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बुधवार, 17 नवंबर 2021

मुक्तक आँख

हास्य मुक्तक
गृह लक्ष्मी से कहा 'आज है लछमी जी का राज
मुँहमाँगा वरदान मिलेगा रोक न मुझको आज'
घूर एकटक झट बोली वह-"भाव अगर है सच्चा
देती हूँ वरदान रही खुश कर प्रणाम नित बच्चा"
*
हास्य कविता
मेहरारू बोली 'ए जी! है आज पर्व दीवाली
सोना हो जब, तभी मने धनतेरस वैभवशाली'
बात सुनी मादक खवाबों में तुरत गया मन डूब
मैं बोला "री धन्नो! आ बाँहों में सोना खूब"
वो लल्ला-लल्ली से बोली "सोना बापू संग
जाती हूँ बाजार करो रे मस्ती चाहे जंग"
हुई नरक चौदस यारों ये चीखे, वो चिल्लाए
भूख इसे, हाजत उसको कोई तो जान बचाए
घंटों बाद दिखी घरवाली कई थैलों के संग
खाली बटुआ फेंका मुझ पर, उतरा अपना रंग
***
मुक्तक
नम आँख देखकर हमारी आँख नम हुई।दिल से करी तारीफ मगर वह भी कम हुई।।
हमने जलाई फुलझड़ी वह 'सलिल' खुश नहीं-
दीवाला हो गया है वो जैसे ही बम हुई।।
*
है आजकल का धर्म पटाखों को फोड़ना।
कचरे का ढेर चारों तरफ रोज छोड़ना।।
संकीर्ण स्वार्थ साध; खुद को श्रेष्ठ मानना-
औरों पे लगा दोष, खुद कानून तोड़ना।।
*
शत्रु हमारे हैं हम खुद ही, औरों से हमको कम भय।
सुविधा चाहें; नियम और कानून न मानेंगे है तय।।
पंडित-नेता बाँट रहे हैं अपने स्वार्थों की खातिर-
खड़े आम के हित में हो अब, खासों का मिटना है तय।।
*
जन की बात न कोई सुनता, मन की बात कहे सत्ता।
कथनी-करनी एक नहीं, है रखा छिपा असली पत्ता।।
नीति-नियम की तनिक न चिंता, देश गौण दल मुख्य कहें-
धनिक शौक से; दीन विवश हो, तन पर धारे कम लत्ता।।
*
दीवाली आई-गई, दीवाला है सत्य।
है उधार सर पर चढ़ा; कहता नहीं असत्य।।
चार दिनों की चाँदनी अब अँधियारा तथ्य।
सब जानें पूरीतरह मिथ्या सुख का कथ्य।।
***





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