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शनिवार, 18 अक्तूबर 2014

muktika:

मुक्तिका:

मुक्त कह रहे मगर गुलाम
तन से मन हो बैठा वाम

कर मेहनत बन जायेंगे
तेरे सारे बिगड़े काम

बद को अच्छा कह-करता
जो वह हो जाता बदनाम

सदा न रहता कोई यहाँ
किसका रहा हमेशा नाम?

भले-बुरे की फ़िक्र नहीं
करे कबीरा अपना काम

बन संजीव, न हो निर्जीव
सुबह, दुपहरी या हो शाम

खिला पंक से भी पंकज
सलिल निरंतर रह निष्काम
*

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