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बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

बंगाल में शारदा पूजा

बंगाल में शारदा पूजा 

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सनातन धर्म में भक्त और भगवान का संबंध अनन्य और अभिन्न है। एक ओर भगवान सर्वशक्तिमान, करुणानिधान और दाता है तो दूसरी ओर 'भगत के बस में है भगवान' अर्थात भक्त बलवान हैं। सतही तौर पर ये दोनों अवधारणाएँ परस्पर विरोधी प्रतीत होती किंतु वस्तुत: पूरक हैं। सनातन धर्म पूरी तरह विग्यानसम्मत, तर्कसम्मत और सत्य है। जहाँ धर्म सम्मत कथ्य विग्यान से मेल न खाए वहाँ जानकारी का अभाव या सम्यक व्याख्या न हो पाना ही कारण है। 
परमेश्वर ही परम ऊर्जा 
सनातन धर्म परमेश्वर को अनादि, अनंत, अजर और अमर कहता है। थर्मोडायनामिक्स के अनुसार 'इनर्जी कैन नीदर बी क्रिएटेड नॉर बी डिस्ट्रायडट, कैन बी ट्रांसफार्म्ड ओनली'। ऊर्जा उत्पन्न नहीं की जा सकती इसलिए अनादि है, नष्ट नहीं की जा सकती इसलिए अमर है, ऊर्जा रूपांतरित होती है इसलिए उसकी परिसीमन संभव नहीं इसलिए अनंत है, ऊर्जा कालातीत नहीं होती इसलिए अजर है। ऊर्जा ऊर्जा से उत्पन्न हो ऊर्जा में विलीन हो जाती है। पुराण कहता है 
'ॐ पूर्णमद: पूर्ण मिदं पूर्णात पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्ण मेवावशिष्यते' 
अर्थात
पूर्ण है वह पूर्ण है यह, पूर्ण ही रहता सदा
पूर्ण में से पूर्ण को यदि दें घटा, शेष तब भी पूर्ण ही रहता सदा।
पूर्ण और अंश का नाता ही परमात्मा और आत्मा का नाता है। अंश का अवतरण पूर्ण बनकर पूर्ण में मिलने हेतु ही होता है।
इसलिए सनातनधर्मी परमसत्ता को निरपेक्ष मानते हैं। कंकर कंकर में शंकर की लोक मान्यतानुसार कण-कण में भगवान है, इसलिए 'आत्मा सो परमात्मा'। यह प्रतीति हो जाए कि हर जीव ही नहीं जड़ चेतन' में भी उसी परमात्मा का अंश है, जिसका हम में है तो हम सकल सृष्टि को सहोदरी अर्थात एक माँ से उत्पन्न मानकर सबसे समता, सहानुभूति और संवेदनापूर्ण व्यवहार करें।
सबकी जननी एक है जो खुद के अंश को उत्पन्न कर, स्वतंत्र जीवन देती है। यह जगजननी ममतामयी ही नहीं है। वह दुष्टहंता भी है। उसके नौ रूपों का पूजन वन दुर्गा पर्व पर किया जाता है। दुर्गा सप्तशतीकार उसका वर्णन करता है-
सर्वमंगल मांगल्ये शिवा सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।
मत्स्य पुराण के अनुसार मत्स्य भगवान से त्रिदेवों और त्रिदेवियों की उत्पत्ति हुई जिन्हें सृष्टि का उत्पत्ति, पालन और विनाश का दायित्व मिला। ब्रह्मवैवर्त पुराण श्रीकृष्ण को सृष्टि का मूल मानता है। शिव पुराण रे अनुसार शिव सबके मूल हैं। मार्कण्डेय पुराण और दुर्गा सप्तशती शक्ति को महत्व दें, यह स्वाभाविक है। 
बंगाल में शक्ति पूजा की चिरकालिक परंपरा है। संतानें माँ का आह्वान कर, स्वागत, पूजन, सत्कार, भजन तथा विदाई करती हैं। अंग्रेजी कहावत है 'चाइल्ड अज द फादर अॉफ मैन' अर्थात 'बेटा ही है बाप बाप का'। बंगाल में संतानें जगजननी को बेटी मानकर, उसके दो बेटों कार्तिकेय-गणेश व दो बेटियों शारदा-लक्ष्मी सहित उसकी मायके में अगवानी करती हैं। हिमवान पर्वतेश्वर हैं। उनकी बेटी दुर्गा स्वेच्छा से वैरागी शिव का वरण करती है। 
बुद्धिमान गणेश और पराक्रमी कार्तिकेय उनके बेटे तथा ग्यान की देवी शारदा न समृद्धि का देवी लक्ष्मी उनकी बेटियाँ हैं। अन्य प्रसंग में सृष्टि परिक्रमा की स्पर्धा होने पर गणेश कार्तिकेय को हराकर अग्रपूजित हो जाते हैं। यहाँ धन पर ग्यान की श्रेष्ठता प्रतिपादित की गई है।
दुर्गा आत्मविश्वासी हैं, माता-पिता की अनिच्छा के बावजूद विरागी शिव से विवाहेतर उन्हें अनुरागी बना लेती हैं। एक बार कदम आगे बढ़ाकर पीछे नहीं हटातीं। लगभग १२०० वर्ष पुराने मार्कण्डेय पुराण के देवी महात्म्य में वे सिंहवाहिनी होकर महिषासुर का वध और रक्तबीज का रक्तपात करती हैं। पराक्रमी होते हुए भी वे लज्जाशील हैं। शिव से नृत्य स्पर्धा होने पर वे मात्र इसलिए पराजय स्वीकार लेती हैं कि शिव की तरह नृत्यमुद्रा बनाने पर अंग प्रदर्शन न हो जाए। उनका संदेश स्पष्ट है मर्यादा जय-पराजय से अधिक महत्वपूर्ण है, यह भी कि दाम्पत्य में हार ही जीत बन जाती है।
आरंभ में दुर्गा पूजन वासंती नवरात्रि में किया जाता था। कालांतर में विजयादशमी को पर्व रूप में मनाए जाने पर दुर्गा पूजन शारदीय नवरात से संलग्न हो गया ।

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