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बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

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नव गीत:

कम लिखता हूँ
अधिक समझना

अक्षर मिलकर
अर्थ गह
शब्द बनें कह बात

शब्द भाव-रस
लय गहें
गीत बनें तब तात

गीत रीत
गह प्रीत की
हर लेते आघात

झूठ बिक रहा
ठिठक निरखना

एक बात
बहु मुखों जा
गहती रूप अनेक

एक प्रश्न के
हल कई
देते बुद्धि-विवेक

कथ्य एक
बहु छंद गह
ले नव छवियाँ छेंक

शिल्प
विविध लख
नहीं अटकना

एक हुलास
उजास एक ही
विविधकारिक दीप

मुक्तामणि बहु
समुद एक ही
अगणित लेकिन सीप

विषम-विसंगत
कर-कर इंगित
चौक डाल दे लीप 

भोग
लगाकर
आप गटकना

***







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