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शनिवार, 10 अक्तूबर 2020

दोहा सलिला

 दोहा सलिला :

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सृजन कुञ्ज में खिल रहे, शत-शत दोहा फूल। 
अनिल धूप गति यति सदृश, भू नभ दो पद कूल।।
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पाखी के दो पर चरण, चंचु पदादि समान। 
पैर पदांत गतिज रहें, नयन कहन ज्यों बान।।
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पद्म सदृश पुष्पा रहे, विश्वबंधु बन कथ्य।   
मधुरस्मृति रवि किरण की,ममता सम युग सत्य।।
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विपुल भाव; रस अश्क़ हैं, चिर अनुराग सुधीर। 
 अमृत सागर पा उषा, भू उतरी नभ चीर।।
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हिंदुस्तानी हम सभी, निर्मल सलिल प्रशांत। 
मत निर्जीव समझ जगत, हम संजीव सुशांत।।
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१०-१०-२०२०

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