दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु
A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
गुरुवार, 16 अक्टूबर 2014
janak chhand:
जनक छंद
पवन नाचता मुक्त हो
जल-कण से संयुक्त हो
लोग कहें तूफ़ान क्यों?
*
मनुज प्रकृति से दूर हो
पछताता है नूर खो
आँखें मूंदे सूर हो
*
मन उपवन आशा सुमन
रहे सुवासित जग मगन
मंद न हो मन की लगन
*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें