कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

अंक माहात्म्य (१-९)

अंक माहात्म्य (१-९)
*
शून्य जन्म दे सृष्टि को, सकल सृष्टि है शून्य
शून्य जुड़े घट शून्य हो, गुणा-भाग भी शून्य
*
एक ईश रवि शशि गगन, भू मैं तू सिर एक
गुणा-भाग धड़-नासिका, है अनेक में एक
*
दो जड़-चेतन नार-नर, कृष्ण-शुक्ल दो पक्ष
आँख कान कर पैर दो, अधर-गाल समकक्ष
*
तीन देव व्रत राम त्रय, लोक काल ऋण तीन
अग्नि दोष-गुण ताप ऋतु, धारा मामा तीन
*
चार धाम युग वेद रिपु, पीठ दिशाएँ चार
वर्ण आयु पुरुषार्थ चौ, चौका चौक अचार
*
पाँच देव नद अंग तिथि, तत्व अमिय शर पाँच
शील सुगंधक इन्द्रियाँ, कन्या नाड़ी साँच
*
छह दर्शन वेदांग ऋतु, शास्त्र पर्व रस कर्म
षडाननी षड राग हे, षड अरि-यंत्र न धर्म
*
सात चक्र ऋषि द्वीप स्वर, सागर पर्वत रंग
लोक धातु उपधातु दिन, अश्व अग्नि शुभ अंग
*
अष्ट लक्ष्मी सिद्धि वसु, योग कंठ के दोष
योग-राग के अंग अठ, आत्मोन्नति जयघोष
*
नौ दुर्गा ग्रह भक्ति निधि, हवन कुंड नौ तंत्र
साड़ी मोहे नौगजी, हार नौलखा मंत्र
*

विश्व के समस्त पदार्थों में जैसे, ब्रह्म एकरस आप्त
वैसे अंक नौ सर्वत्र ह्रास -वृद्धि रहित , एक सा ब्याप्त
नौ का गुणन करने पर भी रहता ज्यों का त्योंही
इसका सम्पूर्ण पहाडा रहे,आदि से अंत तक वही
आठ के अंक में जब एक अंक और होता संयुक्त
नौ का रूप धारण कर ह्रास वृद्धि से होता मुक्त
अंक आठ माया स्वरुप ,जब हो माया ब्रह्म में लीन
स्वरुप खोकर होती विलीन, घटना बढ़ना होता क्षीण
नवग्रह ,नौ छंद,नौ रस,नौ दुर्गा, नौ नाडी,नौ हव्य,
नौ सिद्धि, नौ निधि ,नौ रत्न, नौ छवि ,नौ द्रव्य
तुलसी नौ की महिमा की तुलना करे श्री राम संग
आदि अंत नीरबाहिये, अंक नौ करे ना नियम भंग
नवधा भक्ति ....श्रवण ,कीर्तन,स्मरण ,पादसेवन ,अर्चन ,वंदन ,दास्य ,सख्य,आत्मनिवेदन
नौ सिद्धि .......ब्राह्मी, वैष्णवी, रौद्री, महेश्वरी, नार सिंही, वाराही, इन्द्रानी, कार्तिकी, सर्वमंगला
नौ निधि,,,पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप ,मुकुंद ,कुंद, नील, ख़राब
नौ रत्न,,,मानक, मोती, मूंगा, वैदूर्य ,गोमेद, हीरा, पद्मराग, पन्ना, नीलम
नौ दुर्गा ....शैलपुत्री ,ब्रह्मचारिणी ,चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, काल रात्री, महागौरी, सिद्धिदात्री
नौ गृह.....सूर्य, चन्द्रमा ,भौम ,बुध ,गुरु ,शुक्र ,शनि ,राहू ,केतु
नौ छंद....दोहा, सोरठा,चौपाई ,हरिगीतिका ,त्रिभंगी ,नाग स्वरुपिनी ,तोमर ,भुजन्ग्प्रयत ,तोटक
नौ छवि....द्दृती, लावण्य, स्वरुप, सुंदर, रमणीय, कांटी, मधुर, मृदु, सुकुमार
नौ द्रव्य ....पृथ्वी, जल, तेज ,वायु ,नभ ,काल, दिक्, आत्म, मन
काव्य शाश्त्र के नौ रस ....श्रृंगार, हास्य ,करुण ,रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स ,अद्भुत ,शांत
नौ हव्य....घृत ,दुग्ध, दधि, मधु,चीनी, तिल ,चावल, यव, मेवा
नौ नाडी ....इडा, पिंगला, सुषुम्ना, गांधारी, गज, जिम्हा ,पुष्प, प्रसादा, शनि ,शंखिनी
पृथवी के नौ खंड ..किम्पुरुष ,इलावृत ,रम्यक ,हिरंमय , कुरु, हरी, भारत,केतुमाल, भाद्रक्ष
शरीर के नौ द्वार ...दो नेत्र ,दो नाक दो कान ,मुख, गुदा, उपस्थ
किसी ब्यक्ति के घर आने पर नौ अमृत खर्च करे ...मीठे वचन ,सौम्य दृष्टि ,सौम्य मुख ,सौम्य मन ,खड़ा होना, स्वागत करना ,प्रेम से बात चीत करना ,पास बैठना ,जाते समय पीछे पीछे जाना
नौ बातें उन्नति में बाधक है .....चुगली या निंदा करना ,परस्त्री सेवन ,क्रोध ,दुसरे का बुरा करना ,अप्रिय करना झूठ ,द्वेश,दंभ ,जाल रचना
धर्म रूप नवक....सत्य, शौच, अहिंसा, क्षमा, दान, दया, मन का निग्रह, अस्तेय,इन्द्रियों का निग्रह
नौ प्रकार की जीविका निषिद्ध मानी गई है...भीख, नट, नृत्य,भांड ,कुटनी, वेश्या ,रिश्वत ,जुआ, चोरी
नौ कर्म नहीं छोड़ने चाहिए ...संध्या स्नान ,जप, हवन ,यज्ञ,दान, पूजा ,ब्रह्मचर्य ,अहिंसा
नौ ब्यक्तियों को क्रोध नहीं करना चाहिए ....शश्त्री,मर्मी, प्रभु, शठ ,धनी, वैध,वंदी, कवि ,चतुर मानस
नौ स्थान भ्रष्ट होने पर शोभा नहीं पाते ....राजा ,कुलवधू ,विप्र ,मंत्री ,स्तन ,डांट ,केश ,नख ,मनुष्य
गोस्वामी तुलसी दास जी ने रामचरित मानस में सर्वप्रथम नौ देवों की वंदना की ...गणेश ,सरस्वती ,भवानी ,शंकर ,गुरु ,वाल्मीकि ,हनुमान ,सीता ,श्री राम
ब्रह्मण के नौ गुण....अंत :करणका निग्रह करना ,इन्द्रियों का दमन करना,धर्मपालन के लिये कष्ट सहना ,बहार भीतर से शुद्ध रहना ,दूसरों के अपराधों को क्षमा करना ,मन इन्द्रिय और शरीर को सरल रखना ,वेद ,ईश्वर ,शाश्त्र ,ईश्वर ,परलौक आदि में श्रद्धा रखना ,वेद शाश्त्रों का अध्यन ,अद्ध्यापन करना परमात्मा के तत्वों का अनुभव करना
नौ सम्बन्धी ...धैर्य पिता , क्षमा माता, नित्य शान्ति स्त्री ,सत्य पुत्र ,दया भगिनी ,मन :संयम भ्राता, भूमितल सुकोमल शय्या ,दिशाएँ वस्त्र ,ज्ञाना मृत भोजन ,
आइये देखे ९ का पहाडा ....
९,१८,२७,३६,४५,....पहाड़े की हर संख्या नौ रहती है यथा ..
९,१+८=९,२+७=९,३+६=९,४+५=९....आदि
हिंदी या संस्कृत की वर्ण माला में दो भेद होते हैं एक स्वर दूसरा व्यंजन .अ से अ :तक १२ स्वर और क से ह तक ३३ व्यंजन कुल मिला कर ४५ जो ४+५=९ बनाते है I

ब्रह्म में चार अक्षरों का समन्वय है ब=२३(तेइसवां व्यंजन),र =२७,ह =३३,म =२५,चारों अक्षरों का जोड़ है १०८ ,१+०+८=९ बनाता हैI
जब ब्रह्म पूर्ण है तो संसार अपना मूल्य कम क्या रखेगा.....
स=३२,अं=१५,स=३२ ,आ =२,र=२७,कुल मिला कर हुए १०८ ,१+०+८=९
जब ब्रह्म और संसार तुल्य है तब संसार के चारो युग भी अपना अधिकार कम क्यों करें I
सत्ययुग ...१७२८०००=१+७+२+८=१८=१+८=९
त्रेता युग ...१२९६०००=१+२+९+६=१८=१+८=९
द्वापर युग ...८६४०००=८+६+४=१८=१+८=९
कलयुग ...४३२०००=४+३+२=९
चारो युग की सामूहिक वर्ष संख्या है ४३२००००=४+३+२=९

कोई टिप्पणी नहीं: