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सोमवार, 22 नवंबर 2021

गीत, शिशु गीत, नवगीत

गीत:
पहले जीभर.....
संजीव 'सलिल'
*
पहले जीभर लूटा उसने,
फिर थोड़ा सा दान कर दिया.
जीवन भर अपमान किया पर
मरने पर सम्मान कर दिया.....
*
भूखे को संयम गाली है,
नंगे को ज्यों दीवाली है.
रानीजी ने फूँक झोपड़ी-
होली पर भूनी बाली है..
तोंदों ने कब क़र्ज़ चुकाया?
भूखों को नीलाम कर दिया??
*
कौन किसी का यहाँ सगा है?
नित नातों ने सदा ठगा है.
वादों की हो रही तिजारत-
हर रिश्ता निज स्वार्थ पगा है..
जिसने यह कटु सच बिसराया
उसका काम तमाम कर दिया...
*
जो जब सत्तासीन हुआ तब
'सलिल' स्वार्थ में लीन हुआ है.
धनी अधिक धन जोड़ रहा है-
निर्धन ज्यादा दीन हुआ है..
लोकतंत्र में लोभतंत्र ने
खोटा सिक्का खरा कर दिया...
**********
शिशु गीत सलिला : 1
संजीव 'सलिल'
*
1.श्री गणेश
श्री गणेश की बोलो जय,
पाठ पढ़ो होकर निर्भय।
अगर सफलता पाना है-
काम करो होकर तन्मय।।
*
2. सरस्वती
माँ सरस्वती देतीं ज्ञान,
ललित कलाओं की हैं खान।
जो जमकर अभ्यास करे-
वही सफल हो, पा वरदान।।
*
3. भगवान
सुन्दर लगते हैं भगवान,
सब करते उनका गुणगान।
जो करता जी भर मेहनत-
उसको देते हैं वरदान।।
*
4. देवी
देवी माँ जैसी लगती,
काम न लेकिन कुछ करती।
भोग लगा हम खा जाते-
कभी नहीं गुस्सा करती।।
*
5. धरती माता
धरती सबकी माता है,
सबका इससे नाता है।
जगकर सुबह प्रणाम करो-
फिर उठ बाकी काम करो।।
*
6. भारत माता
सजा शीश पर मुकुट हिमालय,
नदियाँ जिसकी करधन।
सागर चरण पखारे निश-दिन-
भारत माता पावन।
*
7. हिंदी माता
हिंदी भाषा माता है,
इससे सबका नाता है।
सरल, सहज मन भाती है-
जो पढ़ता मुस्काता है।।
*
8. गौ माता
देती दूध हमें गौ माता,
घास-फूस खाती है।
बछड़े बैल बनें हल खीचें
खेती हो पाती है।
गोबर से कीड़े मरते हैं,
मूत्र रोग हरता है,
अंग-अंग उपयोगी
आता काम नहीं फिकता है।
गौ माता को कर प्रणाम
सुख पाता है इंसान।
बन गोपाल चराते थे गौ
धरती पर भगवान।।
*
9. माँ -1
माँ ममता की मूरत है,
देवी जैसी सूरत है।
थपकी देती, गाती है,
हँसकर गले लगाती है।
लोरी रोज सुनाती है,
सबसे ज्यादा भाती है।।
*
10. माँ -2
माँ हम सबको प्यार करे,
सब पर जान निसार करे।
माँ बिन घर सूना लगता-
हर पल सबका ध्यान धरे।।
*
नवगीत:
जो जी चाहे करूँ
मुझे तो है इसका अधिकार
बीड़ी-गुटखा बहुत जरूरी
साग न खा सकता मजबूरी
पौआ पी सकता हूँ, लेकिन
दूध नहीं स्वीकार
जो जी चाहे करूँ
मुझे तो है इसका अधिकार
कौन पकाये घर में खाना
पिज़्ज़ा-चाट-पकौड़े खाना
चटक-मटक बाजार चलूँ
पढ़ी-लिखी मैं नार
जो जी चाहे करूँ
मुझे तो है इसका अधिकार
रहें झींकते बुड्ढा-बुढ़िया
यही मुसीबत की हैं पुड़िया
कहते सादा खाना खाओ
रोके आ सरकार
जो जी चाहे करूँ
मुझे तो है इसका अधिकार
हुआ कुपोषण दोष न मेरा
खुद कर दूँ चहुँ और अँधेरा
करे उजाला घर में आकर
दखल न दे सरकार
जो जी चाहे करूँ
मुझे तो है इसका अधिकार
***
नवगीत:
अहर्निश चुप
लहर सा बहता रहे
आदमी क्यों रोकता है धार को?
क्यों न पाता छोड़ वह पतवार को
पला सलिला के किनारे, क्यों रुके?
कूद छप से गव्हर नापे क्यों झुके?
सुबह उगने साँझ को
ढलता रहे
हरीतिमा की जयकथा
कहता रहे
दे सके औरों को कुछ ले कुछ नहीं
सिखाती है यही भू माता मही
कलुष पंकिल से उगाना है कमल
धार तब ही बह सकेगी हो विमल
मलिन वर्षा जल
विकारों सा बहे
शांत हों, मन में न
दावानल दहे
ऊर्जा है हर लहर में कर ग्रहण
लग न लेकिन तू लहर में बन ग्रहण
विहंगम रख दृष्टि, लघुता छोड़ दे
स्वार्थ साधन की न नाहक होड़ ले
कहानी कुदरत की सुन,
अपनी कहे
स्वप्न बनकर नयन में
पलता रहे
***



एक रचना
अनाम
*
कहाँ छिपे तुम?
कहो अनाम!
*
जग कहता तुम कण-कण में हो
सच यह है तुम क्षण-क्षण में हो
हे अनिवासी!, घट-घटवासी!!
पर्वत में तुम, तृण-तृण में हो
सम्मुख आओ
कभी हमारे
बिगड़े काम
बनाओ अकाम!
*
इसमें, उसमें, तुमको देखा
छिपे कहाँ हो, मिले न लेखा
तनिक बताओ कहाँ बनाई
तुमने कौन लक्ष्मण रेखा?
बिन मजदूरी
श्रम करते क्यों?
किंचित कर लो
कभी विराम.
*
कब तुम माँगा करते वोट?
बदला करते कैसे नोट?
खूब चढ़ोत्री चढ़ा रहे वे
जिनके धंधे-मन में खोट
मुझको निज
एजेंट बना लो
अधिक न लूँगा
तुमसे दाम.
***

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