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बुधवार, 8 जुलाई 2020

दृष्टांत कथा गुरु क्यों?

पारंपरिक लघु कथा : दृष्टांत कथा 
गुरु क्यों?
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स्वामी रामकृष्ण परमहंस की खेती सुनकर तरुण नरेन्द्र ने एक दिन उनसे कहा, " स्वामीजी! मैं रामायण जानता हूँ , भगवद्गीता जानता हूँ, सारे वेद पढ़े हैं और हर विषय पर अच्छा व्याख्यान दे लेता हूँ, फिर मुझे गुरु की आवश्यकता क्यों ?"
परमहंस ने कोई उत्तर नहीं दिया। सिर्फ मुस्कुरा दिए। 
कुछ दिनों बाद परमहंस ने नरेन्द्र को बुलवाया, कुछ सामान और मान-पते की एक पर्ची देकर कहा, " इसे नदी के पार इनको कल दे आओ।"
नरेन्द्र ने सामान ले लिया। दूसरे दिन सवेरे उस गाँव की तरफ निकल पड़े ताकि जल्दी से देकर वापस आ सकें। रास्ते में एक नदी पड़ती थी जहाँ नाव तैयार थी, नाविक उन्हें लेकर चल पड़ा। नदी के पार उतर कर उन्होंने देखा कि घाट से कई सारे रास्तेे, कई गाँवों की तरफ जाते हैं। उन्होंने नाविक से पूछा, "भैया ! इस गाँव तक पहुँचने का रास्ता कौन सा है ? 
नाविक ने कहा, "मुझे नहीं मालुम। "
नरेन्द्र असमंजस में पड़ गए।  अब क्या करें ? यहाँ तो कई रास्ते हैं,  किससे जाएँ कि बिना भटके सही गाँव में पहुँच जाएँ। काफी देर तक देखते रहे, कोइ अन्य जानकार नहीं आया तो नाववाले से बोले, "भैया, मुझे वापस ले चलो।  बिना रास्ता जाने ही चला आया। इस बार पूछ कर आऊँगा।"
वापस आकर नरेन्द्र स्वामी परमहंस के पास रास्ता पूछने गए तो उन्होंने रास्ता बताने के स्थान पर सामान वापिस ले लिया और कहा की अब पहुँचाने की आवश्यकता नहीं है यह तो तुम्हारे उस दिन के प्रश्न का उत्तर है।  गंतव्य स्थान पर जाने के लिए तुम्हारे पास माध्यम (नाव) है, संसाधन (नाविक) है, यह भी मालूम है कि क्या करना है (सामान देना है), कहाँ जाना है, लेकिन रास्ता नहीं मालूम ! बिना मार्गदर्शन के किस रास्ते से भटकते रह जाएगा। 
नरेंद्र समझ गए कि गुरु मार्गदर्शक होता है। उसे पता होता है कि किस शिष्य को कौन सा सामान देना है, कौन सी राह बतानी है? 
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