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बुधवार, 28 जून 2023

त्यागमूर्ति कैकेई

श्री राम विग्रह स्थापना और कैकेई 

२२ जनवरी २०२४ राम भक्तों के लिए अभूतपूर्व आनद और सौभाग्य का दिन है जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का नयनाभिराम विग्रह दिव्य-भव्य रामलय में स्तापित किया जाकर उसकी प्राण प्रतिष्ठा जन नायक श्री नरेंद्र मोदी जी के कर कमलों से संपन्न होने जा रही है। विडंबना है की इस अवसर पर राजकुमार राम को मर्यादा पुरुष्टतां राम बनाने में महती भूमिका निभानेवाली राममाता कैकेयी, उनके पितृपक्ष के इशदेव श्री चित्रगुप्त भगवान, उनके मायके पक्ष के वंशज कायस्थों को पूरी तरह विस्मृत किया जा रहा है। अखिल भारतीय हिन्दू महासभा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, जनसंघ तथा भारतीय जनता पार्टी क उद्भव और विकास में महती भूमिका निभाकर सतत योगदान देनेवाले कायस्थ अकारण ही उपेक्षित हैं। श्री राम के वंशजों को खोज-खोज कार आमंत्रित किया गया है किंतु राम-माताओं विशेषकर कैकेयी मैया के वंशज भुला दिए गए हैं। राजमाता कैकेयी को उनका योगदान भुलाकर भ्रमवश कलंकिनी तक कह दिया गया। तब ही से कायस्थ भी भुला दिए गए। आयी, मैया कैकेयी की वास्तविकता जानें।     

देव संस्कृति के समक्ष शिव भक्त रक्षेन्द्र रावण के पराक्रम ने संकट उपस्थिति किया तो उनसे युद्ध करने हेतु देवों तथा आर्यों में कोई नायक योद्धा नहीं था। कुछ नरूप जनक जी की तरह वीतरागी हो गए थे, कुछ देवराज इन्द्र की तरह विलासी थे, अवध नरेश दशरथ वार्धक्य की कगार पर थे। 

त्रिकालदर्शी ऋषियों ने विचार किया कि किसी वीरांगना और किसी वीर राज पुरुष के गर्भ से दर्शन उत्पन्न पुत्र को वीरोंचित शिक्षा देकर रावण वध कराया जाए। ऋषियों की दृष्टि कैकेय देश की राजकुमारी वीरांगना, विदुषी और रूपसी कैकेयी पर गई, जो वीरमाता बनने हेतु सर्वथा उपयुक्त थीं किंतु उनकी उम्र का कोई राजकुमार नहीं था। अवधपति पराक्रमी दशरथ विवाहित और वार्धक्य की कगार पर थे, वे कैकेय  (पाक अधिकृत कश्मीर) नरेश के मित्र थे। कैकेयी-दशरथ के विवाह के प्रस्ताव से कैकेय नरेश सहमत न थे किंतु देव संस्कृति की रक्षा के लिए राजकुमारी कैकेयी आत्मोत्सर्ग हेतु सहमत हो गयीं। इस अवसर पर महाराज कैके को सहमत कराने के लिए दशरथ जी ने वचन दिया की कैकेयी की संतान ही अवध की गद्दी पर बैठेगी। 

विवाह पश्चात कैकेयी जी ने अपनी पूर्ण योग्यता से दशरथ का साथ दिया। अपनी दो सौतों के साथ सौहार्द्र स्थापित करने के साथ साथ वे महाराज दशरथ को भोग से विमुखकर युद्ध हेतु ले गयीं। दशरथ के साथ युद्ध किया, दशरथ के घायल होने पर उनकी रक्षा और चिकित्सा की, रथ का पहिया निकलने पर धुरी की जगह अपनी अंगुली लगाकर दशरथ को विजय दिलायी। दशरथ जी द्वारा दो वरदान दिए जाने पर भी उन्होंने कुछ नहीं माँगा।  

पुत्रेष्टि यज्ञ के बाद भी कैकेयी ने प्राप्त पायस में से आधा भाग सुमित्रा जी को दिया। चारों पुत्रों का जन्म होने पर उन्होंने चारों को समान स्नेह दिया, चारों की शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था की, उन्हें शस्त्र संचालन सिखाकर निर्भीक बनाया। राम को कौशल्या मैया से अधिक स्नेह कैकेयी मैया से मिला। राम के बाद होने पर दशरथ में उनके प्रति मोह जाग गया। विश्वामित्र जी के द्वारा यज्ञ रक्षा हेतु श्री राम की याचना करने पर दशरथ जी ने मना कर दिया किंतु मैया कैकेयी ने आग्रह कर दशरथ जी को सहमत करा कर श्री राम को विश्वामित्र जी के साथ भिजवाया। फलत:, पूर्व योजनानुसार ताड़का-वाढ और श्री राम विवाह संपन्न हुआ। राम विवाह के पश्चात कैकेयी मैया ने अपना महल कनक भवन ही नव विवाहित राम-सीता के निवास हेतु दे दिया था। 

आयु बढ़ने के साथ-साथ दशरथ जी का राम-मोह भी बढ़ा। श्री राम अवध नरेश बनते तो वे तब तक रावण वध नहीं कर पाते जब तक कि रावण अयोध्या पर आक्रमण न करता। रावण अयोध्या राज्य को छोड़कर अत्याचार करता रहता। रावण को शिव जी से प्राप्त वरदानों के कारण वह श्री राम के अलावा अन्य किसी के द्वारा मारा नहीं जा सकता था। ऐसी परिस्थिति में ऋषियों के अनुरोध और दस्वपन में देवताओं द्वारा प्रार्थना किए जाने पर  कैकेयी मैया एक बार फिर आत्मोत्सर्ग कर, कलंक का विष पीकर राम जी के वन गमन का पथ प्रशस्त करने के लिए दो वरदानों का उपयोग कर राम का वनवास और भारत का राज्याभिषेक माँगती हैं। यदि उनके लक्ष्य भरत जी का राज्याभिषेक मात्र होता तो वह श्री राम से कह सकती थीं। राम-भरत का प्रगाढ़ प्रेम सभी जानते हैं। क्या श्री राम जी को भरत जी को गद्दी देने में तनिक भी आपत्ति होती?

विधि की विडंबना कि पुत्र-मोह की अधिकता के कारण दशरथ जी का देहावसन हो गया। लोक ने उन्हें लांछित किया। वे श्री राम के हाथों देव कार्य करने के लिए मौन रहीं, यहाँ तक कि पुत्र भरत को भी सत्य न बताकर भर्त्सना की पात्र बनीं। चित्रकूट में श्री राम ने मैया कौशल्या से पहले मैया कैकेयी के चरण-स्पर्श कर तथा भरत जी को कैकेयी मैया का अपमान न करने की सलाह देकर इंगित किया कि वे दोषी नहीं थीं। भरत जी ने नंदी ग्राम में तापस जीवन बिताया तो कैकेयी मैया ने भी तपस्विनी की तरह जीवन जिया। अयोध्या लौटने पर श्री राम ने फिर कौशल्या मैया से पहले कैकेयी मैया के चरण छुए पर लोकापवाद मिटा नहीं।

श्री राम मंदिर स्थापना के कालजयी अनुष्ठान में माता कैकेयी के साथ न्याय किया जाए। उनके चित्र व विग्रह यथास्थान हों, उनके पितृ पक्ष के आवंशज कायस्थों को भी आमन्त्रित किया जाए। मैया कौशल्या के पितृ पक्ष से वर्तमान छतीसगढ़ के प्रतिनिधि तथा मैया सुमित्रा के पितृ पक्ष से भी प्रतिनिधि सम्मिलित किए जाएँ, तबही यह अनुष्ठान परिपूर्ण होगा।  

त्यागमूर्ति कैकेई 
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कैकेई कश्मीर के पूर्व में स्थित कैकय देश की कायस्थ राजकुमारी थी। अध्यात्म रामायण कहती है कि एक रात जब माता कैकेयी सोती हैं तो उनके स्वप्न में विप्र, धेनु, सुर, संत सब एक साथ हाथ जोड़कर दर्शन देते हैं और उनसे कहते हैं कि 'हे माता कैकेयी!, हम सब आपकी शरण में हैं। महाराजा दशरथ की बुद्धि जड़ हो गयी है, तभी वो राम को राजा का पद दे रहे हैं। अगर प्रभु अयोध्या की राजगद्दी पर बैठ गए तब उनके अवतार लेने का मूल कारण ही नष्ट हो जायेगा। माता, सम्पूर्ण पृथ्वी पर सिर्फ आपमें ही ये साहस है कि आप राम से जुड़े अपयश का विष पी सकती हैं। कृपया, प्रभु को जंगल भेज कर राक्षसों का वध, जटायु तथा शबरी का कल्याण आदि  कार्य संपन्न कराइए।  युगों-युगों से कई लोग उद्धार होने की प्रतीक्षा में हैं। त्रिलोकस्वामी का उद्देश्य भूलोक का राजा बनना नहीं है। वनवास न हुआ तो राम इस लोक के 'प्रभु' ना हो पाएंगे माता।' 

माता कैकेयी के आँखों से आँसू बहने लगे। माता बोलीं - 'आने वाले युगों में लोग कहेंगे कि मैंने भरत के लिए राम को छोड़ दिया लेकिन असल में मैं राम के लिए आज भरत का त्याग कर रही हूँ। मुझे मालूम है इस निर्णय के बाद भरत और भारत मुझे कभी स्वीकार नहीं करेगा।'

रामचरित मानस में भी कई जगहों पर इसका संकेत मिलता है जब गुरु वशिष्ठ दुःखी भरत से कहते हैं -

सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेउ मुनिनाथ।
हानि-लाभु जीवनु-मरनु, जसु अपजसु बिधि हाथ।। 

हे भरत ! सुनो भविष्य बड़ा बलवान् है। हानि-लाभ, जीवन-मरण और यश-अपयश, ये सब विधाता के ही हाथ में है, बीच में केवल माध्यम आते हैं।

प्रभु श्रीराम इस रहस्य को जानते थे इसीलिए चित्रकूट में तीनों माताओं के आने पर प्रभु सबसे पहले माता कैकेयी के पास पहुँच कर उन्हें प्रणाम करते हैं और भरत जी को भी कैकेयी मैया का अनादर और अवज्ञा करने से रोकते हैं। प्रभु श्री राम को पैदा करने वाली भले ही कौशल्या जी थीं लेकिन उन्हें ही नहीं चारों भाइयों को राजकुमारों के विलास से दूर रखकर कड़ी शिक्षा दिलवाकर कर्मयोगी और जनसेवी बनानेवाली मैया कैकेयी ही थीं। लंका से लौटने और राज्याभिषेक होने के बाद भी श्री राम ने कैकेयी मैया को सर्वाधिक सम्मान दिया। उनको 'मर्यादा पुरुषोत्तम' बनाने वाली माता कैकेयी ही थीं।
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प्रेषक 
संजीव वर्मा 'सलिल', संयोजक विश्व कायस्थ समाज जबलपुर 
संपर्क- ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१ 
चलभाष ९४२५१८३२४४, ईमेल salil.sanjiv@gmail.com 

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