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शुक्रवार, 26 नवंबर 2021

मुक्तक, दोहा

मुक्तक:
मेरी तो अनुभूति यही है शब्द ब्रम्ह लिखवा लेता
निराकार साकार प्रेरणा बनकर कुछ कहला लेता
मात्र उपकरण मानव भ्रमवश खुद को रचनाकार कहे
दावानल में जैसे पत्ता खुद को करता मान दहे
*
बात न करने को कुछ हो तो कहिये कैसे बात करें?
बिना बात के बात करें जो नाहक शह या मात करें
चोट न जो सह पाते देते पड़ती तो रो देते हैं-
दोष विधाता को दे कहते विधना क्यों आघात करे??
*
दोहा सलिला
राम आत्म परमात्म भी, राम अनादि-अनंत
चित्र गुप्त है राम का, राम सृष्टि के कंत
*
विधि-हरि-हर श्री राम हैं, राम अनाहद नाद
शब्दाक्षर लय-ताल हैं, राम भाव रस स्वाद
*
राम नाम गुणगान से, मन होता है शांत
राम-दास बन जा 'सलिल', माया करे न भ्रांत
*


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