मन का डूबा डूबता , बोझ अचिन्त्य विचार ।
चिन्तन का श्रृंगार ही , देता इसे उबार ॥ -शंकर ठाकुर चन्द्रविन्दु
देता इसे उबार, राग-वैराग साथ मिल।
तन सलिला में कमल, मनस का जब जाता खिल।।
चंद्रबिंदु शिव भाल, सोहता सलिल-धार बन।
उन्मन भी हो शांत, लगे जब शिव-पग में मन।। -संजीव वर्मा 'सलिल'
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कार्य शाला: दोहा / रोला / कुण्डलिया
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तुहिन कणों से सज गए,किसलय कोमल फूल।
"दीपा" कैसे दिख रहे, धूल सने सब शूल।। - माँ प्रदीपा
धूल सने सब शूल, त्रास दे त्रास पा रहे।
दे परिमल सब सुमन, जगत का प्यार पा रहे।।
सुलझे कोई प्रश्न, कभी कब कहाँ रणों से।
किसलय कोमल फूल सज गए तुहिन कणों से।। - संजीव
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५.१०.२०१८
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