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रविवार, 19 जुलाई 2020

प्रतिष्ठा में 
मंत्री जी 

मानव संसाधन विकास मंत्रालय,
पता: 301, सी-विंग, शास्त्री भवन,
नयी दिल्ली-110-001
महोदय
वंदे भारत-भारती।
नई प्रस्तावित राष्ट्रीय शिक्षा नीति के संदर्भ में सादर निवेदन है कि-
१.सामान्यत: शिक्षा का माध्यम भाषा तथा लक्ष्य आजीविका तथा ज्ञान प्राप्ति होता है।
२. शिक्षा नीति पर विचार के पूर्व भाषा नीति निर्धारित होना अपरिहार्य है। अलग-अलग जन समूहों के दैनन्दिन जीवन की आवश्यकताओं के अनुसार भाषा क्रमश: विकसित और प्रयुक्त होती है। किसी जन समूह के लिए कोेेई विदेशी भाषा अपरिहार्य और अनन्तिम कदापि नहीं हो सकती। दुर्भाग्य से पूर्व सरकारों ने त्रिभाषा फार्मूला ईमानदारी से लागू नहीं किया और राजनैतिक हित साधने के लिए स्थानीय बोलिओं और भाषाओँ विशेषकर राष्ट्र भाषा हिंदी के मध्य जनमानस को गुमराह कर टकराव उत्पन्न किया। वर्तमान समय में जबकि केंद्र तथा अधिकांश बड़े प्रदेशों में जननायक नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में राष्ट्रीय विचारधारा परक सरकारें जनता ने विशाल बहुमत से बना दी हैं, यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि प्राथमिक स्तर से शोध स्तर तक हर विषय की पढ़ाई राजभाषा और विश्व वाणी हिंदी में हो।
इसके लिए विधा और विषय वार पाठ्यक्रमानुसार पुस्तकें तैयार करने, तकनीकी शब्द कोष बनाने, आवश्यकतानुसार शब्द ग्रहण या अन्य भाषाओँ के शब्द ग्रहण करने के लिए इच्छुक तथा योग्य व्यक्तियों को अवसर देकर उनका सहयोग लिया जाए।
३. आगामी शिक्षा सत्र से पूरी शिक्षा राजभाषा हिंदी में देने का लक्ष्य लेकर सभी महाविद्यालयों में युद्ध स्तर पर तैयारी हो। आरम्भ में हिंदी, अंग्रेजी तथा स्थानीय बोली / भाषाओँ का मिश्रित रुप भी हो तो कोई हानि नहीं है।
४. शिक्षा को व्यसायपरक बनाया जाए, जिन पाठ्यक्रमों में आजीविका प्रदाय क्षमता नहीं है उन्हें तत्काल बंद कर नए रोजगारपरक पाठ्यक्रम बनाए जाएँ। सामान्य स्नातक पाठ्यक्रम समाप्त कर उसके स्थान पर रोजगारपरक तकनीकी डिप्लोमा डिग्री पाठ्यक्रम हों। इन विषयों के प्राध्यापकों / शिक्षकों को अल्पावधिक प्रशिक्षण देकर नए विषयों को पढ़ाने योग्य बनाया जाए।
५. प्रदेशों में निजी महाविद्यालयों (विशेषकर अभियांत्रिकी महाविद्यालयों) को बेशकीमती भूमि जनशिक्षा हेतु नाम मात्र के मूल्य पर दी गई जिन पर विद्यार्थियों की शिाक्षणिक शुल्क का उपयोग कर न केवल विशाल भवन बन लिए गए अपितु करोड़ों रुपयों की कमाई भी कर ली गयी है। अब भूमि के मूल्य बढ़ने के कारन उस पर आवासीय मकान बनकर बेचने में बहुत अधिक लाभ है। इसलिए अनेक महाविद्यालय प्रबंधक लगातार हानि दर्शा कर महाविद्यालय बंद कर उस भूमि का उपयोग अन्य कार्यों में कर कमाई करना चाहते हैं भले ही उससे सामान्य जनों के बच्चे शिक्षा अवसरों से वंचित हों।
इस षड्यंत्र को निष्प्रभावी करने का एक ही उपपय है कि नीति यह हो कि शिक्षा कार्य हेतु दी गयी जमीन तथा उस पर बना भवन शिक्षा कार्य रोकते ही शासन आरम्भ काल में दी गयी राशि लौटाकर राजसात कर ले तथा उसमें शासकीय शिक्षा संस्थान आरम्भ किये जाएँ।
६. चिकित्सा तथा यांत्रिकी शिक्षा के प्रथम सेमिस्टर की पुस्तकें ३ माह में भारतीय चिकित्षा परिषद तथा इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स् जैसी संस्थाओं के सहयोग से तैयार कर हर स्तर में एक-एक सेमिस्टर आगे हिंदी माध्यम किया जाए।
७. कृषि तथा ग्रामीण अंचलों की आवश्यकता तथा उपलब्ध संसाधनों नुसार लघु उद्योगों की स्थापना और सफलता हेतु आवश्यक जानकारीपरक पाठ्यक्रम बनाए जाएँ जबकि अनुपयोगी विषयों में उपाधि पाठ्यक्रम समाप्त हों।
८. सरकार दृढ़ इच्छाशक्ति रखकर 'इंडिया' नाम का विलोप कर 'भारत' नाम का प्रचलन कराए ताकि इन जन सामान्य गुलामी की भावना से मुक्त हो सके।
९. हर प्रदेश में अन्य प्रदेशों की भाषाएँ सीखने के व्यापक प्रबंध हों ताकि भाषिक विरोध का वातावरण समाप्त हो।
आशा है सुझावों पर विचार कर सम्यक निर्णय लिए जायेंगे।
सधन्यवाद
एक नागरिक संदेश में फोटो देखें
अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल'
चेयरमैन जबलपुर चैप्टर
इन्डियन जिओटेक्निकल सोसायटी
समन्वयम, २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१
salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१ ८३२२४४

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