मुक्तिका:
सूना-सूना पनघट हैं
संजीव 'सलिल'
*
सूना-सूना पनघट हैं, सूखी-सूखी अमराई है।
चौपालों-खलिहानों में, सन्नाटे की पहुनाई है।।
बरगद बब्बा गुजर गए, पछुआ की सोच विषैली है।
पात झरे पीपल के, पुरखिन पुरवैया पछताई है।।
बदलावों की आँधी में, जड़ उखड़ी जबसे जंगल की।
हत्या हुई पहाड़ों की, नदियों की शामत आई है।।
कोंवेन्ट जा जुही-चमेली-चंपा के पर उग आये।
अपनापन अंगरेजी से है, हिन्दी मात पराई है।।
भोजपुरी, अवधी, बृज गुमसुम, बुन्देली के फूटे भाग।
छत्तीसगढ़ी, निमाड़ी बिसरी, हाडौती पछताई है।।
मोदक-भोग न अब लग पाए, चौथ आयी है खाओ केक।
दिया जलाना भूले बच्चे, कैंडल हँस सुलगाई है।।
श्री गणेश से मूषक बोला, गुड मोर्निंग राइम सुन लो।
'सलिल'' आरती करे कौन? कीर्तन करना रुसवाई है।।
***********
सूना-सूना पनघट हैं
संजीव 'सलिल'
*
सूना-सूना पनघट हैं, सूखी-सूखी अमराई है।
चौपालों-खलिहानों में, सन्नाटे की पहुनाई है।।
बरगद बब्बा गुजर गए, पछुआ की सोच विषैली है।
पात झरे पीपल के, पुरखिन पुरवैया पछताई है।।
बदलावों की आँधी में, जड़ उखड़ी जबसे जंगल की।
हत्या हुई पहाड़ों की, नदियों की शामत आई है।।
कोंवेन्ट जा जुही-चमेली-चंपा के पर उग आये।
अपनापन अंगरेजी से है, हिन्दी मात पराई है।।
भोजपुरी, अवधी, बृज गुमसुम, बुन्देली के फूटे भाग।
छत्तीसगढ़ी, निमाड़ी बिसरी, हाडौती पछताई है।।
मोदक-भोग न अब लग पाए, चौथ आयी है खाओ केक।
दिया जलाना भूले बच्चे, कैंडल हँस सुलगाई है।।
श्री गणेश से मूषक बोला, गुड मोर्निंग राइम सुन लो।
'सलिल'' आरती करे कौन? कीर्तन करना रुसवाई है।।
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9 टिप्पणियां:
शनिवार 07/07/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. आपके सुझावों का स्वागत है . धन्यवाद!
- kusumvir@gmail.com
आदरणीय सलिल जी ,
बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है l
हार्दिक बधाई l
सादर l
कुसुम वीर
kusumsinha2000@yahoo.com ekavita
priy sanjiv ji
aapki vidwata ko mera shat shat naman bahut sundar bahut hi sundar
kusum
vijay ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
आ० ’सलिल’ जी,
मुक्तिका अच्छी लगी । विशेषकर ..
सूना-सूना पनघट हैं, सूखी-सूखी अमराई है।
चौपालों-खलिहानों में, सन्नाटे की पहुनाई है।।
साधुवाद,
विजय
bahut sunder lage aapke vichar..... aur vicharon ko diye gaye aapke shabd....
badalte waqt ki sundar tasveer
परम आनद है आपके ब्लॉग पे ...
vijay :
आ० ’सलिल’ जी,
मुक्तिका अच्छी लगी । विशेषकर ..
सूना-सूना पनघट हैं, सूखी-सूखी अमराई है।
चौपालों-खलिहानों में, सन्नाटे की पहुनाई है।।
साधुवाद,
विजय
sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
आ० आचार्य जी,
पकृति से दूर होते परिवेश का सार्थक शब्द-चित्र | साधुवाद !
विशेष-
बदलावों की आँधी में, जड़ उखड़ी जबसे जंगल की।
हत्या हुई पहाड़ों की, नदियों की शामत आई है।।
सादर ,
कमल
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