कुल पेज दृश्य

शनिवार, 24 जून 2023

अभियंता रत्न सुधांशु मनी, वंदे भारत ट्रेन

* आज से कोई 6-7 वर्ष पुरानी बात है, 2016 की! 

* रेलवे के एक उच्चइंजीनियर की सेवा निवृति (रिटायरमेंट) में दो वर्ष बचे थे। 

* आमतौर पर निवृति के नज़दीक, जब अंतिम पोस्टिंग का समय आता है, तो कर्मचारी से उसकी पसंद पूछ ली जाती है।  

* पसंद की जगह अंतिम पोस्टिंग इसलिये दी जाती है, ताकि कर्मचारी अपने अंतिम दो वर्षों में अपनी पसंद की जगह घर, मकान, इत्यादि बनवा ले, और निवृत होकर स्थायी हो जाये, व आराम से रह सके! परंतु उस अधिकारी ने अपनी अंतिम पोस्टिंग मांग ली ICF चेन्नई में।  

* ICF यानि Integral Coach Factory, यानि रेल के आधुनिक डिब्बे बनाने वाला कारखाना।  

* चेयरमैन रेलवे बोर्ड ने उनसे पूछा, कि क्या उद्देश्य है? 

* वो इंजीनियर बोले, "अपने देश की, अपनी स्वयं की "सेमी हाई स्पीड ट्रेन" बनाने का उद्देश्य है!"

* ये वो समय था, जब देश मे 180 किलोमीटर प्रति घंटा दौड़ने वाले Spanish Talgo कंपनी के रेल डिब्बों का परीक्षण (ट्रायल) चल रहा था। 

* परीक्षण सफल था, पर वो कंपनी 10 डिब्बों के लगभग 250 करोड़ रुपए मांग रही थी, और "तकनीक स्थानांतरण का करार" भी नहीं कर रही थी!*

* ऐसे में उस इंजीनियर ने ये संकल्प लिया, कि वो अपने ही देश में, स्वदेशी तकनीक से, Talgo से बेहतर ट्रेन बना लेगा, उसके आधे से भी कम दाम में!*

* चेयरमैन, रेलवे बोर्ड ने पूछा, "Are You Sure, We Can Do It ?"*  

* पूरे आत्मविश्वास से उत्तर मिला, "Yes, Sir!"*

* "कितना पैसा चाहिये संशोधन (R&D) के लिये ?"*

* ''सिर्फ 100 करोड़ रुपए, सर!"*

* रेलवे ने उनको ICF में पोस्टिंग और 100 करोड़ रुपए दे दिया!*

* उस अधिकारी ने आनन-फानन में रेलवे इंजीनियर्स की एक टोली खड़ी की, औऱ सभी काम मे जुट गए!*

* दो वर्षों के अथक परिश्रम से जो उत्कृष्ट प्रॉडक्ट तैयार हुआ, उसे हम "वन्दे भारत एक्सप्रेस" के नाम से जानते हैं!*

* 16 डब्बों की इस वन्दे भारत एक्सप्रेस की लागत आई  ₹ 97 करोड़ जबकि Talgo सिर्फ 10 डिब्बों के ₹ 250 करोड़ माँग रही थी। 

* वन्दे भारत एक्सप्रेस भारतीय रेल के गौरवशाली इतिहास का सबसे उत्कृष्ट हीरा है। 

*इसकी विशेषता ये है, कि इसे खींचने के लिए किसी इंजन की आवश्यकता नहीं पड़ती, क्योंकि इसका हर डिब्बा स्वयं में ही सेल्फ प्रोपेल्ड है, यानि हर डिब्बे में मोटर लगी हुई है। 

*दो वर्षों में तैयार हुए पहले रैक को वन्दे भारत एक्सप्रेस के नाम से वाराणसी-दिल्ली के बीच पहली बार चलाया गया। 

*ICF ने अगले दो वर्ष, यानी 2020 तक "ट्रेन 18" के 100 रैक बनाने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई थी पर नई ट्रेन बनाना तो दूर, पूरी टीम पर विजिलेंस जांच बैठकर इंजीनियरों को ICF से दूर, अलग अलग स्थान पर भेजा गया। 2-3 वर्ष जाँच चली, पर कुछ नहीं निकला! कोई भ्रष्टाचार था ही नहींं, सो निकलता क्या?

*अगले 2 वर्षों में 100 रैक बनने थे, एक भी न बना। जांच और R&D के नाम पर तीन वर्ष नष्ट हुए, सो अलग। 

*अंततः 2022 में उसी ICF ने, उसी तकनीक से 4 रैक बनाये, जिन्हें अब दिल्ली-ऊनाओ और बंगलुरू-मैसुर और अहमदाबाद रुट पर चलाया जा रहा है। 

*उन होनहार इंजीनियर का नाम है सुधांशु मनी साहब! वे 2018 में ही सेवा निवृत्त हो गये!

*इस देश में "ट्रेन 18" जैसी विलक्षण उपलब्धि के लिये उनके हाथ केवल इतनी उपलब्धि आई, कि आज भी हम में से अधिकांश आज से पहले उनका नाम तक नहीं सुना। 

*पिछले दिनों, जब "वन्दे भारत" एक भैंस से टकरा गई, और उसका अगला हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया, तो जिनने कभी सुई तक नहीं बनाई उन पत्रकारों द्वारा ट्रेन के डिज़ाइन की अनर्गल आलोचना होने पर सुधांशु सर की पीडा छलक आई और उन्होंने एक लेख लिखकर उसके डिजाइन की खूबियां बताईं। सुधांशु मनी साहब सेवानिवृत्त होकर आजकल लखनऊ में रहते हैं! ईश्वर उन्हें लंबी आयु प्रदान करें।

भारत माता की जय!

कोई टिप्पणी नहीं: