी राधा कृष्ण का मंदिर भी था और अटल सैयद की समाधि भी दशहरे में नीलकंठ के दर्शन किए जाते थे और मुहर्रम में ताजिया के रामानुज जी ने घर में ही वर्णमाला सीख कर पहली कक्षा में राजनांदगांव में प्रवेश किया सन उन्नीस सौ पांच में पिताजी की अस्वस्थता के कारण मां के साथ बिलहरी जाकर रहना पड़ा लगभग 1 वर्ष वहां शिक्षा प्राप्त की पिताजी के देहांत पश्चात पुनः राजनांदगांव लौटे अध्ययन से अधिक रुचि खेलकूद में थी फतेह परिणाम संतोषजनक नहीं थे सन उन्नीस सौ आठ नौ में रायपुर में दसवीं तो तीन कर 11 में पहुंचे तीसरी बार में मैट्रिक के परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की रामानुज जी के अग्रज सन 1918 में जबलपुर के एडिशनल तहसीलदार होकर आए श्रीवास्तव जी ने जबलपुर आकर शॉर्टहैंड और टाइपिंग का विधिवत प्रशिक्षण प्राप्त कर तब संबंधी परीक्षा में सफलता प्राप्त की और नहर विभाग में लिपिक हो गए बाद में सीपी टाइम्स के संवाददाता का काम संभाला कटनी और रायपुर में भी कुछ समय गुजारा कोरिया रियासत में भी रहे सन 1919 से 1924 तक का समय कटनी में बिताया 1928 में अप्रैल माह में इंडियन एजेंट होकर जबलपुर आए और जीवन पर्यंत जबलपुर में ही रहे श्रीवास्तव जी के व्यक्तित्व कृतित्व जबलपुर में ही प्रवक् ता और प्रसिद्धि पाई रामानुज बाबू व्यक्तित्व संपन्न साहित्यकार थे 6 फुट 10 इंच ऊंचाई गेहुआ रंग क्लीन शेव्ड सदा से दुबले पतले कभी शाह बिल वास सूट-बूट राई कभी चूड़ीदार पजामा और हैदराबादी शेरवानी कभी धोती कुर्ता और कभी लखनवी कामदार दुप्पल्ली और मखमल का पतला कुर्ता अर्थात बनारसी सिल्क से लेकर मोटा खद्दर तक एक भाव से धारण करने वाले श्रीवास्तव जी साहित्य को तत्कालीन राजाओं महाराजाओं आला अफसरों वकील खिलाड़ियों कलाकारों व्यापारियों छत्तीसगढ़ी बुंदेलखंडी ओं से लेकर नाच गाने की महफिल तक में अपना रंग जमाने के साथ अपनी छाप छोड़ देते थे गीत गान टेनिस पुस्तक लेखन और विक्रय में समान योग्यता के धनी थी उनकी शारीरिक ऊंचाई की दृष्टि से वे संभवत भारतीय कवियों में सबसे ऊंचे थे एक सजीव और लंबी रेखा की भांति अपने कवि जीवन के प्रतीक थे विवान उधार मुक्त मनाने ही निश्चल और प्यारे मानव थी वेद दोस्ती दोस्तों के लिए दोस्ती के नाम पर सर्वस्व अर्पण करने वाले दरिया दिल दोस्तों से तभी तो प्रख्यात साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ने अपनी पुस्तक जिन्हें नहीं भूलूंगा में लिखा है अगर है तो खैरागढ़ उपन्यास है तो चंद्रकांता विद्वान है तो लाल पदमसिंह और मित्र हैं तो रामानुज रामानुज बाबू के लिए पीना इबादत थी शुक्ल अभिनंदन साहित्य के अनुसार रामजी लाल जी निहायत के जिंदादिल लेखक पूर्वजों से विरासत में प्राप्त साहित्य अनुराग और परिवार के साहित्यिक सांस्कृतिक वातावरण में रामलाल जी की कविता के अंकुरण में योग दिया उन्होंने १ तक बंदी भैया परमानंद तुम मुझसे नहीं बने लगभग ६० वर्ष की आयु में की थी सन १९१४ में खैरागढ़ में पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का पारस स्पर्श प्राप्त हुआ लेखक और गति बढ़ी पहली रचना अनुवाद प्रकाशित मासिक पत्रिका बालवीर हिंदी मनोरंजन रचनाओं का प्रकाशन होने लगा सन १९२१ में सरस्वती में दो रचनाएं प्रकाशित हुई गुहा कभी होने की मुहर लग गई सन १९२८ में जबलपुर आए और तब से व्यक्ति प्रयन्त साहित्य साधना में रत रही प्रकाशित रचनाएं काव्य एक उंदीर आते गीत संग्रह दो चला चली में तीन जज्बात आउट हास्य व्यंग रघुवीर कथा जीवनी दो हम इश्क़ के बंदे हैं कहानी संग्रह तीन जंगल की सच्ची कहानियां चार कर्बला की कुर्बानियां एक महाकवि गालिब की गजलें दो महाकवि अनीस और उनका का संपादित विवेचनात्मक बिहार दो प्रतिनिधि शोक गीत तीन दीवाने सफर श्रीवास्तव द्वारा रचित गद्य पद्य की अनेक पांडुलिपि या मौलिक अनुवादित एवं संपादित अप्रकाशित ही रह गई
***
साक्षात्कार बाल साहित्य पर:
संजीव वर्मा 'सलिल'
30 मई 2017 ·
ला लौरा मौक़ा मारीशस में कार्यरत पत्रकार श्रीमती सविता तिवारी से एक दूर वार्ता
- सर नमस्ते
नमस्ते
= नमस्कार.
- आप बाल कविताएं काफी लिखते हैं
बाल साहित्य और बाल मनोविज्ञान पर आपके क्या विचार हैं?
= जितने लम्बे बाल उतना बढ़िया बाल साहित्यकार
-
अच्छा, यह आज के परिदृष्य पर टिप्पणी है
= बाल साहित्य के दो प्रकार है. १. विविध आयु वर्ग के बाल पाठकों के लिए और उनके द्वारा लिखा जा रहा साहित्य २. बाल साहित्य पर हो रहे शोध कार्य.
- मुझे इस विषय पर एक रेडियो कार्यक्रम करना है सोचा आपका विचार जान लेती.
= बाल साहित्य के अंतर्गत शिशु साहित्य, बाल साहित्य तथा किशोर साहित्य का वर्गीकरण आयु के आधार पर और ग्रामीण तथा नगरीय बाल साहित्य का वर्गीकरण परिवेश के आधार पर किया जा सकता है.
आप प्रश्न करें तो मैं उत्तर दूँ या अपनी ओर से ही कहूँ?
- बाल मन को बास साहित्य के जरिए कैसे प्रभावित किया जा सकता है?
= बाल मन पर प्रभाव छोड़ने के लिए रचनाकार को स्वयं बच्चे के स्तर पर उतार कर सोचना और लिखना होगा. जब वह बच्चा थी तो क्या प्रश्न उठते थे उसके मन में? उसका शब्द भण्डार कितना था? तदनुसार शब्द चयन कर कठिन बात को सरल से सरल रूप में रोचक बनाकर प्रस्तुत करना होगा.
बच्चे पर उसके स्वजनों के बाद सर्वाधिक प्रभाव साहित्य का ही होता है. खेद है कि आजकल साहित्य का स्थान दूरदर्शन और चलभाषिक एप ले रहे हैं.
- मॉरिशस जैस छोटेे देश में जहां हिदी बोलने का ही संकट है वहां इसे बच्चों में बढ़ावा देने के क्या उपाय हैं?
= जो सबका हित कर सके, कहें उसे साहित्य
तम पी जग उजियार दे, जो वह है आदित्य.
घर में नित्य बोली जा रही भाषा ही बच्चे की मातृभाषा होती है. माता, पिता, भाई, बहिनों, नौकरों तथा अतिथियों द्वारा बोले जाते शब्द और उनका प्रभाव बालम के मस्तिष्क पर अंकित होकर उसकी भाषा बनाते हैं. भारत जैस एदेश में जहाँ अंग्रेजी बोलना सामाजिक प्रतिष्ठा की पहचान है वहां बच्चे पर नर्सरी राइम के रूप में अपरिचित भाषा थोपा जाना उस पर मानसिक अत्याचार है.
मारीशस क्या भारत में भी यह संकट है. जैसे-जैसे अभिभावक मानसिक गुलामी और अंग्रेजों को श्रेष्ठ मानने की मानसिकता से मुक्त होंगे वैसे-वैसे बच्चे को उसकी वास्तविक मातृभाषा मिलती जाएगी.
इसके लिए एक जरूरत यह भी है कि मातृभाषा में रोजगार और व्यवसाय देने की सामर्थ्य हो. अभिभावक अंग्रेजी इसलिए सिखाता है कि उसके माध्यम से आजीविका के बेहतर अवसर मिल सकते हैं.
- सर! बहुत धन्यवाद आपके समय के लिए. आप सुनिएगा मेरा कार्यक्रम. मैं लिंक भेजुंगी आपको 3 june ko aayga.
अवश्य. शुभकामनाएँ. प्रणाम.
= सदा प्रसन्न रहें. भारत आयें तो मेरे पास जबलपुर भी पधारें.
वार्तालाप संवाद समाप्त |
***
स्वास्थ्य दोहावली
अमृत फल है आँवला, कर त्रिदोष का नाश।
आयुवृद्धि कर; स्वस्थ रख, कहता छू आकाश।।
*
नहा आँवला नीर से, रखें चर्म को नर्म।
पौधा रोपें; तरु बना, समझें पूजा-मर्म।।
*
अमित विटामिन सी लिए, करता तेज दिमाग।
नेत्र-ज्योति में वृद्धि हो, उपजा नव अनुराग।।
*
रक्त-शुद्धि-संचार कर, पाचन करता ठीक।
ओज-कांति को बढ़ाकर, नई बनाता लीक।।
*
जठर-अग्नि; मंदाग्नि में, फँकें आँवला चूर्ण।
शहद और घी लें मिला, भोजन पचता पूर्ण।।
*
भुनी पत्तियाँ फाँक लें, यदि मेथी के साथ।
दस्त बंद हो जाएंगे, नहीं दुखेगा माथ।।
*
फुला आँवला-चूर्ण को, आँख धोइए रोज।
त्रिफला मधु-घी खाइए, तिनका भी लें खोज।।
*
अाँतों में छाले अगर, मत हों अाप निराश।
शहद आँवला रस पिएँ, मिटे रोग का पाश।।
*
चूर्ण आँवला फाँकिए, नित भोजन के बाद।
आमाशय बेरोग हो, मिले भोज्य में स्वाद।।
*
खैरसार मुलहठी सँग, लघु इलायची कूट।
मिली अाँवला गोलियाँ, कंठ-रोग लें लूट।।
*
बढ़े पित्त-कफ; वमन हो, मत घबराएँ आप।
शहद-आँवला रस पाएँ, शक्ति सकेगी व्याप।।
५-६-२०१८


***
दोहा दुनिया
शब्द विशेष :बाग़ बगीचा वाटिका, उपवन, उद्यान
*
गार्डन-गार्डन हार्ट है, बाग़-बाग़ दिल आज.
बगिया में कलिका खिली, भ्रमर बजाए साज..
*
बागीचा जंगल हुआ, देख-भाल बिन मौन.
उपवन के दिल में बसी, विहँस वाटिका कौन?
*
ओशो ने उद्यान में, पाई दिव्य प्रतीति.
अब तक खाली हाथ हम, निभा रहे हैं रीति..
*
ठिठक बगीचा देखता, पुलक हाथ ले हाथ.
कभी अधर धर चूमता, कभी लगाता माथ..
*
गुलशन-गुलशन गुल खिले, देखें लोग विदग्ध.
खिला रहा गुल कौन दल, जनता पूछे दग्ध..
६-६-२०१८
***
एक प्रयोग-
चलता न बस, मिलता न जस, तपकर विहँस, सच जान रे
उगता सतत, रवि मौन रह, कब चाहता, युग दाम दे
तप तू करे, संयम धरे, कब माँगता, मनु नाम दे
कल्ले बढ़ें, हिल-मिल चढ़ें, नित नव छुएँ, ऊँचाइयाँ
जंगल सजे, घाटी हँसे, गिरि पर न हों तन्हाइयाँ
परिमल बिखर, छू ले शिखर, धरती सिहर, जय-जय कहे
फल्ली खटर-खट-खट बजे, करतल सहित दूरी तजे
जब तक न मानव काट ले या गिरा दे तूफ़ान आ
तब तक खिला रह धूप - आतप सह, धरा-जंगल सजा
जयगान तेरा करेंगे कवि, पूर्णिमा के संग मिल
नव कल्पना की अल्पना लाख ज्योत्सना जायेगी खिल
***
गीत -
बाँहों में भर शिरीष
जरा मुस्कुराइए
*
धरती है अगन-कुंड, ये
फूलों से लदा है
लू-लपट सह रहा है पर
न पथ से हटा है
ये बाल-हठ दिखा रहा
न बात मानता-
भ्रमरों का नहीं आज से
सदियों से सगा है
चाहों में पा शिरीष
मिलन गीत गाइए
*
संसद की खड़खड़ाहटें
सुन बज रही फली
सरहद पे हड़बड़ाहटें
बंदूक भी चली
पत्तों ने तालियाँ बजाईं
झूमता पवन-
चिड़ियों की चहचहाहटें
लो फिर खिली कली
राहों पे पा शिरीष
भीत भूल जाइए
*
अवधूत है या भूत
नहीं डर से डर रहा
जड़ जमा कर जमीन में
आदम से लड़ रहा
तू एक काट, सौ उगाऊँ
ले रहा शपथ-
संघर्षशील है, नहीं
बिन मौत रह रहा
दाहों में पसीना बहा
तो चहचहाइए
***
आहार-----चिकित्सा!!
----------------------
१- रोगनिवारक आहार--
[ क ] प्रात:कालीन हलके भोजन के रूप में-- मौसमी -- -जैसे अमरूद, खीरा, ककड़ी, नाशपाती, पपीता, खरबूजा अथवा अंकुरित मूंग तथा मौसमी सब्जियां और सलाद का सेवन करना चाहिये या बीस मुनक्का, तीन सूखी अंजीर, तीन खुरमानी रात्रि में धोकर भिगोयी हुई प्रात: खाएं और उसके पानी को नींबूरस मिलाकर पी लें!!
[ ख ] दोपहर भोजन-- मोटे आटे की रोटी तथा एक पाँव उबली हुई हरी सब्जी एवं सलाद लें!
[ ग ] रात्रि-भोजन-- मोटे आते की रोटी तथा एक पाँव उबली हुई हरी सब्जी एवं फल [ यदि संभव हो तो ] ग्रहण करें!
आहार निर्धारित समय पर एवं उपयुकय मात्रा में लिया जाय,जिससे अगले भोजन के समय में स्वाभाविक भूक लगाने लगे! खूब अच्छी तरह चबाते हुए धीरे-धीरे शान्ति से भिजन किया जाय! इसमें तीस-चालीस मिनट अवश्य लगना चाहिये !!
भिजन के लिये गेहूँ के बारीक आटे [ मैदा ] के बदले मोटा आता [ सूजी के आकार का ] पिसवायें तथा दो तीन घंटा पहले गुँथवाकर रोटी बनावायें! इससे रेशाकी मात्रा छ: गुना, वित्तमं-बी चार गुना तथा खनिज पदार्थ की मात्रा चार गुना से भी ज्यादा मिलती है! फलस्वरूप शरीर की सफाई एवं रोगप्रतिरोधक क्षमता पैदा करने में सहयोग मिलता है और कब्ज नहीं होने देता!
कभी भी बारीक आटे की रोटी मत बनवाओ!!
***
छंद सलिला:
गीतिका छंद
*
छंद लक्षण: प्रति पद २६ मात्रा, यति १४-१२, पदांत लघु गुरु
लक्षण छंद:
लोक-राशि गति-यति भू-नभ , साथ-साथ ही रहते
लघु-गुरु गहकर हाथ- अंत , गीतिका छंद कहते
उदाहरण:
१. चौपालों में सूनापन , खेत-मेड में झगड़े
उनकी जय-जय होती जो , धन-बल में हैं तगड़े
खोट न अपनी देखें , बतला थका आइना
कोई फर्क नहीं पड़ता , अगड़े हों या पिछड़े
२. आइए, फरमाइए भी , ह्रदय में जो बात है
क्या पता कल जीत किसकी , और किसकी मात है
झेलिये धीरज धरे रह , मौन जो हालात है
एक सा रहता समय कब? , रात लाती प्रात है
३. सियासत ने कर दिया है , विरासत से दूर क्यों?
हिमाकत ने कर दिया है , अजाने मजबूर यों
विपक्षी परदेशियों से , अधिक लगते दूर हैं
दलों की दलदल न दल दे, आँख रहते सूर हैं
६-६-२०१६
***
दोहा सलिला
आम खास का खास है......
*
आम खास का खास है, खास आम का आम.
'सलिल' दाम दे आम ले, गुठली ले बेदाम..
आम न जो वह खास है, खास न जो वह आम.
आम खास है, खास है आम, नहीं बेनाम..
पन्हा अमावट आमरस, अमकलियाँ अमचूर.
चटखारे ले चाटिये, मजा मिले भरपूर..
दर्प न सहता है तनिक, बहुत विनत है आम.
अच्छे-अच्छों के करे. खट्टे दाँत- सलाम..
छककर खाएं अचार, या मधुर मुरब्बा आम .
पेड़ा बरफी कलौंजी, स्वाद अमोल-अदाम..
लंगड़ा, हापुस, दशहरी, कलमी चिनाबदाम.
सिंदूरी, नीलमपरी, चुसना आम ललाम..
चौसा बैगनपरी खा, चाहे हो जो दाम.
'सलिल' आम अनमोल है, सोच न- खर्च छदाम..
तोताचश्म न आम है, तोतापरी सुनाम.
चंचु सदृश दो नोक औ', तोते जैसा चाम..
हुआ मलीहाबाद का, सारे जग में नाम.
अमराई में विचरिये, खाकर मीठे आम..
लाल बसंती हरा या, पीत रंग निष्काम.
बढ़ता फलता मौन हो, सहे ग्रीष्म की घाम..
आम्र रसाल अमिय फल, अमिया जिसके नाम.
चढ़े देवफल भोग में, हो न विधाता वाम..
'सलिल' आम के आम ले, गुठली के भी दाम.
उदर रोग की दवा है, कोठा रहे न जाम..
चाटी अमिया बहू ने, भला करो हे राम!.
सासू जी नत सर खड़ीं, गृह मंदिर सुर-धाम..
१४-६-२०११
***

कोई टिप्पणी नहीं: