नवगीत:
बिन बोले ही बोले
सब कुछ
हो गहरा सन्नाटा
नहीं लिपाई
नहीं पुताई
हुई नहीं है
कही सफाई
केवल झाड़ू
गयी उठाई
फोटो धाँसू
गयी खिंचाई
अंतर से अंतर का
अंतर
नहीं गया है पाटा
हार किसी की
जीत दिला दे
जयी न कभी
बनाती है
मृगतृष्णा
नव आस जगा दे
तृषा बुझा
कब पाती है?
लाभ तभी शुभ जब न
बने वह
कल अपना ही घाटा
आत्म निरीक्षण
आत्म परीक्षण
खुद अपना
कर देखो
तभी दिवाली
जब अपनी
कथनी-करनी
खुद लेखो
कहकर बात मुकरना
लगता आप
थूककर चाटा
===
बिन बोले ही बोले
सब कुछ
हो गहरा सन्नाटा
नहीं लिपाई
नहीं पुताई
हुई नहीं है
कही सफाई
केवल झाड़ू
गयी उठाई
फोटो धाँसू
गयी खिंचाई
अंतर से अंतर का
अंतर
नहीं गया है पाटा
हार किसी की
जीत दिला दे
जयी न कभी
बनाती है
मृगतृष्णा
नव आस जगा दे
तृषा बुझा
कब पाती है?
लाभ तभी शुभ जब न
बने वह
कल अपना ही घाटा
आत्म निरीक्षण
आत्म परीक्षण
खुद अपना
कर देखो
तभी दिवाली
जब अपनी
कथनी-करनी
खुद लेखो
कहकर बात मुकरना
लगता आप
थूककर चाटा
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